हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, निम्नलिखित रिवायत "वस्लइ उश-शिया" पुस्तक से ली गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال الامام الصادق عليه السلام:
غُسلُ يَومِ الجُمُعَةِ طَهُورٌ و كَفّارَةٌ لِما بَينَهُما مِنَ الذُّنوبِ مِنَ الجُمُعَةِ إلَى الجُمُعَةِ
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने फ़रमाया:
जुमे के दिन ग़ुस्ल करना एक जुमे से दूसरे जुमे तक किए गए पापों के लिए पाकी और प्रायश्चित का एक साधन है।
वसइल उश शिया, भाग 3, पेज 315
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