हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अंजुमन-ए शरई शियान शरीअतआबाद यूसुफ़ अबाद बडगाम के ज़ेरे एहतेमाम अय्याम-ए फ़ातिमिय्या की मुनासबत पर मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर मजलिस-ए अज़ा आयोजित हुईं; इन मजालिस में खाड़ी से मोमिनीन व मोमिनात ने कसीर तादाद में शिरकत करके जनाब-ए सय्यदा सलामुल्लाह अलैहा को ख़िराज-ए तहसीन पेश किया।
पहली मजलिस दारुल अली मीरगंड बडगाम में, जबकि दूसरी और तीसरी मजलिस-ए अज़ा केंद्रीय इमामबारगाह आयतुल्लाह आगा सय्यद यूसुफ़, शारए फ़ज़्लुल्लाह बमनाह में आयोजित हुईं।
इन मजलिस-ए अज़ा का आग़ाज़ हसब-ए-मामूल कश्मीरी मर्सिया-ख़्वानी से हुआ।
इन मजलिस-ए अज़ा से हुज्जतुल इस्लाम आगा सय्यद मोहम्मद हादी मूसवी ने ख़िताब किया और हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की ज़िंदगी के मुख़्तलिफ़ पहुलूओं पर रौशनी डाली।
उन्होंने क़ुरआन के सूर ए नूर की आयत न 35 के ज़ेरे बयान जनाब सय्यदा फ़ातिमा अलैहा को नूर-ए इलाही का मज़हर क़रार देते हुए कहा कि उनका वुजूद हक़ के ज़ुहूर और बातिल के ज़वाल का ऐलान है; इसी लिए उनका वुजूद उन लोगों के लिए एतराज़ है जो हक़ से मुँह मोड़ते हैं।

उन्होंने मजीद कहा कि हज़रत फ़ातिमा अलैहा ने अपनी ज़िंदगी में ज़ुल्म, अन्याय और हक़-तल्फ़ी के ख़िलाफ़ सब्र के साथ मगर बा-इज्ज़त एहतजाज किया।
उन्होंने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने ख़ुतबा-ए फ़दक के ज़रिए उम्मत को बेदार करने की कोशिश की; उनका सुखूत, उनका दर्द और उनका सब्र — सब एतराज़ की अलामत हैं, लिहाज़ा उनका वुजूद खुद ही ज़ुल्म पर खामोश मगर गहरा एहतजाज है।







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