गुरुवार 13 मार्च 2025 - 07:50
अगर अमरीका और उसके तत्वों ने कोई मूर्खता की तो हमारी ओर से मुंहतोड़ जवाब निश्चित है

हौज़ा / हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बुधवार 12 मार्च 2025 की शाम को पूरे मुल्क से हज़ारों की तादाद में आए स्टूडेंट्स  और उनके राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों के कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात की।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बुधवार 12 मार्च 2025 की शाम को पूरे मुल्क से हज़ारों की तादाद में आए स्टूडेंट्स  और उनके राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों के कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात की।

उन्होंने इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में स्टूडेंट्स से संबंधित मामलों की समीक्षा और स्टूडेंट्स की पहचान को मज़बूत बनाने के संबंध में कुछ अहम सुझाव दिए और पश्चिम के मुक़ाबले में ईरान की जवान नस्ल के दो अलग अनुभवों के उल्लेख में कहा कि पहला तजुर्बा अपनी पहचान को खोने के रूप में सामने आया जबकि दूसरा अनुभव कि जिसकी ओर स्टूडेंट्स समूह की मौजूदा सरगर्मियां केन्द्रित हैं, वह पश्चिम की अस्लियत की पहचान, स्वाधीनता और पश्चिमी सभ्यता की मूल मुश्किलों से दूरी बनाने के रूप में सामने आया है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अमरीका के साथ वार्ता के संबंध में कुछ बिंदुओं का उल्लेख किया और अमरीकी राष्ट्रपति के ईरान को ख़त भेजने और उसके साथ वार्ता के लिए तैयार होने पर आधारित बयान की ओर इशारा करते हुए, इसे विश्व जनमत को धोखा देने की कोशिश बताया। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि वह ख़त मेरे हाथ में नहीं पहुंचा है लेकिन अमरीका यह झूठ फैलाना चाहता है कि ईरान हमारे विपरीत वार्ता और समझौता करने वाला नहीं है; हालांकि इस तरह की बात करने वाला यह शख़्स वही है जिसने अमरीका के साथ हमारी कई साल की बातचीत के नतीजे में होने वाले समझौते को फाड़ दिया था, तो अब कैसे उसके साथ बातचीत की जी सकती है जबकि हम जानते हैं कि वह नतीजों पर अमल नहीं करेगा?

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने एक अख़बार में प्रकाशित उस बात की ओर इशारा करते हुए कि जिसमें यह कहा गया था कि दो लोगों के बीच जो जंग की हालत में हैं, विश्वास का न होना, वार्ता में रुकावट नहीं बनना चाहिए, कहा कि यह बात ग़लत है; क्योंकि वार्ता करने वाले उन्हीं दो लोगों को अगर सामने वाले पक्ष के अपने वचन पर अमल करने की ओर से भरोसा न हो तो वे वार्ता नहीं करेंगे, क्योंकि ऐसी हालत में वार्ता निरर्थक चीज़ है।

उन्होंने आगे कहा कि वार्ता के आग़ाज़ से हमारा एक मक़सद पाबंदियों को हटवाना था और सौभाग्य की बात है कि पाबंदियों का असर उनके लंबे समय तक जारी रहने की स्थिति में कम हो जाता है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि कुछ अमरीकियों का भी कहना है कि पाबंदियों का लंबा खिंचना उसके असर के कम होने का सबब बनता है, इसके अलावा प्रतिबंध का सामना करने वाला मुल्क उससे बचने का रास्ता निकाल लेता है और हमने भी अनेक रास्ते ढूंढ लिए हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अमरीकियों के उन बयानों की ओर इशारा किया कि जिसमें वे कह रहे हैं कि ईरान को परमाणु हथियार बनाने नहीं देंगे, उन्होंने कहा कि अगर हम परमाणु हथियार बनाना चाहते तो अमरीका हमें रोक न पाता; जिस वजह से परमाणु हथियार हमारे पास नहीं है और हम उसकी कोशिश नहीं करते यह है कि हम कुछ कारणों से कि जिनका ज़िक्र हम पहले चुके हैं, इस तरह के हथियार नहीं चाहते।

उन्होंने अमरीका की ईरान पर हमले की धमकी को समझदारी से परे बताते हुए बल दिया कि हमला करने की धमकी और जंग छेड़ना एकपक्षीय मामला नहीं है और ईरान जवाबी हमला करने की ताक़त रखता है और निश्चित तौर पर ऐसा करेगा।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि अगर अमरीका और उसके तत्वों ने ऐसी कोई भी मूर्खता की तो वे ज़्यादा नुक़सान उठाएंगे, अलबत्ता हम जंग नहीं चाहते क्योंकि जंग अच्छी चीज़ नहीं है लेकिन अगर कोई ऐसा करता है तो उसे मुंहतोड़ जवाब देंगे।

उन्होंने अमरीका को दिन ब दिन कमज़ोर होता देश बताते हुए कहा कि आर्थिक, विदेश नीति, आंतरिक नीति, सामाजिक मामलों सहित दूसरे क्षेत्रों में अमरीका कमज़ोर हो रहा है और अब वह 20-30 साल पहले वाली ताक़त तक नहीं पहुंच सकता।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि अमरीका की मौजूदा सरकार से वार्ता से न सिर्फ़ यह कि पाबंदियां ख़त्म नहीं होंगी बल्कि पाबंदियों की गिरह और जटिल होगी; दबाव बढ़ जाएगा; और नए मुतालबे की संभावना पैदा होगी। 

