हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के रिपोर्टर के अनुसार, मजलिस-ए-ख़ुबरगान-ए-रहबरी के सदस्य आयतुल्लाह सय्यद अबुल हसन महदवी ने मदरसा-ए-इल्मिया सदर बाज़ार इस्फहान में मरहूम आयतुल्लाहिल उज़्मा अबुल क़ासिम दहकर्दी इस्फहानी की याद में आयोजित सभा को संबोधित करते हुए कहा: ऐसी इल्मी व अख़लाक़ी शख़्सियात का सम्मान वास्तव मे मोजूदा ज़िंदा समाज की ज़रूरत है ताकि उनकी शख़्सियत के औसाफ़ और उनकी सीरत नस्लों में जारी रह सकें।
उन्होंने कहा: हम इन बुज़ुर्गों की ज़िंदगियों से जो नुकात बयान करते हैं वह अगरचे मुकम्मल नहीं होते लेकिन मोजूदा नस्ल के लिए रोल मॉडल और मार्गदर्शन का दर्जा रखते हैं।
आयतुल्लाह महदवी ने हज़रात-ए-मासूमीन (अ) की इस हदीस की तरफ़ इशारा किया कि “किसी शख़्स के ईमान की गहराई तक कोई नहीं पहुँच सकता,” और कहा: इसके बावजूद हम पर लाज़िम है कि हम उलमा की इल्मी और माअनवी प्रयास को ख़िराज-ए-तहसीन पेश करें, क्योंकि इन्हीं में हमारे लिए हक़ीक़ी अस्वा पाया जाता है।
उन्होंने कहा: जब हम सिर्फ़ मासूमीन (अ) की ज़िंदगियों को देखते हैं तो कभी-कभी हमारे अंदर यह एहसास पैदा होता है कि हम उस मक़ाम तक नहीं पहुँच सकते। लेकिन दूसरी तरफ़ जब हम अपने उलमा और अकाबिर की जीवनी का अध्ययन करते हैं तो उनका तर्ज़-ए-अमल हमारे लिए ज़्यादा क़ाबिल-ए-इक़्तिदा महसूस होता है।
आयतुल्लाह महदवी ने आयतुल्लाह दहकर्दी की इल्मी ज़िंदगी का ज़िक्र करते हुए कहा: आपने नजफ़ अशरफ़ में तक़रीबन सात साल उलमा छत्र छाया मे ज्ञान प्राप्त किया और फिर चालीस साल से ज़्यादा अरसा मदरसा-ए-सदर इस्फहान में तदरीस और तर्बियत-ए-तुल्लाब में गुज़ारा और उम्र के इक्यासी (८१) बरस तक ख़िदमत-ए-दीन में व्यस्त रहे।
उन्होंने कहा: आज हौज़ा इल्मिया की रौनक़ और छात्रो की इल्मी फ़आलियत इन्हीं बुज़ुर्गों के प्रयासो की आभारी है।
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