मंगलवार 23 दिसंबर 2025 - 20:48
हक़ीक़ी ईमान ही उम्मते इस्लामिया की निजात का ज़ामिन है।उस्ताद हौज़ा ए इल्मिया

हौज़ा / हौज़ा ए इल्मिया के उस्ताद हुज्जतुल इस्लाम ख़लीली जुइबारी ने कहा है कि उम्मत-ए-इस्लामिया की निजात केवल सतही और रोज़मर्रा के मामूली ईमान से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए हक़ीक़ी ईमान के साथ इल्मी और अमली मुजाहिदत अनिवार्य है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हुज्जतुल इस्लाम ख़लीली जुइबारी ने ईरान के शहर सारी में हौज़ा न्यूज़ से बातचीत करते हुए कहा कि अगर रूहानियत और दीनी तबक़ा सतही नज़रिये से निकलकर इल्मी व अमली संघर्ष के ज़रिये अहलेबैत (अ.स.) की शुद्ध और वास्तविक शिक्षाओं को समाज के सामने पेश करे, तो उम्मत-ए-इस्लामिया के लिए रूहानी तरक़्क़ी और दुनिया-आख़िरत के अज़ाब से निजात का रास्ता हमवार हो सकता है।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि लोगों को दीन की बाहरी शक्लों तक सीमित रखने के बजाय दीन के बातिन की ओर रहनुमाई की जानी चाहिए।

हुज्जतुल इस्लाम ख़लीली जुइबारी ने सूरह-ए-निसा (आयत 136) का हवाला दिया, जिसमें मोमिनों को दोबारा हक़ीक़ी ईमान की दावत दी गई है। साथ ही सूरह-ए-सफ़ (आयत 10 और 11) की तिलावत करते हुए बताया कि निजात दिलाने वाली “तिजारत” अल्लाह और उसके रसूल (स.) पर ईमान तथा राह-ए-ख़ुदा में जान-माल से जिहाद है।

उन्होंने इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) की रिवायत बयान की कि इस्लाम ज़ाहिरी अहकाम की ज़मानत देता है, लेकिन अज्र-ओ-सवाब ईमान पर मिलता है। हौज़ा के इस उस्ताद ने फ़रसूदा और बे-फ़ायदा विषयों में उलझने पर तनक़ीद करते हुए कहा कि इल्मी काम के लिए गहरी मेहनत और उम्र-भर की तहक़ीक़ दरकार होती है जैसा कि आयतुल्लाह मज़ाहिरी और अल्लामा जवादी आमोली ने भी ज़ोर दिया है।

उन्होंने वाज़ेह किया कि सतही ईमान इंसान को निजात नहीं दिलाता, बल्कि तौहीद, नबूवत और राह-ए-ख़ुदा में मुजाहिदा ही निजात का रास्ता है। यह ख़िताब अगरचे तमाम मोमिनों के लिए है, लेकिन ख़ास तौर पर अहले-इल्म और उलेमा के लिए एक गंभीर पैग़ाम है। इस्लामी तारीख़, ख़ासकर वाक़ेआ-ए-कर्बला, इसकी रौशन मिसाल है कि किस तरह केवल ज़ाहिरी ईमान रखने वाले लोग हक़ के मुक़ाबले खड़े हो गए।

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