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  • ज़ुल्म के संगलाख़ सहरा मे अहले-बैत की मुहब्बत के गुलशन की सिंचाई

    ज़ुल्म के संगलाख़ सहरा मे अहले-बैत की मुहब्बत के गुलशन की सिंचाई

    हौज़ा / सामर्रा कोई बड़ा शहर नहीं था मगर इन दो हस्तियों इमाम अली नक़ी और इमाम हसन असकरी अलैहिमुस्सलाम ने संपर्क और सूचना का ऐसा विशाल नेटवर्क बनाया कि वह इस्लामी दुनिया के कोने कोने तक फैल गया और आपने एक महान तब्लिग़ का सिलसिला शुरू किया

  • सुप्रीम लीडर की नज़र में कूफ़ा और कूफ़ियों का स्थान

    सुप्रीम लीडर की नज़र में कूफ़ा और कूफ़ियों का स्थान

    हौज़ा/ इतिहास में ज़मीर फ़ोरोशो ने हमेशा सरफ़ोरोशो को बदनाम करने की कोशिश की है। सरफ़ोरोशो की किस्मत बदनामी, इल्ज़ाम, जेल और फांसी रही है, जबकि ज़मीर फ़ोरोशो और उगते सूरज के पुजारियों को हमेशा खास अधिकार, टाइटल, सोना और जवाहरात और दूसरी सुविधाएँ दी गई हैं। इस मामले में, इस्लाम के इतिहास में सबसे ज़्यादा ज़ुल्म कूफ़ा शहर और कूफ़ा के लोगों पर हुआ है।

  • पक्के इरादे और प्लानिंग से ग़लतियो की भरपाई करें

    पक्के इरादे और प्लानिंग से ग़लतियो की भरपाई करें

    हौज़ा / इमाम हादी (अ) ने एक रिवायत में पक्के इरादे और प्लानिंग से ग़लतियो के पछतावे की भरपाई करने पर ज़ोर दिया है।

  • 4 रजब उल मुरज्जब  1447 - 25 दिसम्बर 2025

    4 रजब उल मुरज्जब  1447 - 25 दिसम्बर 2025

    हौज़ा / इस्लामी कैलेंडरः 4 रजब उल मुरज्जब  1447 - 25 दिसम्बर 2025

  • “अल्लाहो अकबर” “सुबहानसअल्लाह” से बेहतर क्यों है?

    “अल्लाहो अकबर” “सुबहानसअल्लाह” से बेहतर क्यों है?

    हौज़ा/ “सुबहान अल्लाह” का मतलब है कि अल्लाह तआला को पवित्र और हर तरह की बुरी और खराब चीज़ो से आज़ाद माना जाता है; जबकि “अल्लाहो अकबर” का मतलब है कि अल्लाह तआला को बेहतर और हर उस खूबी से आज़ाद माना जाता है जो हम उनके लिए बताते हैं, चाहे वह खूबी मौजूद हो या न हो। इसका कारण यह है कि हम अल्लाह के लिए जो भी खूबी बताते हैं वह सीमित है और दूसरी बातों को शामिल नहीं कर सकती, जबकि अल्लाह तआला किसी सीमा या रुकावट से सीमित नहीं है।

  • “या मन अरजूहो” दुआ के आखिर में दाहिना हाथ क्यों हिलाया जाता है?

    “या मन अरजूहो” दुआ के आखिर में दाहिना हाथ क्यों हिलाया जाता है?

    हौज़ा/ “या मन अरजूहो, सभी भलाई के लिए” दुआ रजब महीने की असली दुआओ में से एक है, जिसके साथ इमाम (अ) से एक खास प्रैक्टिकल तरीका भी बताया गया है। पुराने ज़माने के सोर्स इस प्रैक्टिस और इसकी स्पिरिचुअल फिलॉसफी की डिटेल्स बताते हैं।

  • हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहदत के मौके पर संक्षिप्त परिचय

    हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहदत के मौके पर संक्षिप्त परिचय

    हौज़ा / दसवें इमाम, हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत 3 रजब सन 254 हिजरी में इराक़ के शहर सामरा में हुई। आप का नाम अली, लक़ब नक़ी और हादी है, आप के वालिद इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम और वालिदा हज़रत समाना (स.अ) थीं

  • हज़रत इमाम हादी अ.स. का दौर और उम्मत की रहनुमाई

    हज़रत इमाम हादी अ.स. का दौर और उम्मत की रहनुमाई

    हौज़ा / जब फिक्री और अख़्लाक़ी लगज़ीश आम हो चुकी थीं, तो एक रिवायत में हज़रत इमाम हादी (अ.स.) एक बेहद अहम बीमारी की तरफ़ इशारा करते हैं,मुश्किलात को ज़माने से मंसुब करना...... ।

  • हज़रत इमाम हादी (अ); जन्म, परिवार और समय

    हज़रत इमाम हादी (अ); जन्म, परिवार और समय

    हौज़ा / इमाम अली बिन मुहम्मद अल-नकी (अ) (212–248 हिजरत) अहले बैत (अ) के दसवें इमाम हैं। उन्हें नकी और हादी के टाइटल दिए गए थे। उनका जन्म 15 रमज़ान या 15 ज़ुल हिज्जा 212 हिजरी को मदीना में हुआ था। उनके पिता इमाम मुहम्मद तकी (अ) थे और उनकी माँ समाना मग़रिबिया थीं। उन्होंने 8 साल की उम्र में इमामत का पद संभाला था।

