हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , कभी-कभी ज़ियारत एक ही सलाम में सिमट जाती है; ऐसा सलाम जिसका जवाब भी मिलता है और जो दिल को सुकून प्रदान करता है।
आयतुल्लाह अली अकबर मसऊदी कहते हैं,मैंने सुना कि आयतुल्लाह बहाउद्दीनी इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ज़ियारत के लिए मशहद तशरीफ़ लाए और मस्जिद गौहरशाद की ओर से हरम-ए-मुतह्हर के दरवाज़े के क़रीब तक गए। फिर सलाम अर्ज़ करने के बाद वहीं से वापस लौट आए, बिना इसके कि हरम के अंदर दाख़िल हों।
मैंने उनसे पूछा: आप हरम के अंदर क्यों तशरीफ़ नहीं ले गए?
मैने एक संक्षिप्त सलाम के साथ ही ज़ियारत को पूर्ण समझा तथा वहीं से वापस लौट आए।

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