हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अल्लामा सय्यद मुहम्मद हुसैन "साहिबे तज़किरा ए बे-बहा" एक निहायत बा-सलाहियत आलिम, फाज़िल, अदीब, खतीब और नामवर मोअल्लिफ़ थे।
अल्लामा मुहम्मद हुसैन 1866ई॰ में नौगाँवा सादात में पैदा हुए। आप ने आठ बरस की उम्र में तालीम का आग़ाज़ अपने वतन के सरकारी स्कूल से किया। 1878 ई॰ में मौसूफ़ ने मौलाना सय्यद असगर हुसैन से किताब "दस्तूरुल-मुब्तदी" पढ़ी और सन 1880 ई॰ में मीराँपुर (जिला मुज़फ़्फ़रनगर) में मौलाना शेख सज्जाद हुसैन बुलंद शहरी से किताब "नहु मीर" और अन्य दरसी किताबें हासिल कीं। उसके बाद मुख़तलिफ़ असातिज़ा से "मुख्तसेरुन-नाफ़े" और "शरहे तहज़ीब" जैसी अहम किताबें भी पढ़ीं।
मज़ीद तालीम के लिए आप ने मदरसा मनसबिया मेरठ का रुख़ किया और वहाँ के नामवर असातेज़ा से क़सब-ए-फ़ैज़ किया। आपकी ज़हानत का ये आलम था कि दौरान-ए-तालीम ही निचली जमाअतों के तुल्लाब को पढ़ाने लगे। जिन में मौलाना सय्यद मोहम्मद हादी, मौलाना सय्यद आफ़ताब अली, मौलवी सय्यद रिज़ा हुसैन और मौलाना सय्यद औलाद हुसैन नौगाँवी जैसे तुल्लाब शामिल थे।
मेरठ के बाद मौसूफ़ ने लखनऊ का रुख़ किया और वहाँ के अज़ीम-उल-मर्तबत असातिज़ा से क़सब-ए-फ़ैज़ किया, जहाँ क़ुद्वतुल-औलमा आक़ा हसन आप के हमदर्स थे।
आप के नुमाया असातिज़ा में सय्यदुल-मुहद्देसीन मीर मोहम्मद शाह कश्मीरी लखनऊ, सय्यदुज़-ज़ाक़िरीन मीर सय्यद अली बारहवी लखनऊ, मौलाना मुहम्मद हुसैन मारूफ़ बा आगा-ए-अल्लन, मौलाना शेख सज्जाद हुसैन बुलंदशहरी और मौलाना सय्यद असगर हुसैन शामिल हैं।
अल्लामा के इल्मी कमालात और बलंद अख़लाक़ से मुताअस्सिर हो कर मुताअद्दिद अकाबिर औलमा-ए-किराम ने आप को इजाज़ात अता किए। जिन में: बहरूल-उलूम आयतुल्लाह शेख हुसैन माज़ंदरानी, आयतुल्लाह अब्दुल हुसैन रशती, मलाज़ुल-औलमा सय्यद बच्छन लखनऊ, मुहक़्क़िक़े हिंदी मौलाना मुहम्मद हुसैन और मुहद्दिसे लखनऊ के अस्माए-गिरामी क़ाबिल-ए-ज़िक्र हैं।
इब्तिदाई ज़िंदगी से ही आप को मुहम्मद व आले-मुहम्मद स: के फ़ज़ाइल और मसाइब बयान करने का शौक़ था, चुनानचे आप ने सय्यदुल-मुहद्देसीन मीर मुहम्मद शाह कश्मीरी और सय्यदुज़-ज़ाक़िरीन मीर सय्यद अली बारहवी की रहनुमाई में फ़न-ए-ख़िताबत में गैर मामूली महारत हासिल की।
सन 1887 ई॰ में तालीम मुकम्मल करने के बाद आप लखनऊ से वतन वापस तशरीफ़ लाए। जब सहारनपुर के मोमिनीन को आप के इल्मी मक़ाम का अंदाज़ा हुआ तो उन्होंने आप को वहाँ बुलाया। चुनानचे आप सन 1895 ई॰ तक सहारनपुर में खिदमत-ए-दीन, तदरीस और इमामत-ए-जुमा व जमाअत जैसे फराइज़ अंजाम देते रहे। उसके बाद ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर की बस्ती जानसठ के नवाब ने आप को अपनी बस्ती में आने की दावत दी। काफ़ी इसरार के बाद आप वहाँ तशरीफ़ ले गए।