  • हज़रत इमाम अली नकी (अ) का व्यक्तित्व और चरित्र

    हज़रत इमाम अली नकी (अ) का व्यक्तित्व और चरित्र

    हौज़ा/हज़रत इमाम अली नकी (अ), जिन्हें इमाम अली हादी के नाम से भी जाना जाता है, सिलसिला ए इस्मत के दसवें इमाम और बारहवें मासूम हैं। उनकी ज़िंदगी ज्ञान, नेकी, सब्र और लगन की एक शानदार मिसाल है।

  • नसीहत स्वीकार करना ​​और ख़ैर ए इलाही की निशानी

    नसीहत स्वीकार करना ​​और ख़ैर ए इलाही की निशानी

    हौज़ा / इमाम नकी (अ) ने एक रिवायत में बंदों के लिए खुदा की अच्छाई की निशानी बताई है; एक ऐसी निशानी जो लोगों के रोज़ाना के व्यवहार में भी देखी जा सकती है।

  • 3 रजब उल मुरज्जब 1447 - 24 दिसम्बर  2025

    3 रजब उल मुरज्जब 1447 - 24 दिसम्बर  2025

    हौज़ा / इस्लामी कैलेंडरः 3 रजब उल मुरज्जब 1447 - 24 दिसम्बर  2025

  • इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) और कुरान एवंम हदीस से तौहीद और अदल के सबूत पर दलील

    इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) और कुरान एवंम हदीस से तौहीद और अदल के सबूत पर दलील

    हौज़ा/हमारे पांचवें इमाम मुहम्मद बाकिर (अ) ज्ञान और समझदारी के वह सागर हैं जिन्हें "बाकिर-उल-उलूम" कहा जाता है, जो साइंस को बांटते हैं। उनके समय में, इस्लामिक समाज में ग्रीक फिलॉसफी और अलग-अलग नास्तिक विचार बढ़ रहे थे। लोग उन बातों को सुनकर प्रभावित हो रहे थे जो उन्हें अच्छी लगती थीं, लेकिन उस समय के इमाम ने समझदारी और कुरान के तर्कों से उनका जोरदार मुकाबला किया।

  • अमीरुल मोमेनीन (अ) की नज़र में इंसान के लिए तीन खतरनाक मुसीबतें

    अमीरुल मोमेनीन (अ) की नज़र में इंसान के लिए तीन खतरनाक मुसीबतें

    हौज़ा / अमीरुल मोमेनीन इमाम अली (अ) ने चेतावनी दी है कि स्वार्थ, पावर पर अंधा भरोसा और तारीफ़ का बहुत ज़्यादा प्यार, लीडर्स और इंसानों के लिए तीन खतरनाक मुसीबतें हैं।

  • पैग़म्बर की ज़िंदगी में बच्चों की इज़्ज़त

    पैग़म्बर की ज़िंदगी में बच्चों की इज़्ज़त

    हौज़ा/ बच्चे की इज़्ज़त प्रैक्टिकल होनी चाहिए; पवित्र पैग़म्बर (स) ने इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) के लिए खड़े होकर, उनका स्वागत करने के लिए आगे बढ़कर, और प्यार और दया दिखाकर यह महान मूल्य दिखाया।

  • औरतों के लिए सबसे अच्छा सिफ़ारिश करने वाला

    औरतों के लिए सबसे अच्छा सिफ़ारिश करने वाला

    हौज़ा / हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) ने अल्लाह की नज़र में औरतों के लिए सबसे अच्छा सिफ़ारिश करने वाले के बारे में बताया है।

  • 2 रजब उल मुरज्जब 1447 - 23 दिसम्बर 2025

    2 रजब उल मुरज्जब 1447 - 23 दिसम्बर 2025

    हौज़ा / इस्लामी कैलेंडरः 2 रजब उल मुरज्जब 1447 - 23 दिसम्बर 2025

  • नास्तिक से बहस करें, फिर पहले अपनी सोच को सही करें

    नास्तिक से बहस करें, फिर पहले अपनी सोच को सही करें

    हौज़ा / बहस सिर्फ़ भाषा की समझ का टेस्ट नहीं है, बल्कि सोच की मैच्योरिटी का टेस्ट है, और यह टेस्ट सिर्फ़ वही दे सकता है जिसके दिल और दिमाग में अल्लाह एक साफ़, पवित्र और अनलिमिटेड सच्चाई के तौर पर मज़बूती से बसा हो।

  • नहजुल बलाग़ा के अनुसार तारीफ़ और उसके उसूल और नियम

    नहजुल बलाग़ा के अनुसार तारीफ़ और उसके उसूल और नियम

    हौज़ा / तारीफ़ इंसानी समाज का एक नैचुरल प्रोसेस है। इंसान अच्छे नैतिक मूल्यों, चरित्र और काम को देखकर तारीफ़ करता है, और अगर यह तारीफ़ उसके सही उसूलों के अंदर है, तो यह इंसान के लिए नैतिक ट्रेनिंग और सामाजिक स्थिरता का ज़रिया बन जाती है, लेकिन अगर यह तारीफ़ हद से ज़्यादा हो जाए, तो यह आत्मसंतुष्टि, स्वार्थ, घमंड और नैतिक गिरावट का कारण बन जाती है।

  • हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की विलादत के मौके पर संक्षिप्त परिचय

    हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की विलादत के मौके पर संक्षिप्त परिचय

    हौज़ा / हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की विलादत सन 57 हिजरी में रजब महीने की पहली तारीख़ को पवित्र शहर मदीना में हुआ था।हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़ातिमा पुत्री हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम हैं।