हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हुज्जतुल इस्लाम सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने लखनऊ की शाही आसफ़ी जामा मस्जिद में जुमे की नमाज़ के ख़ुत्बों में माह-ए-रजबुल मुरज्जब के आगमन की मुबारकबाद देते हुए कहा कि माह-ए-रजब इंसान के लिए तक़वा अपनाने, अपने आप को बनाने और सँवारने का बेहतरीन अवसर है।
उन्होंने कहा कि रजब नाम का एक अर्थ “बुज़ुर्ग” और “अज़ीम” है। यह उन चार हराम महीनों में से एक है जिनमें जंग-ओ-जदल और लड़ाई-झगड़ा हराम क़रार दिया गया है।
इमाम-ए-जुमआ लखनऊ ने माह-ए-रजब की मुनासिबत का उल्लेख करते हुए कहा कि जश्न-ए-मौलूद-ए-काबा इस अंदाज़ से मनाया जाए कि ख़ुद मौलूद-ए-काबा अमीरुल मोमिनीन (अ.) मुस्कुराएँ। हमारा तरीक़ा ऐसा हो कि जिसे देखकर अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) और इमाम-ए-ज़माना (अ.स.) ख़ुश हों किसी की तौहीन न हो और ग़िना न हो।
मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने माह-ए-रजब के आमाल का ज़िक्र करते हुए कहा कि इस महीने की पहली गुरुवार की रात “लैलतुल रग़ाइब” होती है, जिसकी नमाज़ें नीयत-ए-रिजा से पढ़ी जाती हैं। इसी तरह इस महीने में रोज़ा ज़रूर रखना चाहिए, चाहे एक ही दिन का क्यों न हो। पूरे महीने रोज़ा रखने में बहुत फ़ज़ीलत और सवाब है। क़ियामत के दिन पुकारा जाएगा, ऐनर-रजबियून”—रजब वाले कहाँ हैं? तब वही उठेंगे जिन्होंने इस महीने में रोज़े रखे और इबादतें कीं।
उन्होंने अमल-ए-उम्म-ए-दाऊद” का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि किसी को कोई परेशानी हो तो वह माह-ए-रजब में यह अमल करे इसका तरीक़ा किताबों में दर्ज है।
एक रिवायत का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ.स.) के ज़माने में जब गेहूँ महँगा हो गया तो कुछ लोगों ने शिकायत की। आपने फ़रमाया: गेहूँ सस्ता हो या महँगा, मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, क्योंकि मेरा रिज़्क़ देने वाला अल्लाह है। आज महँगाई बढ़ी है तो हम अपनी आमदनी के ज़राए बढ़ा सकते हैं चार घंटे की जगह छह घंटे काम कर सकते हैं। अल्लाह पर भरोसा रखें, वही रज़्ज़ाक़ है।
मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने इस्लामी गणराज्य ईरान के राष्ट्रपति के हाथों हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलिमीन मौलाना सैयद कल्बे जवाद नक़वी (इमाम-ए-जुमा, शाही आसफ़ी मस्जिद लखनऊ) को “इमाम ख़ुमैनी आलमी अवॉर्ड” मिलने पर ख़ुशी जताई और कहा कि यह सभी भारतीयों के लिए फ़ख़्र की बात है। उन्होंने अपनी ओर से और तमाम हाज़िरीन की ओर से मुबारकबाद पेश की।
दुनिया में अमन पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि आज हर इंसान अमन चाहता है, मगर उसी अमन के नाम पर महँगे-महँगे हथियार ख़रीदे जा रहे हैं, जबकि न जाने कितने लोग बिना खाना और बिना इलाज के मर रहे हैं। क्या यह हुकूमतों की ज़िम्मेदारी नहीं कि वे अपने अवाम का ख़याल रखें?
अमीरुल मोमिनीन इमाम अली (अ.) की अदालत का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि तारीख़ी तौर पर दुनिया के सबसे बड़े आदिल हाकिम अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ.) हैं। उन्होंने कहा कि 2006 में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कोफ़ी अन्नान ने बयान दिया कि दुनिया के सबसे बड़े न्यायप्रिय शासक अमीरुल मोमिनीन अली (अ.स.) हैं, और अरबों को संबोधित करते हुए कहा कि अपनी हर परेशानी का हल उनकी सीरत में तलाश करो।
उन्होंने बताया कि दुनिया में पेंशन की व्यवस्था सबसे पहले अमीरुल मोमिनीन (अ.) ने शुरू की। रिवायत है कि आपने एक अंधे फ़क़ीर को भीख माँगते देखा। पूछने पर बताया गया कि वह पहले मज़दूर था, अब अंधा हो गया है। आपने फ़रमाया: जब तक काम कर सकता था तब उसे लाभ देते रहे, अब छोड़ दिया? और उसके लिए बैतुल-माल से वज़ीफ़ा मुक़र्रर कर दिया ताकि वह भीख न माँगे।
देश में हिजाब की बेहरमती और मॉब लिंचिंग का ज़िक्र करते हुए मौलाना ने कहा कि हम इसकी सख़्त मज़म्मत करते हैं। जब हमारे देश का संविधान लिबास और हिजाब की इजाज़त देता है तो किसी को अपना क़ानून थोपने का हक़ नहीं। यह बेहरमती और ग़ैर-अख़लाक़ी अमल है।
उन्होंने सिडनी ऑस्ट्रेलिया में हुए हमले का भी ज़िक्र किया और कहा कि वहाँ यहूदी अपना त्योहार मना रहे थे, हमला हुआ और कई यहूदी मारे गए। ज़ुल्म कहीं भी हो, हम उसकी निंदा करते हैं; लेकिन यह भी सोचना होगा कि दुनिया में यहूदियों के ख़िलाफ़ नफ़रत क्यों बढ़ रही है। पचास हज़ार से ज़्यादा मासूम बच्चों की हत्या की गई है। आज ग़ज़्ज़ा के हालात दुनिया के सामने हैं फ़िलिस्तीनी घरों की जगह टेंटों में ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर हैं।
मौलाना सैयद रज़ा हैदर ज़ैदी ने कहा कि ज़ुल्म-ओ-सितम की वजह से सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं, ग़ैर-मुसलमान भी नफ़रत कर रहे हैं, क्योंकि ज़ुल्म से नफ़रत और मज़लूम की हिमायत इंसान की फ़ितरत में है। याद रखें, जब तक दुनिया ज़ोर-ज़बरदस्ती, हक़ ग़सब और जुल्म की नीति पर चलेगी, अमन व सुकून मुमकिन नहीं होगा। ज़रूरी है कि अद्ल अपनाया जाए और अमीरुल मोमिनीन इमाम अली (अ.ल.) की सीरत पर चला जाए।
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