शनिवार 13 सितंबर 2025 - 13:43
हमेशा दूसरों को सलाम करने में सबक़त करें। मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी

हौज़ा / खोजा शिया अशना अशरी जामा मस्जिद पाला गली मुंबई में खुत्बा ए जुमआ देते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी ने कहा कि पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम की सीरत हम सभी के लिए एक संपूर्ण आदर्श है। हमें उनकी विनम्रता, अच्छे आचरण और सलाम में सबक़त जैसे गुणों को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मुंबई / खोजा शिया अशना अशरी जामा मस्जिद पाला गली में 12 सितंबर 2025 को जुमे की नमाज़ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी की इमामत में अदा की गई।

मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी ने सूरह अहज़ाब की आयत 21 का वर्णन करते हुए कहा, पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम का जीवन, उनका तरीक़ा और उनका ढंग हमारे लिए सर्वोत्तम आदर्श है। पूरी ब्रह्मांड में ईमान वालों का दर्जा बड़ा है, और ईमान वालों में अवलिया का, ओवलिया में नबियों का और नबियों में रसूलों का, और रसूलों में हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम का दर्जा सबसे ऊंचा है।

उन्होंने आगे कहा,ब्रह्मांड में सबसे अफ़्ज़ल सबसे अला (उच्च), सबसे अकमल (संपूर्ण) यदि कोई सत्व है, तो वह हमारे रसूल की पवित्र हस्ती है। उनसे बढ़कर कोई नहीं है, उनके अमल से बेहतर, उनके तरीक़े से बेहतर, उनके अंदाज़ से बेहतर किसी का अंदाज़ नहीं हो सकता। कोई नबी, कोई वली, कोई वसी, कोई भी कितना भी बड़ा क्यों न हो, वह पैगंबर के बराबर होने की बात तो दूर, उनके कदमों की मिट्टी भी नहीं हो सकता।

मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी ने यह बताते हुए कि पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम की विशेषताएं हमारे जीवन में होनी चाहिए, हमें अल्लाह से मदद मांगनी चाहिए, गिड़गिड़ा कर अल्लाह से पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम के तरीक़े पर, उनके नक़्शे-क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ की दुआ मांगनी चाहिए, कहा,पैगंबर-ए-इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम जब रास्ता चलते थे तो धीरे-धीरे चलते थे, आराम से चलते थे, वक़ार के साथ चलते थे। जब चलते थे तो ज़मीन पर पैर घसीट कर नहीं चलते थे, उनके चलने में आवाज़ नहीं होती थी। कुछ लोग इस तरह से चलते हैं, ऐसे जूते पहनते हैं जो खट-खट की आवाज़ करते हैं, जबकि हुज़ूर आराम के साथ चलते थे और ज़मीन पर पैर नहीं घसीटते थे।

उन्होंने आगे कहा,जब वह चलते थे तो निगाहें झुकी रहती थीं, ज़मीन की तरफ देखकर चलते थे, सिर उठाकर अभिमान के साथ नहीं चलते थे, विनम्रता के साथ चलते थे।

पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम की सीरत में "दूसरों को सलाम करने" के संबंध में मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी ने कहा,हुज़ूर जब किसी को देखते थे तो सबसे पहले सलाम करते थे, इंतज़ार नहीं करते थे कि लोग उन्हें सलाम करें। आज हमारा तरीक़ा यह है कि हम इंतज़ार करते रहते हैं कि कोई हमें सलाम करे तो हम सलाम का जवाब दें।

उन्होंने आगे कहा,यहां तक कि पैगंबर-ए-अकरम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही व सल्लम बच्चों को सलाम करते थे और कोशिश करते थे कि सलाम करने में कोई उनसे सबक़त (तेज़ी) न ले जाए। और शायद हमारा तरीक़ा इससे अलग है, हम इंतज़ार करते रहते हैं कि लोग हमें सलाम करें।

मौलाना सय्यद अहमद अली आबिदी ने ज़ोर देकर कहा,हमारे घरों में छोटे बच्चे हैं, हम अपने घरों में भी अपने बच्चों को सलाम करें, न कि इंतज़ार करें कि हमारे बच्चे हमें सलाम करें। और इसका कारण यह है कि अगर हम सलाम करेंगे तो अल्लाह ने सलाम करने के 70 फायदे रखे हैं, सलाम के 70 सवाब (पुण्य) रखे हैं। 69 सवाब उसे मिलता है जो पहले सलाम करता है और एक उसे मिलता है जो जवाब देता है। तो क्या हम बच्चों के सलाम का इंतज़ार करके एक सवाब हासिल करें या खुद उन्हें सलाम करके 69 सवाब हासिल कर लें?

उन्होंने आगे कहा,सलाम करने में सबक़त (तेज़ी) करें, न कि इंतज़ार करें कि कोई दूसरा हमें सलाम करे। घर, दफ़्तर, दुकान, कारखाना, जहाँ भी हों, हमेशा सलाम करने में सबक़त करें।

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