मंगलवार 18 नवंबर 2025 - 15:43
हमारा हर अमल कुरआन और अहलबैत अ.स.के मीज़ान पर परखा जाएगा। हुज्जतुल इस्लाम अंसारीयान

हौज़ा / कुम अल मुकद्दस में मशहूर कुरआन के मुफस्सिर और उस्ताद-ए-अख़लाक़ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैन अंसारीयान ने कहा है कि क़यामत के दिन इंसान की पैमाइश का एकमात्र मीज़ान कुरआन और अहले बैत होंगे, इसके अलावा कोई माप और कोई पैमाना मान्य नहीं है। इंसान को चाहिए कि रोज़ाना खुद को इसी मिज़ान पर परखे ताकि ग़फ़लत, गुमराही और लग़जिश से महफ़ूज़ रहे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , मशहूर कुरआन के मुफस्सिर और उस्ताद-ए-अख़लाक़ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैन अंसारीयान ने कहा है कि क़यामत के दिन इंसान की पैमाइश का एकमात्र मानदंड कुरआन और अहले बैत होंगे, इसके अलावा कोई माप और कोई पैमाना मान्य नहीं है। इंसान को चाहिए कि रोज़ाना खुद को इसी मानदंड पर परखे ताकि ग़फ़लत, गुमराही और लिस्लिश से महफ़ूज़ रहे।

तेहरान में ख़िताब करते हुए उन्होंने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के इल्मी और मअनवी मक़ाम का तज़किरा करते हुए कहा कि वजूद-ए-सिद्दीक़ा-ए-ताहिरा इल्म-ए-इलाही का मज़हर था और उनसे मन्क़ूल ख़ुतबात, दुआओं और रिवायतों ने उम्मत के लिए हिदायत का अज़ीम सरमाया मुहैया किया है।

उन्होंने कहा कि मोमिन हक़ीकी वह है जो किसी को नुक़सान न पहुँचाए बल्कि उसकी ज़ात हर जगह ख़ैर और नफ़ा का सबब बने। मोमिन का चेहरा ख़ुश अख़लाक़, ज़बान नर्म, दिल मेहरबान और हाथ बख़्शिश से भरपूर होता है। यही औसाफ इंसान को कमाल के रास्ते पर ले जाता हैं।

हुज्जतुल इस्लाम अंसारीयान ने रसूल अकरम सलल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के फ़रमान"وزنوا قبل أن توزنوا" का ज़िक्र करते हुए कहा कि इंसान को चाहिए कि रोज़ाना अपनी ज़िंदगी का हिसाब ले क्योंकि क़यामत में फ़लसफ़े, नज़रियात और बशरी मकातिब-ए-फ़िक्र मानदंड नहीं होंगे बल्कि कुरआन, नबी करीम सलल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और आम्मा मअसूमीन ही अस्ल मीज़ान-ए-हक़ हैं।

उन्होंने कहा कि इस्लाम कोई सख़्त दीन नहीं, बल्कि हलाल और मशरू लज़्ज़तें इबादत का हिस्सा हैं। तर्क-ए-दुनिया, रियाकाराना रियाज़त और इफ़राती तर्ज़-ए-इबादत का इस्लाम में कोई मक़ाम नहीं।

उस्ताद-ए-अख़लाक़ ने हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को सिर्फ़ ख़वातीन का नहीं बल्कि पूरी इंसानियत का कामिल तरीन नमूना क़रार दिया और कहा कि कुरआन ने भी हज़रत आसिया को मर्द-ओ-औरत सबके लिए नमूना बनाया, लिहाज़ा मक़ाम-ए-विलायत और इस्मत रखने वाली बीबी कैसे सिर्फ़ औरतों के लिए मख़सूस हो सकती हैं?

आख़िर में उन्होंने कहा कि अहले बैत स.ल.की अज़मत पर दुनिया भर के मनफ़ी प्रोपेगंडे मशअल-ए-हिदायत की रोशनी को कम नहीं कर सकते, क्योंकि नूर पर तोहमतें लगाने वाले दरअसल अपनी जहालत का सबूत देते हैं। उन्होंने ताकीद की कि हर मुसलमान रोज़ाना अपनी गुफ़्तार, किरदार और नीयत को कुरआन और अहले बैत के मानदंड पर परखे, यही निजात का रास्ता है।

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