हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , ज़िंदगी के बड़े सबक क्लासरूम में नहीं बल्कि रोज़मर्रा की सादगी भरी ज़िंदगी में छुपे होते हैं।
एक दिन रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम मस्जिद की तरफ जाते हुए कुछ बच्चों के पास से गुज़रे जो खेल में मशगूल थे। बच्चों ने आपके चारों तरफ घेरा बना लिया और अदब से कहा,आप हमारी ऊँटनी बन जाएँ, हम आपकी पीठ पर बैठकर खेलें।
इधर सहाबा मस्जिद में नमाज़ के इंतज़ार में थे, इसलिए हज़रत बिलाल को आपकी तलाश में भेजा गया।
पैगंबर-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम ने बिलाल से फरमाया,मेरे घर जाओ और बच्चों के लिए कुछ लेकर आओ।
बिलाल गए और घर में आठ अखरोट पाए जो रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम की ख़िदमत में लाए।
रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम ने बच्चों से फरमाया,क्या तुम अपनी इस ऊँटनी को इन आठ अखरोटों के बदले बेचोगे?
बच्चे खुशी-खुशी राजी हो गए और इस तरह मुहब्बत और खुशी के साथ उन्होंने आपको जाने दिया।
इस वाक़िए की रौशनी में तालीम व तरबियत का सिद्धांत यह है कि बच्चों को किसी काम या उनके पसंदीदा खेल से रोकना हो तो ऐसा तरीका इख़्तियार किया जाए जिससे वे ख़ुशदिली के साथ तैयार हों ना कि ज़बरदस्ती, दबाव या सख़्ती के ज़रिए।
जैसे कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम ने बच्चों की पसंद के मुताबिक मामले को अंजाम देकर उन्हें राज़ी-रज़ामंदी के साथ खेल छोड़ने पर तैयार किया।
स्रोत: सीरत-ए-तरबियती पैगंबर व अहल-ए-बैत अलैहिमुस्सलाम, पेज 87
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