हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, क़ुम अल मुक़द्देसा मे रहने वाले भारतीय शिया धर्मगुरू, कुरआन और हदीस के रिसर्चर मौलाना सय्यद साजिद रज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार ने अय्याम ए फ़ातिमा के हवाले से विशेष चर्चा की। जिसे हम अपने प्रिय पाठको के लिए सवाल व जवाब के रुप मे प्रस्तुत कर रहे है।
हौज़ा: हम अय्याम-ए-फ़ातेमिया से गुज़र रहे है इन अय्याम से हमे क्या याद आता है और बीबी ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) के जीवन के सबसे अहम पहलू कौन से हैं?
मौलाना साजिद रज़वीः अय्याम-ए-फ़ातेमिया से हमें हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की याद आती है। ये अय्याम आपके जीवन, साहस, सब्र, तक़्वा और परिवार के साथ उनके संबंधों का दर्स देते है। इस अवसर पर हम उनके नैतिक चरित्र, ईमानदारी और न्यायप्रियता को याद करते हैं।
उनकी जिंदगी के सबसे अहम पहलू – सब्र, तक़्वा, अच्छे अख़लाक़, ख़िदमत-ए-खल़क और मज़हबी तालीम का प्रचार। उन्होंने माता-पिता का सम्मान, पति के साथ अच्छा बर्ताव और समाज में कमज़ोरों की मदद का नमूना पेश किया। उनकी ज़िंदगी, सादगी और परहेज़गारी से भरा हुआ था।
हौज़ा : हज़रत फातेमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) का सब्र और तक़्वा आज के समय में हमें क्या दर्स मिलता है?
मौलाना साजिद रज़वीः उनका सब्र और तक़्वा हमें सिखाता है कि मुश्किलों और अन्याय के सामने भी ईमान और अख़लाक़ नहीं छोड़ना चाहिए। आज के समय में यह युवा और बुज़ुर्ग दोनों को सिखाता है कि कठिनाइयों में धैर्य, माता-पिता और समाज के साथ अच्छे संबंध और अल्लाह पर भरोसा सबसे ज़रूरी हैं।
हौज़ाः इन अय्याम मे विशेष मजलिस और ज़ियारत आयोजित करना का क्या राज़ हैं?
मौलाना साजिद रज़वीः मजलिस और ज़ियारत का मक़सद हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) के जीवन और उनके अख्लाक़ी मिसाल को याद करना है। ये आयोजन समाज में एकता, धार्मिक चेतना और जवानों को धर्म से जोड़ने का ज़रिया भी हैं।
हौज़ाः हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की उदारता और अच्छे आचार पर प्रकाश डालते हुए बताएं कि आपके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण सीख क्या है?
मौलाना साजिद रज़वीः वे बहुत सख़ीऔर मुहज़्ज़ब थीं। ग़रीब, यतीम और परेशान लोगों की मदद उनके लिए इबादत की तरह थी। उनका हर काम दूसरों के लिए प्रेरणा था, चाहे वह माता-पिता की सेवा हो, पति के साथ व्यवहार, या समाज में लोगों की भलाई। उनकी उदारता केवल इक़्तेसादी नहीं थी, बल्कि नैतिक और व्यवहारिक मदद भी थी।
महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण सीख है: सब्र, तक़्वा, सादगी और परिवार में अच्छे व्यवहार। उन्होंने दिखाया कि एक ख़ातून अपने घर और समाज में इल्म, अख्लाक़ और सेवा के माध्यम से सम्मान पा सकती है। अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाना और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना भी उनकी ज़िंदगी का अहम हिस्सा है।
हौज़ाः इन विशेष अय्याम मे मज़हबी चेतना बढ़ाने के लिए क्या क़दम उठाए जा सकते हैं?
मौलाना साजिद रज़वीः इन विशेष अय्याम मे मज़हबी चेतना बढ़ाने के लिए निम्नलिखित क़दम उठाए जा सकते
- मजलिस और तक़रीरों में उनके जीवन और चरित्र पर रौशनी डालना।
- युवाओं के लिए इल्मी बैठकें और जलसे आयोजित करना।
- धार्मिक पुस्तकें और लेख वितरित करना।
- समाज सेवा, दान और ज़रूरतमंदों की मदद के माध्यम से तालीम देना।
- सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफ़ार्म पर जानकारी साझा करना ताकि जवान भी उनके जीवन और तालीमात से जुड़ सकें।
- मजलिसों और इल्मी बैठकों का आयोजन करना।
- उनकी सादगी और नैतिक शिक्षाओं पर ध्यान देना।
- क़ुरआन की तिलावत और दुआओं का जलसा।
- सामाजिक सेवा और ज़रूरतमंदों की मदद करना।
- जवानों और बच्चों को उनके जीवन की शिक्षाएँ समझाना।
हौज़ा: अय्याम -ए-फ़ातेमिया में ख़ासकर आप युवा पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेंगे?