जांसठ पहुँचने के बाद आप ने जामा' मस्जिद रंग महल में इमामत-ए-जमाअत, तबलीग और अन्य दीनी खिदमतों की ज़िम्मेदारी संभाली। अहल-ए-ख़ैर की माली मदद से तब्लीग-ए-दीन का वसी’ मैदान मयस्सर आया। तालिब-ए-इल्म के दौर से ही आप मुख़्तलिफ़ शहरों और देहातों में तब्लीग के लिए जाते और मुहर्रमुल-हराम में मज़ालिस पढ़ते थे। जहाँ भी तशरीफ़ ले गए, लोग पुर-इसरार रहते कि आप वहीं क़याम करें। आप ने तक़रीबन 46 बरस जांसठ में इमामत और तब्लीग के फराइज़ अंजाम दिए।
आप को मुतअद्दिद बार ज़ियारत और हज की सआदत हासिल हुई। पहली बार 1891 ईसवी में आप ने हज और मदीना मुनव्वरा की ज़ियारत की। दूसरी मर्तबा तक़रीबन 1901 ईसवी में अतबात-ए-आलियात की ज़ियारत के लिए इराक़ गए और नजफ़ व करबला में औलमाए किराम के साथ इल्मी मुबाहिसों में शरीक हुए। इन्हीं मुबाहिसों के बाद अकाबिर औलमा ने आप को इजाज़ात-ए-नक़्ल-ए-रिवायत अता किये, जिसका ज़िक्र आपने अपनी किताब "तज़किरा-ए-बे-बहा" के दीबाचे में किया है।
अल्लामा ने तमाम तर मसरूफ़ियात के बावजूद इल्मी मैदान में गिरां क़द्र कारनामे अंजाम दिए और कई अहम तसानीफ़ यादगार छोड़ीं। जिन में: उलमाए शिया के हालात पर मुश्तमिल किताब "तज़किरा-ए-बे-बहा" जो उर्दू ज़बान में हिंदुस्तानी औलमा का पहला तज़किरा है (जो 1932ई॰ में शाया हुआ), "ज़ीनतुल-मनाबिर", "कशकोल", "ज़ीनतुल-मजालिस" (3 जिल्द), "अल-मिनशार लिक़तलिल अहज़ार, "पिराहन-ए-यूसुफ़ी", "नार-ए-हामिया", "रिसाला ए फ़दक", "मसाइब-उल-अबरार", "हाशिया उसूल-ए-काफी", "मुनाजात-ए-आसी" (इस्तिगासाते-ए-मनज़ूम), "अक़ायिद-ए-मनज़ूम", "तोहफ़तुल-अख़्यार फी निजातिल मुख्तार", "शरह-ए-अलफ़िया" और "दुर्रतुन हैदरीया" शामिल हैं।
मौसूफ़ सन1885 ईसवी में रिश्ता-ए-इज़देवाज में मुनसलिक हुए और अल्लाह ने आप को तीन बेटे अता किए। बड़े बेटे मौलाना मुहम्मद हसन अपने वक्त के आलिम-ए-बा-अमल थे, मुहम्मद हसनैन आबिदी मारूफ़ मद्दाह थे, और मौलाना सय्यद मुहम्मद मुजतबा अदीब, मुफ़क्किर और आलिम के तौर पर मशहूर हुए।
आख़िरकार ये इल्म और अमल का दर्ख़्शां आफ़ताब 18 जनवरी 1943 ईसवी को अपने वतन में गुरूब हो गया। चाहने वालों का मजमा आप के बैत उश-शरफ़ पर उमड़ पड़ा, कसीर तादाद में औलमा और मोमिनीन ने तशी‘-ए-जनाज़ा में शिरकत की। नमाज़-ए-जनाज़े के बाद हज़ार आहो बुका के हमराह जसदे-ए-ख़ाक़ी को आप के आबाई क़ब्रिस्तान नौगावाँ सादात में सुपुर्द-ए-ख़ाक़ कर दिया गया।
माखूज़ अज़: मौलाना गाफिर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-1 पेज-225 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2024ईस्वी।
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