हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अल्लाह के घर से संबंधित एक शंका यहा है कि अगर इब्राहीम ने पत्थर की मूर्तियो को तोड़ दिया था, तो फिर उन्होंने पत्थर से काबा क्यों बनाया? इसका जवाब यह है कि यह सोच एक सतही तुलना है। मूर्तियो का पत्थर और काबा का पत्थर दिखने में तो एक जैसे हो सकते हैं, लेकिन नीयत और मक्सद में ये बिल्कुल अलग हैं।
संक्षिप्त जवाबः
इब्राहीम ने मूर्तियो को इसलिए तोड़ा क्योंकि वे मख़लूक की पूजा का प्रतीक थे, जो गलत था। लेकिन काबा का मकसद खुदा की तौहीद और उसकी इबादत के लिए एकता का प्रतीक बनाना था।
अंतर यह है कि मूर्ति ख़ुदा का रास्ता रोकने वाली है, जबकि काबा ख़ुदा का रास्ता दिखाने वाला है।"
इसलिए, काबा को मूर्तियो के जैसा समझना और तुलनात्मक रूप से पकड़ना गलत है क्योंकि उनका असली मक्सद और अर्थ पूरी तरह से अलग है।
विस्तृत जवाबः
1. मूलभूत फर्क:
मूर्ति वह है जिसकी पूजा की जाती है; यानी वह पत्थर या मूर्ति खुद को इबादत का विषय मानती है:
ما نَعْبُدُهُمْ إِلَّا لِیُقَرِّبُونَا إِلَی اللَّهِ زُلْفَی मा नअबोदोहुम इल्ला लेयोक़र्रेबूना इलल लाहे ज़ुल्फ़ा (सूरह ज़ुमर, 3)
लेकिन काबा खुद कोई माबूद (पूज्य) नहीं है; वह तो इबादत की दिशा और केंद्र है। क़ुरान में साफ कहा गया है: فَوَلِّ وَجْهَکَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ फ़वल्ले वज्हका शतरल मस्जदेहिल हरामे (सूरह बक़रह, 144)
मतलब काबा इबादत का लक्ष्य नहीं, बल्कि खुदा की याद और एकता का केंद्र है।
2. काबा की तौहीदी भूमिका:
काबा अल्लाह की तौहीद और विनम्रता में इबादत के सामंजस्य का प्रतीक है, न कि किसी तरह का शिर्क (बहुदेवता) का साधन:
إِنَّ أَوَّلَ بَیْتٍ وُضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِی بِبَکَّةَ... هُدًی لِّلْعَالَمِینَ इन्ना अव्वला बैतिन वोज़ेआ लिन नासे लल लज़ी बेबक्कता ... हुदल लिल आलामीन (सूरह आल-इमरान, 96)
सभी मुसलमान जब एक ही दिशा की ओर मुख करके इबादत करते हैं, तो वे अपनी आध्यात्मिक और वैश्विक एकता को अल्लाह की बंदगी में प्रदर्शित करते हैं।
3. मूर्तियो के 'मध्यस्थ' होने के दावे का जवाब:
मूर्तिपूजक भी मध्यस्थता का दावा करते थे, लेकिन क़ुरआन बताता है कि अल्लाह की अनुमति के बिना मध्यस्थता करना शिर्क (बहुदेववाद) है। इसके विपरीत, हज, काबा और अन्य धार्मिक रीतियाँ सभी सीधे अल्लाह के आदेश पर और तौहीद के नियमों के अंतर्गत होती हैं।
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