हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाहे अलैहा) एक मिसाली पत्नी के तौर पर तमाम मुसलमान ख़्वातीन के लिए एक कामिल नमूना हैं, जिनकी घरेलू ज़िंदगी मोहब्बत, ईसार और वफ़ादारी से भरी थी।
1. शौहर की मदद और साथ देना
जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम जिहाद या मैदान-ए-जंग से वापस आते, तो हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाहे अलैहा बहुत गर्मजोशी से उनका इस्तेक़बाल फरमातीं। आप उनकी तलवार लेकर साफ़ करतीं और घर में सुकून और मोहब्बत का माहौल पैदा करतीं। हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा न सिर्फ़ घरेलू कामों में बल्कि इमाम अली अलैहिस्सलाम के तमाम समाजी और दینی कामों में भी शरीक रहतीं। आपकी हमफ़िक्री और हमदर्दी हज़रत अली के लिए तस्कीन-ए-क़ल्ब का बाइस बनती थी।
2. शौहर के लिए ज़ेबह और आराइश
इस्लामी तालिमात में मियां-बीवी दोनों को एक-दूसरे के लिए ख़ुशनुमा रहना पसंद किया गया है। हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा की ज़िंदगी में भी यह उसूल साफ़ नज़र आता है। रिवायत है कि रसूल-ए-ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि वा आलेहि वसल्लम ने उनकी शादी की रात के लिए सबसे बेहतरीन ख़ुशबूदार अतर का इंतज़ाम फरमाया था, और हज़रत ज़हरा हमेशा अपने घर में पाकीज़गी और ख़ुशबू को पसंद फरमातीं।
3. क़नाअत और शौहर की रज़ा की तलाश
एक मौक़े पर जब अमीरुल-मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया: "ऐ फ़ातिमा! क्या कोई खाना है ताकि मैं अपनी भूख मिटाऊँ?"
हज़रत ने जवाब दिया: "दो दिन से घर में खाना नहीं, जो कुछ था वो मैंने आप और अपने बेटों हसन और हुसैन अलैहिमस्सलाम को दे दिया।"
इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया: "फ़ातिमा! तुमने मुझसे क्यों न बताया ताकि मैं कुछ इंतज़ाम करता?"
इस पर हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा ने हया से सर झुकाकर फरमाया: "ऐ अबल-हसन! मुझे अपने रब से शर्म आती है कि आपसे वो चीज़ मांगूँ जो आपके बस में न हो।"
यह जुमला हज़रत ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा की ग़ैर-मामूली क़नाअत, सब्र और शौहर की रज़ामंदी की तलाश का ज़बरदस्त मज़हर है — आप न सिर्फ़ एक नेक बीवी थीं बल्कि कामिल इंसानियत का नमूना भी थीं।
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा की इज़्दिवाजी ज़िंदगी मोहब्बत, ईसार, दींदारी और समझ-बूझ से लबरेज़ थी। आपने अमली तौर पर दिखाया कि एक मिसाली शरीक-ए-हयात वो है जो मोहब्बत के साथ ज़िम्मेदारी निभाए, शौहर का सहारा बने और दुनियावी ख़्वाहिशात के बजाय रज़ा-ए-इलाही को तरजीह दे।
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