हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , लखनऊ/ पिछले सालों की तरह इस साल भी बारगाह-ए-उम्मुल बनीन स.अ.मंसूर नगर में सुबह साढ़े सात बजे अशरा-ए-मजालिस" का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी तकरीर कर रहे हैं।
मौलाना ने अशरा-ए-मजालिस की आठवीं मजलिस में रसूलुल्लाह (स.अ.व.) की मशहूर हदीस बेशक इमाम हुसैन (अ.स.) हिदायत का चिराग़ और नजात की कश्ती हैं को अपने कलाम का मुख्य विषय बनाते हुए कहा, जिसे इमाम हुसैन (अ.स.) हिदायत दें, उसे कोई गुमराह नहीं कर सकता, और जो इमाम हुसैन (अ.स.) से दूर हो, वह कभी हिदायत याफ्ता नहीं हो सकता। क्योंकि इमाम हुसैन (अ.स.) हिदायत के चिराग़ हैं।
मौलाना ने हज़रत अब्बास अ.स.की ज़ियारत का ज़िक्र करते हुए कहा,हज़रत अब्बास (अ.स.) अल्लाह के सच्चे बंदे थे। उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी खुदा की इबादत में गुज़ार दी।
मौलाना ने आगे कहा, मासूम इमाम ने हज़रत अब्बास (अ.स.) की ज़ियारत में फरमाया कि वह अल्लाह, रसूल, अमीरुल मोमिनीन, इमाम हसन और इमाम हुसैन (अ.स.) के वफादार थे। यानी वह बिना किसी सवाल-जवाब के अहले बैत (अ.स.) की इताअत करते थे और इस राह में किसी मलामत करने वाले की परवाह नहीं करते थे।
मौलाना ने यह बयान करते हुए कि शिम्र मलऊन हज़रत अब्बास (अ.स.) और उनके भाइयों के लिए अमन नामा लेकर आया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया, कहा, जिस तरह इमाम हुसैन (अ.स.) ने बैअत से इनकार किया, उसी तरह हज़रत अब्बास (अ.स.) ने अमन से इनकार कर दिया और दुनिया को सिखा दिया कि अल्लाह का मुख़लिस बंदा कभी ज़िल्लत की ज़िंदगी नहीं जीता। अल्लाह का बंदा अपनी जान तो कुर्बान कर सकता है, लेकिन कभी ज़िल्लत को कबूल नहीं कर सकता।
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