۵ آذر ۱۴۰۳ |۲۳ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 25, 2024
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हौज़ा / शाही आसिफ़ी मस्जिद में 5 जुलाई 2024 को नमाज़े जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलमीन मौलाना सैय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी, प्रिंसिपल हौज़ा ए इल्मिया हज़रत ग़ुफ़रानमाब लखनऊ की इमामत में अदा की गई इमाम ए जुमआ मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने नमाज़े जुमा के पहले ख़ुत्बे में ख़ुद और नमाज़ियों को तक़वा ए इलाही की नसीहत करते हुए फ़रमाया: "ख़ुदा से दुआ करें कि वह हमें तौफ़ीक़ दे कि उसका खौफ़ हमेशा हमारे दिलों में बाक़ी रहे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,लखनऊ: शाही आसिफ़ी मस्जिद में 5 जुलाई 2024 को नमाज़े जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलमीन मौलाना सैय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी, प्रिंसिपल हौज़ा ए इल्मिया हज़रत ग़ुफ़रानमाब लखनऊ की इमामत में अदा की गई।

इमामे जुमा मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने नमाज़े जुमा के पहले ख़ुत्बे में ख़ुद और नमाज़ियों को तक़वा ए इलाही की नसीहत करते हुए फ़रमाया: "ख़ुदा से दुआ करें कि वह हमें तौफ़ीक़ दे कि उसका खौफ़ हमेशा हमारे दिलों में बाक़ी रहे, हमेशा पेशे नज़र रहे कि वह हमें देख रहा है, हमारे आमाल पर निगरां है और एक दिन हमें उसकी बारगाह में हाज़िर होना है।

मौलाना सैय्यद रज़ा ज़ैदी ने अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अ.स. के ख़ुत्बे ग़दीर के एक हिस्से "मैं जन्नत और जहन्नम को तक़सीम करने वाला हूँ, मैं फ़ाजिरों पर अल्लाह की हुज्जत हूँ, मैं नूरों का नूर हूँ" का ज़िक्र करते हुए फ़रमाया: "अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अ.स. जन्नत और जहन्नम के तक़सीम करने वाले हैं, वह कितना हसीन मंज़र होगा कि एक जानिब जन्नत होगी और दूसरी जानिब जहन्नम और दरमियान में अमीरुल मोमिनीन अ.स. तक़सीम करते हुए जहन्नम से कह रहे होंगे कि यह मेरा है और यह तेरा है, जहन्नम की जानिब इशारा करते हुए किसी से कह रहे होंगे कि अगर तू मेरा नहीं है तो फिर उसका है।"

मौलाना सैय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने सूरह नूर की आयत नंबर 35 "अल्लाह आसमानों और ज़मीन का नूर है। उसके नूर की मिसाल उस मिशक़ात (ताक़) की है जिसमें मिस्बाह (चिराग़) हो और चिराग़ ज़ुजाजह (शीशे की किंदील) में हो के सिलसिले में अमीरुल मोमिनीन अ.स. की हदीस "इस आयत में मिश्क़ात से मुराद रसूलुल्लाह स.अ. हैं, मिस्बाह मैं (अमीरुल मोमिनीन अ.स.) हूँ और ज़ुजाजह (इमाम) हसन व (इमाम) हुसैन (अ.स.) हैं" को ज़िक्र करते हुए फ़रमाया: "अमीरुल मोमिनीन अ.स. चिराग़ हैं और इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. फ़ानूस हैं, इससे वाज़ेह है कि ग़दीर चिराग़ है और कर्बला फ़ानूस है, कर्बला ने ग़दीर की हिफ़ाज़त की, कर रही है और करेगी, जो लोग कर्बला की मुख़ालिफ़त कर रहे हैं, वे दरअस्ल ग़दीर के मुख़ालिफ़ हैं।"

मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने फ़रमाया: "चिराग़ का अपना कोई रंग नहीं होता बल्कि जो शीशा और फ़ानूस का रंग होता है, उसी रंग की रोशनी नज़र आती है, क़ुदरत चाहती है कि दीन, इस्लाम, ईमान, क़ुरान सब कर्बला के रंग में नज़र आएं, पूरी शरीअत नज़र आए तो हुसैनी रंग में नज़र आए।"

इमामे जुमा मौलाना सैय्यद रज़ा हैदर ज़ैदी ने नमाज़े जुमा के दूसरे ख़ुत्बे में अज़ादारी और अश्क़े अज़ा की अहमियत को बताते हुए फ़रमाया: "हमारे आँसूओं का वही मक़सद होना चाहिए जो इमाम हुसैन अ.स. का मक़सद था, अज़ादारी ऐसे करें कि नमाज़ के वक़्त से न टकराए, ज़ाहिर है अज़ादारी इबादत है और इबादत हमारी मरज़ी से नहीं होगी बल्कि इबादत के अपने अहकाम होते हैं, कोशिश करें कि मजलिसों में बा वज़ू शिरकत करें क्योंकि वहां फ़रिश्ते आते हैं,

अर'वाह आती हैं, झूठ बोलना, ग़ीबत करना हराम है, फ़र्शे अज़ा पर इससे और ज़्यादा परहेज़ करने की ज़रूरत है क्योंकि यह काम गुनाह है और अगर फ़र्शे अज़ा पर हो तो फ़र्शे अज़ा की बेहुरमती भी है।

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