हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , स्वर्गीय आयतुल्लाह अज़ीज़ुल्लाह ख़ुशवक्त (रह.) ने अपने एक दर्स-ए-अखलाक़ में उस्ताद के चुनाव और हकीकी रहनुमाई के मौज़ू पर बात करते हुए कहा कि इंसान अक्सर इस बात में उलझ जाता है कि किसे अपना उस्ताद बनाए, लेकिन हकीकत में सबसे बड़ा उस्ताद खुद खुदावंद है।
आयतुल्लाह ख़ुशवक्त (रह.) ने फ़रमाया कि खुदा का फरमान गुनाह न करो इंसानी तरबीयत का सबसे जामे दर्स-ए-हिदायत है। अगर कोई शख्स इल्म का उस्ताद हो लेकिन खुद झूठ, फरेब या गुनाह में मुबतला हो, तो वह हकीकी मायनों में रहनुमा नहीं बन सकता।
उन्होंने अफसोस का इज़हार करते हुए कहा कि खुदा अपने बेपायान इल्म व अज़मत के बावजूद हमें वाज़ेह तौर पर कहता है कि गुनाह न करो लेकिन हम सुनते हुए भी उसकी नाफरमानी करते रहते हैं। बार-बार तौबा और वादों के बावजूद इंसान अपनी पुरानी रविश की तरफ लौट जाता है।
स्वर्गीय आयतुल्लाह ख़ुशवक्त र.ह.) ने ज़ोर दिया कि हकीकी हिदायत इसी वक्त नसीब होती है जब इंसान खुदा के फरमान के मुताबिक अमल करे। उनके बयान के मुताबिक, जो शख्स सीधी राह का तालिब है उसे अल्लाह की हिदायात पर चलना चाहिए, न कि सिर्फ शख्सियत और बड़े नामों के पीछे भागना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जब तक हम खुदा के हुक्म को मुक़द्दम नहीं रखेंगे, उस वक्त तक हकीकी हिदायत और रूहानी तरबीयत मुमकिन नहीं, चाहे हम बाहिरी तौर पर कितने ही शिक्षकों या मुरशिदों की तलाश में क्यों न रहें।
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