हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, लेबनान की मुस्लिम स्कॉलर्स एसोसिएशन ने अपने एक अहम बयान में कहा है कि रवां साल की मुनासबतें ग़ैर-मामूली हैं, क्योंकि इस बरस मुक़ावमती कारवां में सय्यद हसन नस्रुल्लाह और सैयद हाशिम सफ़ीउद्दीन समेत मुतअद्दिद कमांडर्स और मुजाहिदीन ने शहादत का रुत्बा हासिल किया। तंजीम ने कहा कि ये अज़ीम शहदा हमारी तारीख़ का रोशन बाब हैं और हम उनकी पहली बरसी के मौक़े पर उनके मिशन को जारी रखने का अहद दहराते हैं।
बयान में कहा गया कि शहादत किसी ज़अफ़ या पासपाई का नाम नहीं, बल्कि क़ूवत और बेदारी का सरचश्मा है। इस साल का नारा भी शहीद सय्यद हसन नसरुल्लाह (क़) के इस कौल से लिया गया है: عندما نُستشهد نَنتصر (जब हम शहीद होते हैं, तो दरहक़ीक़त उसी वक़्त फ़तेयाब होते हैं)। तंजीम के मुताबिक़, शहादत अल्लाह की रज़ा का ज़रिया भी है और दुश्मन के मुक़ाबले डटे रहने का पैग़ाम भी।
तजम्मु-ए-उलमा-ए-मुस्लिमीन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सैयद हसन नस्रुल्लाह और सैयद हाशिम सफ़ीउद्दीन के बाशोख़ तशीय्य और बरसी के मौक़े पर आवाम का बेमिसाल इज्तिमाअ इस हक़ीक़त का सबूत है कि शहदा ने क़ौम को ज़िंदा और बेदार कर दिया है। बयान में इमाम ख़ुमैनी (क़ुद्दिस सर्रहु) का कौल भी नक़्ल किया गया: “हमें क़त्ल करो, हम और ज़्यादा बेदार हो जाएंगे।”
तंजीम ने वाज़ेह किया कि हम पहले से ज़्यादा मुक़ावमत के हथियार से लैस होने के अकीदे पर क़ायम हैं और इसे छोड़ने की कोई पेशकश क़ाबिल-ए-क़बूल नहीं। बयान में कहा गया कि “मुक़ावमत का हथियार डालना शहदा के ख़ून से ग़द्दारी के मुतरादिफ है, और हम आख़िरी फ़तेह तक इस राह पर साबित क़दम रहेंगे।”
तजम्मु-ए-उलमा-ए-मुस्लिमीन ने इस मौक़े पर कुछ अहम नुक्ते भी पेश किए:
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प्रतिरोध के हथियार पर कोई समझौता नहीं
मुक़ावमत का हथियार वाहिद ज़रिया-ए-दिफ़ा है। इसे तरक करने की हर साज़िश मर्दूद है। -
जंग-बंदी और क़रारदाद 1701 की मुकम्मल पासदारी
तंजीम ने कहा कि हमने अपने हिस्से की तमाम ज़िम्मेदारियां अदा कर दी हैं। अब इस्राईल पर लाज़िम है कि तमाम लुबनानी सरज़मीन से पीछे हटे, लुबनानी क़ैदियों को रिहा करे और फ़िज़ाई, ज़मीनी व बहरी हमले बंद करे। -
हथियार डालने के मौज़ू पर गुफ़्तगू का वक़्त अभी नहीं
तंजीम के मुताबिक़ इस मौज़ू पर कोई बात-चीत जंग के नतीजों, इस्राईली जारिहत के ख़ात्मे और मुकम्मल तामीर-ए-नौ के बिना मुमकिन नहीं। -
अमरीका सुलह-साफ़ नहीं, जंग का फ़रीक़ है
बयान में कहा गया कि अमरीका को सुलह-साफ़ क़रार देना ग़लत है, क्योंकि वो इस्राईल का खुला हिमायती और शरीक है।
आख़िर में तजम्मु-ए-उलमा-ए-मुस्लिमीन ने यक़ीन दिलाया कि लुबनानी क़ौम और मुक़ावमती महाज़ दुश्मन के हर मन्सूबे को नाकाम बनाने के लिए पहले से ज़्यादा मुत्तहिद हैं और आख़िरी फ़तेह तक अपनी जद्दोजहद जारी रखेंगे।
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