उन्होंने अपने बयान के दूसरे भाग में फ़िलिस्तीन और लेबनान के रेज़िस्टेंस को ज़्यादा ताक़तवर और ज़्यादा उमंगों से भरा हुआ बताते हुए कहा कि दुश्मन की अपेक्षा के बरख़िलाफ़, न सिर्फ़ यह कि फ़िलिस्तीन और लेबनान का रेज़िस्टेंस ख़त्म नहीं हुआ बल्कि ज़्यादा ताक़तवर और ज़्यादा उमंगों से भरा हुआ है। इन शहादतों से उसे मानवीय लेहाज़ से नुक़सान हुआ है लेकिन उमंग के लेहाज़ से वे ज़्यादा मज़बूत हुए हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस संदर्भ में कहा कि सैयद हसन नसरुल्लाह जैसी हस्ती अगर इन लोगों के दरमियान से चली जाए तो उसकी जगह भर नहीं पाती लेकिन उनकी शहादत के बाद के दिनों में हिज़्बुल्लाह ने ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ जो कार्यवाही की वह उसकी पहले वाली कार्यवाही से ज़्यादा प्रभावी है।

उन्होंने फ़िलिस्तीन के रेज़िस्टेंस के संबंध में भी इस बिंदु को याद दिलाया कि फ़िलिस्त ीन के रेज़िस्टेंस से हनीया, सिनवार और मोहम्मद ज़ैफ़ जैसे शहीद चले जाते हैं लेकिन इसके बावजूद फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस उस वार्ता में जिसमें ज़ायोनी शासन, उसके समर्थक और अमरीका अपनी मांग थोपना चाहते थे, सामने वाले पक्ष से अपनी शर्तों को मनवाने में कामयाब हो जाता है। 

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने रेज़िस्टेंस के मोर्चे का इस्लामी गणराज्य की ओर से सपोर्ट जारी रहने पर बल देते हुए कहा कि सरकार और राष्ट्रपति सहित ईरानी अधिकारियों की इस संबंध में एक राय है कि पूरी ताक़त से फ़िलिस्तीन और लेबनान के रेज़िस्टेंस का हमें सपोर्ट करना चाहिए और इंशाअल्लाह ईरानी क़ौम विगत की तरह भविष्य में भी धौंस धमकियों के मुक़ाबले में रेज़िस्टेंस का पर्चम उठाए रहेगी।

उन्होंने अपने बयान के एक दूसरे भाग में पिछले साल के मुख़्तलिफ़ वाक़यों का उल्लेख करते हुए कहा कि पिछले साल इन्हीं दिनों रईसी, सैयद हसन नसरुल्लाह, हनीया, सफ़ीउद्दीन, सिनवार जैसे शहीद और कुछ अहम इंक़ेलाबी हस्तियां हमारे दरमियान थीं लेकिन अब नहीं हैं जिसकी वजह से दुश्मन यह सोचता है कि हम कमज़ोर हो गए हैं।

उन्होंने इस संबंध में आगे कहा कि मैं पूरे विश्वास कहता हूं कि इन मूल्यवान भाइयों का न होना हमारे लिए नुक़सान तो है लेकिन पिछले साल की तुलना में बहुत से मामलों में हम ज़्यादा ताक़तवर हुए हैं और कुछ मामलों में हम पर कोई असर नहीं हुआ है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अमरीका के ख़िलाफ़ स्टूडेंट्स के अभियानों के आग़ाज़ और निक्सन के दौरे के ख़िलाफ़ तेहरान यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स के 7 दिसंबर 1953 के आंदोलन और 3 स्टूडेंट्स के तत्कालीन सरकार के क़त्ल कर दिए जाने के वाक़ए को पश्चिम की अस्लियत के सामने आने का चिन्ह बताया।

इसी संदर्भ में आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस्लामी इंक़ेलाब से पहले तक पश्चिम की ओर झुकाव कमज़ोर हो जाने के बावजूद जारी रहने की ओर इशारा किया और कहा कि 1979 में इंक़ेलाब न आता तो मुल्क ऐसे रास्ते की ओर बढ़ रहा था कि विदेश पर निर्भरता बढ़ने के नतीजे में अपनी आध्यात्मिक संपत्ति से ख़ाली हो जाता।

उन्होंने इस्लामी इंक़ेलाब के ख़िलाफ़ दुनिया के बदमाशों के साज़िशों से बाज़ न आने की ओर इशारा करते हुए कहा कि वे कहते हैं कि "पहले हम", यानी पूरी दुनिया हमारे हितों को अपने हितों पर तरजीह दे और आज यह स्थिति सभी देख रहे हैं और ईरान अकेला मुल्क है जिसने पूरी दृढ़ता से कहा है कि किसी भी हालत में दूसरे के हितों को अपने हितों पर प्राथमिकता नहीं देगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने दुश्मन की संपर्क की नई शैलियों के प्रयोग का लक्ष्य ईरान पर पश्चिम के प्रभाव और वर्चस्व को फिर से थोपने और ईरान के नौजवान स्टूडेंट्स में इंक़ेलाब से पहले की रक्षात्मकता, अनुसरण और निर्भरता की भावना को पैदा करने की कोशिश बताया

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha