हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हिंदुस्तान के मुमताज़ आलिम-ए-दीन और जामिअतुल-बतूल हैदराबाद-दक्कन के निदेशक, हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन डॉक्टर सय्यद रिज़वान हैदर रिज़वी, उपमहाद्बीप के सक्रिय मुबल्लिग़ीन में शुमार किए जाते हैं, जिन्होंने अलग अलग देशो में तबलीग़-ए-दीन के मैदान में नुमाया ख़िदमात अंजाम दी हैं। उन्होंने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के साथ तफ़्सीली गुफ़्तगू में अपने तालीमी व तबलीगी सफ़र, दीनी-मआशरती ज़िम्मेदारियों और नई नस्ल के बीच मोअस्सिर अंदाज़-ए-तबलीग़ पर रौशनी डाली। मौलाना रिज़वी का कहना था कि तबलीग़ में सबसे ज़्यादा असर उस वक़्त पैदा होता है जब मुबल्लिग़ ख़ुद उस बात पर अमल करे जिसकी दावत दे रहा है।
विस्तृत इंटरव्यू इस तरह है:
हौज़ा: सलामुअलैकुम व रहमतुल्लाह, सबसे पहले अपना संक्षिप्त परिचय कराएँ ताकि पाठक आपकी इल्मी व तबलीगी ख़िदमात से वाक़िफ़ हो सकें।
मौलाना सय्यद रिज़वान हैदर रिज़वी: सबसे पहले मैं हौज़ा न्यूज़ एजेंसी का तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने मुझे मौक़ा दिया कि मैं अपने तजुर्बात और मुशाहदात को क़ारईन तक पहुँचा सकूँ।
मेरा नाम सय्यद रिज़वान हैदर रिज़वी है, मेरा आबाई वतन आज़मगढ़ (हिंदुस्तान) है। इब्तिदाई तालीम मैंने जामिया नाज़िमिया लखनऊ में हासिल की। उसके बाद मैंने ईरान का रुख़ किया जहाँ तक़रीबन चौदह साल तक हौज़ा इलमिया क़ुम में तालीम हासिल की। अलहम्दुलिल्लाह, दुरूस-ए-ख़ारिज़ तक तालीम जारी रखी, वहाँ मुख़्तलिफ़ मुमताज़ असातिज़ा से इस्तेफ़ादा किया और 2004 में वापस हिंदुस्तान आ गया।

हौज़ा: हैदराबाद मुंतक़िल होने के बाद आपने इल्मी व तदरीसी मैदान में क्या काम अंजाम दिया?
मौलाना सय्यद रिज़वान हैदर रिज़वी: हैदराबाद आने के बाद दो बुनियादी मैदानों में सरगर्म रहा:
पहला — तदरीस (पढ़ाना)। मैंने यहाँ महिलाओ के लिए विशेष पाठो का सिलसिला शुरू किया जो आज भी जारी है।
दूसरा — अपनी आला तालीम को आगे बढ़ाया। मैंने मौलाना आज़ाद यूनिवर्सिटी से एम.ए. मुकम्मल किया और बाद में पीएच.डी. की डिग्री हासिल की। मेरी पीएच.डी. का मौज़ू था: “फेमिनिज़्म इस्लाम की निगाह में” (Feminism in Islamic Perspective)।
यह तहक़ीकी काम बाद में किताब की शक्ल में भी प्रकाशित हुआ। मेरा मक़सद यही था कि इस्लाम में औरत के मुक़ाम और मग़रिबी नज़रियात के दरम्यान फ़िक्री फ़र्क़ को इल्मी बुनियाद पर वाज़ेह किया जाए।
हौज़ा: आपने हिंदुस्तान के मुख़्तलिफ़ सूबों के तबलीगी दौरे किए। एक मुबल्लिग़ के लिए आपके नज़दीक सबसे अहम् चीज़ क्या है?
मौलाना सय्यद रिज़वान हैदर रिज़वी: मेरे नज़दीक मुबल्लिग़ के लिए सबसे बुनियादी नुक्ता यह है कि वह हर काम सिर्फ़ और सिर्फ़ ख़ुदा के लिए करे। मैं हमेशा तलबा और मुबल्लिग़ीन से कहता हूँ कि जो कुछ हम हौज़े में पढ़ते हैं, उसे सिर्फ़ पढ़ कर न छोड़ दें बल्कि उस पर यक़ीन पैदा करें।
क़ुरआन करीम में फ़रमाया गया: وَمَنْ يَتَّقِ اللّٰهَ يَجْعَلْ لَهُ مَخْرَجًا यानी जो ख़ुदा से डरता है, ख़ुदा उसके लिए रास्ता बना देता है।
मैंने अपनी ज़िंदगी में इस आयत को बार-बार तजुर्बा किया। मैं छोटा-सा तालिबे-इल्म हूँ, मेरे पास न बंगला है, न गाड़ी, न शोहरत, लेकिन मैंने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया।
जब इंसान ख़ुलूस से काम करता है, तो ख़ुदा ख़ुद उसके लिए रास्ते खोल देता है।

