रविवार 21 दिसंबर 2025 - 19:50
मरहूम नूरुल इस्लाम ख़ान (र) की याद में शोक व स्मृति सभा का आयोजन

हौज़ा / मरहूम के विचारों, उनकी सजग और विवेकपूर्ण सोच, धार्मिक जीवन तथा प्रचारात्मक गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने श्रोताओं के समक्ष मरहूम की सेवाओं, आदर्शों, उच्च नैतिकता और पेशेवर चरित्र को उजागर करते हुए बताया कि किस प्रकार उन्होंने समाज को एक नई वैचारिक दिशा प्रदान की।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, दिनांक 21 दिसंबर 2025 को नुरुल इस्लाम अकैडमी की तरफ से कोलकाता शहर के हातियाड़ा क्षेत्र में मरहूम नूरुल इस्लाम ख़ान (रह.) की याद में एक गरिमामय शोक एवं स्मृति सभा आयोजित की गई। इस सभा में उलेमा-ए-किराम, शुभचिंतक तथा समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े लोगों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। सभी उपस्थितजनों ने सर्वसम्मति से मरहूम की इल्मी दूरदर्शिता, कुर्बानियों और दीन-ए-इस्लाम के लिए उनके संघर्ष को अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ याद किया।

सभा को संबोधित करने वाले सम्मानित उलेमा:

मौलाना शाहजहान

मौलाना हबीबुल्लाह ख़ान

मौलाना मुनीर अब्बास नजफ़ी

मौलाना मुकब्बिर हसन ख़ान

मौलाना डॉ. मुहम्मद रिज़वान उस सलाम ख़ान

सभी वक्ताओं ने मरहूम के विचारों, उनकी सजग और विवेकपूर्ण सोच, धार्मिक जीवन तथा प्रचारात्मक गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने श्रोताओं के समक्ष मरहूम की सेवाओं, आदर्शों, उच्च नैतिकता और पेशेवर चरित्र को उजागर करते हुए बताया कि किस प्रकार उन्होंने समाज को एक नई वैचारिक दिशा प्रदान की।

इसके पश्चात मरहूम के परिजनों की ओर से विचार व्यक्त किए गए:

सुपुत्र: टीचर नज़रुल इस्लाम ख़ान

पौत्र: नज्मुल इस्लाम ख़ान

दामाद: मास्टर इदरीस अली ख़ान

डॉ. मुईनुद्दीन चिश्ती

इन चारों वक्ताओं ने मरहूम की व्यक्तिगत स्मृतियाँ, उनके उत्कृष्ट चरित्र, परिवार के प्रति उनकी अपार मोहब्बत, एकता और त्याग के उदाहरण तथा उनके शैक्षिक व प्रशिक्षणात्मक योगदान को अत्यंत भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया।

मरहूम के धार्मिक जीवन में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक वैचारिक परिवर्तन आया। प्रारंभ में वे हनफ़ी फ़िक़्ही विचारधारा और जमाअत-ए-इस्लामी से जुड़े थे, किंतु गहन शोध, चिंतन और निरंतर खोज के परिणामस्वरूप वे अहले बैत (अलैहिमुस्सलाम) के सच्चे मार्ग तक पहुँचे। उन्होंने न केवल स्वयं इस मार्ग को अपनाया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी इसी राह पर प्रशिक्षित किया। इसी उद्देश्य से उन्होंने अपने पोतों और अन्य वंशजों को अहले बैत (अ.) की मानवीय व वैचारिक शिक्षाओं के संस्थानों में प्रवेश दिलाया। आज उनके पोते स्वयं दीन के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में सक्रिय हैं, जो मरहूम के सपनों, विश्वास और विचारधारा का जीवंत प्रमाण है।

मरहूम की प्रमुख रचनाएँ:

ख़िलाफ़त बनाम इमामत

तलाक़ और तीन तलाक़: क़ुरआन व हदीस की रोशनी में

एकता किस मार्ग पर? हिकमत या अवसरवाद?

वे विचार जिन्होंने मुझे जमाअत-ए-इस्लामी छोड़ने पर मजबूर किया

इसके अतिरिक्त दस से अधिक अन्य पुस्तकें और शोधात्मक लेख

इन कृतियों से मरहूम की गहन, तार्किक और दूरदर्शी सोच स्पष्ट रूप से झलकती है। उन्होंने समकालीन समस्याओं के समाधान के लिए क़ुरआन और सुन्नत की बुनियाद पर ज्ञानपूर्ण और अनुभवसंपन्न विमर्श को बढ़ावा दिया। उनके प्रयासों के फलस्वरूप पश्चिम बंगाल के बंगाली क्षेत्र में सैकड़ों लोग सत्य मार्ग और धार्मिक सच्चाई की ओर आकर्षित हुए—जो एक दुर्लभ और अमूल्य सफलता है।

सभा के समापन से पूर्व सामूहिक दुआ, फ़ातिहा-ख़्वानी और ईसाले सवाब किया गया, जिसमें निम्न दुआएँ की गईं:

मरहूम की रूह के लिए स्थायी सुकून और दर्जों की बुलंदी

परिजनों के लिए सब्र, शांति और राह-ए-हक़ पर दृढ़ता

इस्लाम की सच्ची तब्लीग़ और उन्नति के लिए नई ऊर्जा

अल्लाह तआला की रहमत से सभी प्रयासों की क़बूलियत और बरकत

अंत में सभी उपस्थितजनों ने अल्लाह की बारगाह में हाथ उठाकर दुआ की:

“ऐ अल्लाह! मरहूम की रूह को जन्नत के उच्चतम दर्जों में स्थान प्रदान फ़रमा, उन्हें अंबिया, औलिया और अहले बैत के साथ महशूर फ़रमा, और हमें—जो उनके बताए मार्ग पर चल रहे हैं—सत्य, सब्र और हक़परस्ती में उनका सच्चा उत्तराधिकारी बना। आमीन।”

अल्हम्दुलिल्लाह—मरहूम की स्मृति के प्रति अपार श्रद्धांजलि।

आज बंगाल के विभिन्न ज़िलों में उनके पदचिह्नों पर चलने और उनके दिखाए मार्ग को अपनाने वालों की मेहनत और उसके फल स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं—जहाँ सीधे-साधे लोग धर्म-ए-हक़ की ओर आए हैं और आ रहे हैं।

ख़ुदावंद उन्हें अपनी असीम रहमत में डुबो दे।
आमीन या रब्बुल आलमीन।

मरहूम नूरुल इस्लाम ख़ान (र) की याद में शोक व स्मृति सभा का आयोजन

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