शनिवार 1 नवंबर 2025 - 17:00
इंटरव्यूः ख़ुत्बा ए फ़दाकिया इंसाफ़, तौहीद और अहले-बैत के हक़ की आवाज़

हौज़ा / क़ुम अल मुक़द्देसा मे रहने वाले भारतीय शिया धर्मगुरू, कुरआन और हदीस के रिसर्चर मौलाना सय्यद साजिद रज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार ने अय्याम ए फ़ातिमा के अवसर पर हज़रत ज़हरा द्वारा दिए गए खुत्बा ए फ़दाकिया के हवाले से विशेष इंटरव्यू किया। जिसमे मौलाना ने खुत्बा ए फ़दकिया के असली मक़सद को बयान किया। 

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, क़ुम अल मुक़द्देसा मे रहने वाले भारतीय शिया धर्मगुरू, कुरआन और हदीस के रिसर्चर मौलाना सय्यद साजिद रज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार ने अय्याम ए फ़ातिमा के अवसर पर हज़रत ज़हरा द्वारा दिए गए खुत्बा ए फदाकिया के हवाले से विशेष इंटरव्यू किया। जिसे हम अपने प्रिय पाठको के लिए सवाल व जवाब के रुप मे प्रस्तुत कर रहे है।

हौज़ाः बीबी ज़हरा (स.अ.) ने ख़ुतबा-ए-फ़दाक़िया पृष्ठभूमि क्या थी और इस खुत्बे का बुनयादी मक़सद क्या था? 
मौलाना साजिद रज़वीः रसूले अकरम (स) की वफ़ात के बाद जब हुकूमत और ख़िलाफ़त का मामला उलझा और फ़दक़ की ज़मीन जो नबी (स) ने बीबी ज़हरा (स) को दी थी, उनसे उनका हक़ छीना गया, तब आपने मस्जिद-ए-नबवी में यह ख़ुतबा दिया। यह वक्त ऐसा था जब मुसलमान सियासी और रूहानी इम्तहान में थे। इस ख़ुतबे का असल मकसद इस्लाम की हक़ीक़त को याद दिलाना, अहले-बैत के हुक़ूक़ को लोगों पर ज़ाहिर करना  और उम्मत को इन्साफ़, अद्ल और अमानतदारी की तरफ़ बुलाना था।

हौज़ाः हज़रत ज़हरा (स) ने इस खुत्बे मे तौहीद, नुबूवत और इमामत को किस अंदाज़ में बयान किया उनके अहम प्वाइंट क्या है?
मौलाना साजिद रज़वीः आपने तौहीद को फ़लसफ़ी और रूहानी दोनों रंग में पेश किया। फ़रमाया कि अल्लाह बेनियाज़ है, उसकी कोई मिसाल नहीं, हर चीज़ उसी पर क़ायम है और उसकी इबादत इंसान की रूह का सुकून है। आपने नुबूवत को इंसानियत की हिदायत का ज़रिया बताया। कहा कि रसूल (स) वह नूर हैं जिनसे जेहालत मिटती है और अल्लाह का पेग़ाम बंदों तक पहुंचता है। और आपने इमामत को दीन की हिफ़ाज़त और उम्मत की रहनुमाई का मरकज़ बताया। 

हौज़ाः फ़दक की ज़मीन का रूहानी या दीनी पहलू क्या था? और आपने फ़दक के हक़ मे कौन कौन सी दलीली पेश की? 
मौलाना साजिद रज़वीः फ़दक़ सिर्फ़ ज़मीन नहीं थी बल्कि इस्लामी इन्साफ़ की निशानी थी। इसका छीना जाना दरअसल अहले-बैत के हक़ और नबूवत के वारिसों की तौहीन थी। आपने क़ुरआन की आयतें पेश कीं कि पैग़म्बर अपने रिश्तेदारों को मीरास देते हैं। गवाहों का ज़िक्र किया और साफ़ कहा कि फ़दक़ नबी (स) ने हिबा (तोहफ़े) के तौर पर दिया था।

