हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के सदस्य और जामीअ मदर्रेसीन आयतुल्लाह नज्मुद्दीन तबसी ने कहा है कि आज ग़ाज़ा मुसलमानों के लिए एक कत्लगाह बन चुका है। ज़मीनें तबाह हो चुकी हैं, इमारतें मलबे के ढेर बन चुकी हैं और अब शरणार्थियों के तंबुओं पर भी हमले हो रहे हैं।
रोजाना दर्जनों लोग शहीद हो रहे हैं, लेकिन मुस्लिम उम्मत अपने आपसी मतभेदों की वजह से कोई प्रभावशाली कदम नहीं उठा पा रही है।
उन्होंने क़ुम के एक सत्र में कहा कि पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सीरत कुरान से ली गई है, और कुरान ने हमेशा उम्मत को एकता की ओर बुलाया है,और तुम सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को थाम लो और तफर्रक़ मत डालो । (सूराह अले इमरान: 103)
आज उम्मत के लिए सबसे बड़ी जरूरत यही है कि तोहिद-ए-कलमा और कलम-ए-तौहीद को अपना महवर बनाए।
आयातुल्लाह तबसी ने कहा कि फिक़्ही और कलामी मतभेद अपनी जगह हैं, लेकिन ये मतभेद इतने गहरे नहीं होने चाहिए कि उम्मत में फूट पैदा हो। कुरान, नबी करीम, काबा, हज, जकात, रोज़ा, खुम्स और जिहाद ये सभी मुसलमानों के साझा सिद्धांत हैं और इन्हीं साझा बातों को आधार बनाकर आगे बढ़ना होगा।
उन्होंने चेतावनी दी कि दुश्मनों ने इसराइल के साथ संबंधों के बहाने कुछ इस्लामी देशों को उम्मत से काट दिया है ताकि ग़ाज़ा में खुलकर खूनी संघर्ष किया जा सके। अगर उम्मत-ए-इस्लाम एकजुट होती तो कोई भी नकली और ज़ालिम सरकार इस तरह के जघन्य अपराध नहीं कर पाती।
आयातुल्लाह तबसी ने इतिहास के उदाहरण देते हुए कहा कि शिया उलेमा ने हमेशा एकता के लिए बलिदान दिया है, यहां तक कि कई ने अपनी व्यक्तिगत तकलीफें नजरअंदाज कीं ताकि दुश्मन की नफरत से एकता को नुकसान न पहुंचे।
उन्होंने कहा कि आज भी उम्मत-ए-मुस्लिमा को चाहिए कि वह वहाबी और दाइश जैसे गुमराह विचारों को ठुकराए क्योंकि ये इस्लाम के नाम पर मुसलमानों का खून बहाते हैं।
उन्होंने कहा जैसे शिया उलेमा ने बहाईवाद को इसराइली साजिश मानकर खारिज किया, उसी तरह अहल-ए-सुन्नत को भी वहाबी विचारधारा से अपनी राहें अलग करनी चाहिए ताकि पूरे इस्लामिक विश्व में असली एकता कायम हो सके।
अंत में आयातुल्लाह तबसी ने कहा,
अगर मुसलमान एकजुट हो जाएं तो सिर्फ ग़ाज़ा ही नहीं, बल्कि पूरा इस्लामिक विश्व ज़ुल्म और अत्याचार से निजात पा सकता है।
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