मंगलवार 11 नवंबर 2025 - 16:39
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) मज़हरे नूर-ए-इलाही और खिदमत खल्क का कामिल नमूना हैः आयतुल्लाह आराफ़ी

हौज़ा / ईरान के हौज़ा-ए-इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने कहा है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ.न केवल इबादत और मरफत की सर्वोच्च मिसाल हैं, बल्कि वे इंसानियत की सेवा, न्याय और सामाजिक प्रशिक्षण का भी पूर्ण आदर्श हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकारी और शहरी प्रशासक अपनी सेवाओं को सैय्यदा स.अ.की सीरत के अनुरूप बना लें, तो हमारे शहर प्रकाश आध्यात्मिकता और न्याय के केंद्रों में बदल सकते हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने अय्याम-ए-फ़ातिमिया के मौके पर ईरान के सभी प्रांतीय मेयर से मुलाकात के दौरान बातचीत करते हुए कहा कि सैय्यदा फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की ज़िंदगी इबादत, एसार और सेवा का ख़ूबसूरत मेल है। आपकी सीरत हमें यह सीख देती है कि सच्ची सेवा, जब अल्लाह की रज़ा से सराबोर हो, तो वह इबादत के बराबर बन जाती है।

उन्होंने इस मौके पर कहा कि हौज़ा ए इल्मिया की बौद्धिक और नैतिक बुनियाद में इबादत और सेवा एक-दूसरे से अलग नहीं हैं जो व्यक्ति ख़ालिस नीयत से ख़ल्क़े ख़ुदा की सेवा करता है, वह असल में इबादत के चरम पर है। यही वह सिद्धांत है जो सैय्यदा फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा की पवित्र सीरत से लिया गया है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने अय्याम-ए-फ़ातिमिया की महत्वता की ओर इशारा करते हुए कहा,हम इन शोक के दिनों में उस महान जन्नत की स्त्री को याद कर रहे हैं जिनकी सीरत पूरी इंसानियत के लिए मार्गदर्शक है। हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने न केवल इबादत और दुआ में बढ़त हासिल की बल्कि सामाजिक न्याय, पारिवारिक शिक्षा और मज़लूमों की हिफ़ाज़त में भी अनोखी भूमिका अदा की।

उन्होंने क़ुरआन और हदीसों के हवाले से हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के मक़ाम और दर्जे की व्याख्या करते हुए कहा कि कई मान्य हदीसों में आया है कि पैगंबर-ए-इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया,अल्लाह तआला ने आसमानों और ज़मीन को फ़ातिमा के नूर से रौशन किया और फ़रिश्तों को उनके नूर से पैदा किया।

यह हदीस इस बात की दलील है कि हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा दैवीय प्रकाश की अभिव्यक्ति हैं और उनका वजूद दुनिया की रौशनी और बरकत का स्रोत है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने स्पष्ट किया कि इस्लामी फ़लसफ़े के मुताबिक, ब्रह्मांड वजूद के अलग-अलग दर्जों से बना है हम जो कुछ देखते हैं, वह सिर्फ़ भौतिक दुनिया है, मगर उसके पीछे आलम-ए-मलकूत और प्रकाश की दुनिया (आलम-ए-नूर) मौजूद है, जहाँ हर चीज़ नूर-ए-इलाही से रौशन है। यही वह मक़ाम है जहाँ हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का वजूद प्रकट होता है।

उन्होंने कहा कि मक़ाम-ए-फ़ातिमा की पहचान एक बौद्धिक और वैचारिक ज़रूरत है जो हमें इबादत, सेवा और ज़िंदगी के असली मतलब से जोड़ती है। अगर हम हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के अख़लाक और करदार को सामाजिक प्रबंधन में नमूना बनाएँ, तो हमारे शहर प्रकाश, इंसानियत और न्याय के केंद्रों में बदल जाएँगे।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने इस मौके पर गृह मंत्रालय और देश के मेयर की सेवाओं की सराहना करते हुए ज़ोर दिया कि सेवा-ए-ख़ल्क़ को इबादत समझ कर अंजाम देना असल में रज़ा-ए-इलाही और मुहब्बत-ए-अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की अभिव्यक्ति है।

उन्होंने आख़िर में हज़रत ज़हरा सला मुल्लह अलैहा को सभी दैवीय प्रकाश का स्रोत बताते हुए कहा कि अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के प्रकाशमय रास्ते पर चलना ही नजात और कमाल का रास्ता है, और यही हौज़ा ए इल्मिया के मैनिफेस्टो का बुनियादी संदेश है।

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