मौलाना साजिद रज़वीः जवान पीढ़ी को यह मैसेज देना चाहूंगा कि कठिनाइयों में भी ईमान और अख्लाक़ को न खोएँ। सब्र, तक़्वा, और ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ की अहमियत को समझें। अपने अधिकारों के लिए न्यायपूर्ण ढंग से खड़े हों और समाज में अच्छाई फैलाने का प्रयास करें।
हौज़ा: हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की इल्मी, समाजी ख़िदमात और आपकी मज़लूमियत पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
मौलाना साजिद रज़वीः उनकी तालीम का मक़सद समाज में अच्छाई और दीन की तबलीग़ करना था। उन्होंने महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए तालीम और अख्लाक़ी रहनुमाई का नमूना पेश किया। उनका जीवन दिखाता है कि दीनी और सामाजिक इल्म समाज में बदलाव और सुधार का आधार है।
आप (सला मुल्ला अलैहा) हमेशा गरीबों, यतीमों और ज़रूरतमंदों की मदद करती थीं। उन्होंने लोगों की भलाई के लिए अपने समय, मेहनत और संसाधनों का उपयोग किया। उनके जीवन में सेवा और उदारता का व्यवहार हमेशा नमूना रहा।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) मजलूमों और इंसाफ़ की अलम्बरदार थीं। उनकी जिंदगी में ज़ुल्मऔर नाइंसाफ़ी के हालत के बावजूद उन्होंने हक़ के साथ खड़े रह के दिखाया। उनकी मज़लूमियत हमें सिखाती है। कि हक़ के लिए आवाज़ बुलंद करना,सब्र करना,और अख़्लाक़ी उसूलों पर क़ायम रहना ज़रूरी है।
हौज़ा: अय्याम-ए-फ़ातेमिया मे क़ुरान की तेलावत का क्या कोई महत्व रखती है और परिवार के सदस्यों को कैसे शामिल किया जा सकता है?
मौलाना साजिद रज़वीः क़ुरान की तेलावत से दिलों में ईमान और अल्लाह के प्रति लगाव बढ़ता है। यह रूह को सुकून देता है और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) के जीवन और शिक्षाओं को समझने में मदद करता है। मजलिसों में तेलावत का आयोजन उनके आदर्शों को याद रखने का एक ज़रिया है।
परिवार के सदस्यों को मजलिसों में दावत दे करके, घर पर पढ़ाई और इल्मी बैठकें आयोजित करके, और बच्चों को उनके जीवन की कहानियाँ सुनाकर शामिल किया जा सकता है। इससे परिवार में एकता और दीनी बिदारी बढ़ती है।
हौज़ा: हज़रत फ़ातेमा (सला मुल्ला अलैहा) की इबादत और रूहानियत हमें किस तरह प्रभावित करती है?
मौलाना साजिद रज़वीः उनकी इबादत और रूहानियत हमें सिखाती है कि अल्लाह के क़रीब रहने के लिए नियमित नमाज़, रोज़ा, और दुआ का महत्व है। उनके जीवन से सबक़ लेकर हम अपने जीवन में संयम, सब्र और दीनदारी ला सकते हैं।
हौज़ाः अंत मे हम आपके शुक्रगुज़ार है कि आपने हौज़ा न्यूज़ को अपना क़ीमती समय देकर हमारे पाठको को अय्याम ए फ़ातेमिया के विषय पर महत्वपूर्ण चर्चा की।
मौलाना साजिद रज़वीः मै भी हौज़ा न्यूज़ का आभारी हूँ कि मुझ जैसे तालिब ए इल्म को बार बार अवसर दिया मै अल्लाह से दुआ करता हूं कि हौज़ा न्यूज़ इसी तरह अपने मक़सद मे कामयाबी हासिल करे जैसा कि कर रही है।
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