शुक्रवार 10 अक्तूबर 2025 - 23:01
अहले बैत (अ) की सीरत पर अमल करने वाला इंसान जाहिरी व बातिनी लिहाज से खूबसूरत होता है, हुज्जतुल इस्लाम ज़ाहिद ज़ाहिदी

हौज़ा / मरकज़ी जामिया मस्जिद स्कर्दू बल्तिस्तान में आयोजित होने वाली नैतिकता की लगातार पढ़ाई की महफिल में अंजुमन-ए-इमामिया बल्तिस्तान के उपाध्यक्ष ने कहा कि क़ुरआन-ए-क़रीम हमें बार-बार सुनने, समझने और फिर सुनकर अच्छी बातों पर अमल करने की ताकीद करता है; सिर्फ सुन लेना ही काफी नहीं होता, बल्कि अमल ही मोमिन की असल पहचान है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मरकज़ी जामिया मस्जिद स्कर्दू बल्तिस्तान में आयोजित होने वाली नैतिकता की लगातार पढ़ाई की इस हफ्ते की महफिल में अंजुमन-ए-इमामिया बल्तिस्तान के उपाध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम शैख ज़ाहिद हुसैन ज़ाहिदी ने कहा कि क़ुरआन-ए-क़रीम हमें बार-बार सुनने, समझने और फिर सुनकर अच्छी बातों पर अमल करने की ताकीद करता है; सिर्फ सुन लेना ही काफी नहीं होता, बल्कि अमल ही मोमिन की असल पहचान है।

उन्होंने आगे कहा कि इंसान के आसपास हर पल अलग-अलग आवाजें गूंजती हैं। बाजार, गली-कूचों या सफर के दौरान कभी गानों की आवाजें सुनाई देती हैं, कभी बेकार बातें; लेकिन मोमिन की शान यह है कि वह इन बातिल आवाजों से दिल व दिमाग को सुरक्षित रखता है। मोमिन की नजर अगर अचानक नामहरम पर पड़ जाए तो वह तुरंत नजर फेर लेता है, अपने कानों को हराम से बचाता है, अपनी आँखों को नापाक नजारों से सुरक्षित रखता है।

उन्होंने कहा कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ) फरमाते हैं: मोमिन इंफ़ाक़ करने वाला होता है, भले ही खुद के पास कुछ न हो, लेकिन वह दूसरों की जरूरत का ख्याल रखता है। यही इंफ़ाक़ होने की निशानी है। अल्लाह ने जिस चीज से रोका है उससे रुक जाना और जिस काम का हुक्म दिया है उसे अंजाम देना; यही असली इताअत है। मोमिन हराम से बचता है, फराइज को अंजाम देता है और अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली (अ) के क़दमों पर चलने को अपना गौरव समझता है।

उन्होंने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम (स) और अइम्मा-ए-मअसूमीन (अ) हमारे लिए पूर्ण नमूना-ए-अमल हैं, उनकी सीरत और क़िरदार ही वह आईना हैं जिसमें हम अपनी ज़िंदगी का प्रतिबिंब देख सकते हैं।

शैख ज़ाहिद हुसैन ज़ाहिदी ने यह कहते हुए कि इंसान की पहचान दो पहलुओं से होती है, कहा कि पहली पहचान जाहिरी है; उसकी शक्ल-सूरत, बोलने का अंदाज, शारीरिक बनावट और व्यक्तित्व के जाहिरी पहलू, ये सब अल्लाह की दी हुई नेमतें हैं, इंसान का व्यक्तिगत कमाल नहीं। खालिक-ए-काइनात ने क़ुरआन में फरमाया: "लक़द ख़लक़नल इंसान फ़ी अहसने तक़वीम" (सूरह तीन, आयत 4) "बेशक हमने इंसान को सबसे अच्छी सूरत में पैदा किया।"

और एक अन्य जगह फरमाया: "व नफ़ख़तु फीहे मिन रूही" (सूरह साद, आयत 72) "मैंने उसमें अपनी रूह से फूंक दी।" यह दर्शाता है कि इंसान की खलकत में अल्लाह ने अपनी क़ुदरत और करम का प्रतिबिम्ब रखा है। 

उन्होंने इंसान की दूसरी पहचान को इंसान की सीरत और क़िरदार बताया और कहा कि इंसान की सीरत व क़िरदार वास्तव में इंसान की असल पहचान है। अल्लाह के नजदीक शक्ल-सूरत की उतनी अहमियत नहीं जितनी अख़लाक, तक़वा और क़िरदार की है। जैसा कि क़ुरआन में फरमाया गया: "इन्ना अक्रमकुम इंदल्लाह अतक़ाकुम" (सूरह हुजरात, आयत 13) "बेशक तुममें सबसे ज्यादा इज्जत वाला वह है जो सबसे ज्यादा परहेजगार है।"

उन्होंने आगे कहा कि हम सब पर अल्लाह का यह एहसान है कि हमारे दिल मुहम्मद व आले मुहम्मद (अ)  के प्यार से मुनव्वर हैं। यही प्यार हमें क़िरदार, सहनशीलता, सब्र और इत्तिफाक का सबक देता है। जब हम अपनी ज़िंदगी को अहले- बैत (अ) की सीरत के आईने में देखते हैं तो हमें अपनी कमियाँ और कमजोरियाँ साफ नजर आती हैं; यह प्यार सिर्फ जज़्बात नहीं, बल्कि अमली तरबियत का जरिया है।

शैख ज़ाहिद हुसैन ज़ाहिदी ने कहा कि इमाम हसन अस्करी (अ) की तालीमात हमें सिखाती हैं कि: मोमिन अपनी ख्वाहिशात पर काबू पाता है, दूसरों के लिए इत्तिफाक करता है और अपने क़िरदार से दीन का प्रतिनिधि बनता है। जो शख्स सीरत-ए-अहले-बैत (अ) को अपना आईना बनाएगा उसका जाहिर भी खूबसूरत होगा और बातिन भी खूबसूरत होगा और ऐसा इंसान अल्लाह के नजदीक महबूब और बंदों के लिए रहमत का कारण बनता है।

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