۹ تیر ۱۴۰۳ |۲۲ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jun 29, 2024
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हौज़ा / 14 जून 2024, शुक्रवार को शाही आसफी़ मस्जिद में जुमा की नमाज़ हुज्जत-उल-इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी, प्रिंसिपल हौज़ा-ए- इल्मिया हज़रत गुफ़रानमाब लखनऊ की इमामत में अदा की गई, मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने नमाज़े जुमा के पहले ख़ुत्बे में नमाज़ियों को तक़वा-ए- इलाही की नसीहत करते हुए फरमाया: हमेशा हमारे ज़ेहन में रहना चाहिए कि कोई क़ुदरत, कोई ताक़त हमें देख रही है और हमें एक दिन अल्लाह के सामने अपने आमाल का हिसाब देना होगा।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,लखनऊ, 14 जून 2024, शुक्रवार को शाही आसफी़ मस्जिद में जुमा की नमाज़ हुज्जत-उल-इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी, प्रिंसिपल हौज़ा-ए- इल्मिया हज़रत गुफ़रानमाब लखनऊ की इमामत में अदा की गई, मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने नमाज़े जुमा के पहले ख़ुत्बे में नमाज़ियों को तक़वा-ए- इलाही की नसीहत करते हुए फरमाया: हमेशा हमारे ज़ेहन में रहना चाहिए कि कोई क़ुदरत, कोई ताक़त हमें देख रही है और हमें एक दिन अल्लाह के सामने अपने आमाल का हिसाब देना होगा।

अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम के ख़ुत्बा ग़दीर के एक हिस्से को बयान करते हुए इमाम जुमा ने फरमाया: अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम सिरातुल्लाह , सबीलुल्लाह और तरीक़ुल्लाह हैं,  मौला अली की मोहब्बत के बिना कोई भी इताअत क़बूल नहीं होगी, वही इताअत व इबादत बारगाहे परवरदिगार में मक़बूल है जो मोहब्बत-ए- अली अलैहिस्सलाम के साथ अंजाम पाए।

इमाम-ए- जुमा ने नमाज़े जुमा के दूसरे ख़ुत्बे में भी नमाज़ियों को तक़वा-ए-इलाही की नसीहत करते हुए फ़रमाया: तक़वा यानी कोई वाजिब छूटने न पाए और कोई हराम अंजाम न पाए। मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत का ज़िक्र करते हुए

इमाम आली मक़ाम की सीरत के एक गोशे की जानिब इशारा किया कि जब एक शख़्स ने आपकी तौहीन की और आपकी वालिदा ए माजिदा की शान में गुस्ताख़ी की तो आपने फरमाया: अगर तू सही कह रहा है तो मैं उनके लिए इस्तेग़फ़ार करूँगा और अगर तू ग़लत कह रहा है तो मैं तेरे लिए इस्तेग़फ़ार करूँगा। बुराई का जवाब भलाई से देने वाले को इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं, आपकी ये सीरत हम सबके लिए लम्हा-ए-फिक्रिया और दावत-ए-अमल है।

मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने रोज़-ए-अरफ़ा और सफ़ीर-ए- हुसैनी हज़रत मुस्लिम अलैहिस्सलाम का ज़िक्र करते हुए फरमाया: हज़रत मुस्लिम को इमाम मासूम ने अपना नायब-ए-खा़स मुक़र्रर किया था जो उन लोगों का जवाब है जो कहते हैं कि एक ग़ैर मासूम मासूम का नायब कैसे हो सकता है?

रोज़-ए-अरफ़ा के आमाल किताबों में मौजूद हैं, इंटरनेट का ज़माना है, आप इंटरनेट पर सर्च करके भी इन आमाल को जान सकते हैं और अंजाम दे सकते हैं। रोज़-ए-अरफ़ा के आमाल में दो अमल जिनकी बहुत ताकीद हुई है, एक ज़ियारत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम है और दूसरे दुआ-ए-अरफ़ा ए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम है।

ईद-उल-अज़हा का ज़िक्र करते हुए इमाम जुमा ने फरमाया: इस दिन क़ुरबानी की बहुत ताकीद की गई है, रवायत में यहां तक है कि अगर लोगों को क़ुरबानी करने का सवाब और अज्र मालूम हो जाए तो लोग कर्ज़ लेकर क़ुरबानी करेंगे।

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