हौज़ा: तबलीग़ के मैदान में आपने मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में काम किया। हिंदुस्तान जैसे मुतनव्वे मआशरती मुल्क में मुबल्लिग़ीन को किन चीज़ों का ख़याल रखना चाहिए?
मौलाना सय्यद रिज़वान हैदर रिज़वी:यह बहुत अहम सवाल है। हिंदुस्तान में हर रियासत की संस्कृति, ज़बान और ज़ेहन मुख़्तलिफ़ है। मैंने कर्नाटक, आँध्र प्रदेश में भी काम किया, यूपी और बिहार में भी। मैंने महसूस किया कि तबलीग़ का एक ही अंदाज़ हर जगह कारगर नहीं होता।
दक्षिण में नरमी और ख़िदमत के ज़रिए हृदय जीते जाते हैं, जबकि शुमाल में इल्मी गुफ़्तगू और मंतिक़ ज़्यादा असर रखती है। एक मुबल्लिग़ को चाहिए कि वह वहाँ के लोगों के मिज़ाज को समझे, उनकी ज़बान और आदतें जाने, फिर बात करे।
हौज़ा: आपने अपने तजुर्बों से मुबल्लिग़ीन के लिए क्या अहम् पैग़ाम हासिल किया?
मौलाना सय्यद रिज़वान हैदर रिज़वी: मैं हमेशा कहता हूँ कि दीन के किसी काम को छोटा न समझो। अगर आप किसी गाँव में जाकर अज़ान देते हैं, मस्जिद में सफ़ें सीधी करते हैं या झाड़ू लगाते हैं, तो यह भी अज़ीम अमल है।
तबलीग़ का असल मफ़हूम यह है कि इंसान लोगों को ख़ुदा से जोड़ने वाला बने। हमारे आइम्मा (अलैहिमुस्सलाम) ने यही किया। नबी-ए-अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि व सल्लम) ने फ़रमाया कि अगर तुम्हारे ज़रिए एक इंसान भी हिदायत पाए तो यह उस तमाम दुनिया से बेहतर है जिस पर सूरज निकलता और डूबता है।

हौज़ा: कई मुबल्लिग़ीन शिकायत करते हैं कि लोगों में दीनी ज़ौक़ कम होता जा रहा है। आप इसे किस नज़र से देखते हैं?
मौलाना सय्यद रिज़वान हैदर रिज़वी: मैं समझता हूँ कि मसअला क़ुरआन से दूरी का है। जब मैं बचपन में था तो चहलुम या फ़ातेहा में लोग क़ुरआन पढ़ने बैठते थे। आज सूरत यह है कि चालीसवें की मजलिस होती है मगर क़ुरआन नहीं लाया जाता। यह उम्मत की कमज़ोरी है। मैं हमेशा वालिदैन से कहता हूँ कि अपने बच्चों को रोज़ाना क़ुरआन का एक सफ़ा तर्जुमा के साथ पढ़ाएँ, यही दीन से वाबस्तगी की शुरुआत है।
हौज़ा: आपने महिलाओ के लिए भी कई दीनी तालीमी प्रोग्रैम शुरू किए। इस बारे में कुछ फ़रमाएँ।
मौलाना सय्यद रिज़वान हैदर रिज़वी: जी हाँ, मैंने महसूस किया कि हिंदुस्तान में महिलाओ की दीनी तालीम का मैदान बहुत कमज़ोर है। हम मस्जिदें बनाते हैं मगर उनमें महिलाओ के लिए दरवाज़ा या वुज़ूख़ाना नहीं होता — यह सोच की कमी है।
मैंने हैदराबाद में महिलाओ के लिए क़ुरआन व फ़िक़्ह के मुख़्तसर कोर्स शुरू किए, जहाँ तालीमयाफ़्ता लड़कियाँ और कॉलेज की तालिबात भी आती हैं। मैंने यह भी देखा कि अगर ख़वातीन सही दीनी तालीम हासिल करें तो वे पूरे ख़ानदान को दीनी रंग में रंग सकती हैं।

हौज़ा: आख़िर में आप नौजवान मुबल्लिग़ीन के लिए क्या पैग़ाम देना चाहेंगे?
मौलाना सय्यद रिज़वान हैदर रिज़वी: मैं सिर्फ़ इतना कहूँगा कि ख़ुलूस पैदा कीजिए, ख़ुदा के लिए काम कीजिए, लोगों से तारीफ़ की उम्मीद मत रखिए। अगर हम अपनी नीयत पाक रखें तो ख़ुदा ख़ुद हमारे लिए दरवाज़े खोल देता है। दुनिया में काम बहुत है, बस शर्त यह है कि इंसान अपने नफ़्स को भुला कर ख़ुदा को याद रखे। यही तबलीग़ का असल राज़ है।
मेरी यही दुआ है कि ख़ुदावंदे मुतआल हमें इख़लास अता फ़रमाए, हमें अपनी ज़िम्मेदारियों को पहचानने और उन्हें अंजाम देने की तौफ़ीक़ दे, और हमारे काम को अपनी बारगाह में क़बूल फ़रमाए। वस्सलामुअलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु।

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