हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने नमाज़ियों को तक़वा-ए-इलाही की नसीहत करते हुए कहा कि परवरदिगार हमें तौफ़ीक़ दे कि हमेशा हमारे दिलों में तक़वा रहे, हम उससे डरते रहें और उसके अहकाम पर अमल करते रहें।
नमाज़-ए-ग़दीर की जमाअत के मस्अले को बयान करते हुए मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने कहा कि इस सिलसिले में फ़ुक़हा के तीन नज़रिए हैं कुछ ने जमाअत से पढ़ने की इजाज़त दी है, कुछ ने मना किया है और कुछ ने तवक़्क़ुफ़ फ़रमाया है, यानी न हुक्म दिया है और न ही रोका है। हर एक के पास अपनी फ़िक़ही दलील है। लिहाज़ा जो जिसकी तक़लीद करता है, अपने मरजा के फ़तवे पर अमल करे।
रसूल-ए-ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम के ख़ुत्बा-ए-ग़दीर का ज़िक्र करते हुए मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने कहा कि हज़रत ने पहले अल्लाह की हम्द की, उसके बाद लोगों को वअज़-ओ-नसीहत फ़रमाई और फिर अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम की विलायत का ऐलान किया। इस से वाज़ेह होता है कि मिंबर से जहाँ फ़ज़ाइल पढ़े जाएँ, वहीं वअज़-ओ-नसीहत भी की जाए।
मौलाना सय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने कहा कि मिंबर हक़ पहुँचाने का वसीला है, जिसके लिए फ़ज़ाइल बयान करना भी ज़रूरी है और अहकाम बयान करना भी ज़रूरी है।
उन्होंने ताकीद करते हुए कहा कि मिंबर और महरब को जुदा करने से गुमराही फैलेगी और जहाँ-जहाँ गुमराही है, उसकी वजह भी यही है। जब मिंबर-ए-ग़दीर से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने वअज़-ओ-नसीहत फ़रमाई, तो कौन होता है ये कहने वाला कि मिंबर से सिर्फ़ फ़ज़ाइल पढ़ें और नसीहत न करें।
शहीद आयतुल्लाहिल उज़्मा बाक़िर अस-सद्र रहमतुल्लाह अलैह की किताब इक्तिसादुना का तज़किरा करते हुए मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने कहा कि मेरे उस्ताद, जो शहीद सद्र रहमतुल्लाह अलैह के शागिर्द थे, उन्होंने बयान किया कि जब किताब "इक्तिसादुना" शाया हुई और उसे शोहरत हासिल हुई, तो ट्यूनीश या अल्जीरिया से दानिशवरों का एक वफ़्द नजफ़ अशरफ़ शहीद सद्र से मुलाक़ात के लिए आया। उस वफ़्द में सब यूनिवर्सिटीयों के प्रोफेसर थे। दौरान-ए-गुफ़्तगू एक प्रोफेसर ने आप से पूछा कि आपने किस यूनिवर्सिटी में तालीम हासिल की है, तो शहीद ने जवाब दिया: हमने मसाजिद और इमाम बारगाहों में दर्स हासिल किया है। ज़ाहिर है, नजफ़ अशरफ़ में दर्स-ए-ख़ारिज़ ज़्यादातर मसाजिद में ही होते हैं। तो उस प्रोफेसर ने कहा: अगर ये मसाजिद आप जैसे उलमा तैयार करती हैं, तो ख़ुदा की क़सम, हमारी यूनिवर्सिटीज़ से हज़ार गुना बेहतर हैं।
अय्याम-ए-अज़ा-ए-फ़ातिमी का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सवाल ये होता है कि अज़ा-ए-फ़ातिमी क्यों ज़रूरी है? इसका जवाब ये है कि ये दिन ज़ुल्म के ख़िलाफ़ बेदारी की लहर पैदा करते हैं।
अज़ा-ए-फ़ातिमी के कुछ और फ़वायद बयान करते हुए मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने कहा कि ये अय्याम औरत की इज़्ज़त, वकार और क़ुदरत को ज़ाहिर करते हैं। ये दिन फ़िरक़ों और मज़ाहिब में इत्तेहाद और हम-आहंगी का सबब हैं। ये अय्याम रूहानी तरबियत और इस्लाह-ए-नफ़्स का बेहतरीन मौक़ा हैं। ये अय्याम ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ का भी बेहतरीन मौक़ा हैं।
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