हौज़ाः आप (स) ने ख़ुतबे में औरत के किरदार को किस तरह उजागर किया और उम्मत को किस चीज़ से खरदार किया? 
मौलाना साजिद रज़वीः बीबी ज़हरा (स) ने साबित किया कि औरत इस्लाम में सच्चाई, इन्साफ़ और दीनी हिम्मत की आवाज़ बन सकती है। आप एक माँ, बेटी और अल्लाह की बंदी के तौर पर समाज की रहनुमा थीं। आपने चेतावनी दी कि अगर उम्मत हक़ से मुँह मोड़ेगी, अहले-बैत की रहनुमाई को छोड़ेगी तो ज़ुल्म, फितना और गुमराही उसका अंजाम होगा।

हौज़ाः जब बीबी (स) ने मस्जिद में कलाम किया तो मदीना का माहौल और वहा पर मौजूद सहाबा का रद्दे अमल क्या था ? 
मौलाना साजिद रज़वीः मदीना में सन्नाटा था। लोग रसूल की जुदाई से ग़मज़दा थे लेकिन सियासी हवाएं बदल चुकी थीं। बीबी का कलाम सुनते ही सारा माहौल रूहानी और पुरअसर हो गया। कुछ सहाबा रो पड़े, कुछ ख़ामोश रहे और कुछ हैरान। बहुतों के दिलों में पछतावा और कुछ के दिलों में डर था कि उन्होंने अहले-बैत का हक़ न पहचाना।

हौज़ाः बीबी (स) ने विरासत-ए-रसूल (स) के बारे में कौन सी आयतें बयान कीं?
मौलाना साजिद रज़वीः आपने सूरह नमल की आयत का हवाला दिया: "और सुलेमान ने दाऊद का वारिस हुआ"  ताकि साबित करें कि नबी की विरासत दीनी भी होती है और माली भी।

हौज़ाः इस ख़ुतबे से बीबी (स.अ.) के इल्मी और फ़िक्री मक़ाम का क्या अंदाज़ा होता है?
मौलाना साजिद रज़वीः आपका कलाम इल्म, तर्क और वाकपटुता का शाहकार है। इससे मालूम होता है कि आप इल्म-ए-रसालत की वारिस थीं और तौहीद, नुबूवत, इमामत की गहराई को बयान करने वाली आलिम-ए-बे-मिसाल थीं।

हौज़ाः ख़ुतबे में अद्ल और ज़ुल्म के हवाले से अख़लाक़ी पैग़ाम बयान करते हुए उम्मत की रुहानी गिरावट की तरफ़ कैसे तव्ज्जो दिलाई?
मौलाना साजिद रज़वीः आपने कहा कि अद्ल अल्लाह की सुन्नत है और ज़ुल्म उसकी नाफ़रमानी। जो इन्साफ़ करेगा, वह अल्लाह के करीब होगा; जो ज़ुल्म करेगा, वह गुमराह होगा। आपने कहा कि लोग अब दुनियावी लालच में पड़ गए हैं, अल्लाह के हुक्मों को भूल गए हैं और अहले-बैत की मोहब्बत से दूर हो गए हैं,  यही गिरावट की शुरुआत है।

हौज़ाः आज के समाज को ख़ुतबा ए फदकिया किन पहलुओं से रहनुमाई देता है?
मौलाना साजिद रज़वीः यह ख़ुतबा हमें याद दिलाता है कि हक़ के लिए आवाज़ उठाना ईमान का हिस्सा है, और इस्लामी समाज की इस्लाह के लिए औरत व मर्द दोनों बराबर ज़िम्मेदार हैं ।

हौज़ाः अगर इस ख़ुतबे का ख़ुलासा एक जुमले में किया जाए तो वह क्या होगा?

मौलाना साजिद रज़वीः  यह ख़ुतबा इंसाफ़, तौहीद और अहले-बैत के हक़ की आवाज़ है  जो हर दौर में उम्मत को याद दिलाता है कि दीन की बुनियाद हक़, इन्साफ़ और इल्म पर है।

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