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रिवायत ए कर्बला | तेरहवीं मुहर्रम की घटनाएँ, "मा रअयतो इल्ला जमीला"
हौज़ा/ तेरहवीं मुहर्रम 61 हिजरी को, उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने आदेश दिया कि पैगंबर के परिवार के बंदियों को उनके महल में पेश किया जाए। वह इमाम हुसैन (अ) के पवित्र सिर को सबके सामने प्रदर्शित करके अपनी शक्ति और विजय का प्रदर्शन करना चाहते थे।
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सबसे कमज़ोर और कंजूस व्यक्ति
हौज़ा / इमाम हुसैन (अ) ने एक रिवायत में सबसे कमज़ोर और कंजूस लोगों की ओर इशारा किया है।
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13 मुहर्रम 1447 - 9 जुलाई 2025
हौज़ा / इस्लामी कैलेंडरः 13 मुहर्रम 1447 - 9 जुलाई 2025
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बनी असद जनजाति द्वारा कर्बला के शहीदों की पहचान और दफन
हौज़ा/ कर्बला की घटना के बाद, जब उमर बिन साद की सेना मैदान छोड़कर वापस लौटी, तो इस क्षेत्र के पास “ग़ाज़रिया” नामक गाँव में रहने वाले बनी असद जनजाति ने कर्बला के शहीदों के शवों को देखा और घटना स्थल पर पहुँचे। उस समय, इमाम सज्जाद (अ), जिन्हें अत्यंत कठिन परिस्थितियों के बावजूद कर्बला पहुँचना था, ने उनका मार्गदर्शन किया।
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इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र पर अम्बिया और फ़रिश्तो का गिरया
हौज़ा / इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने सय्यद उश शोहदा (अ) की शहादत पर अम्बिया और फ़रिश्तों के रोने और शोक प्रकट करने के बारे में एक हदीस में बयान किया है।
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12 मुहर्रम 1447 - 8 जुलाई 2025
हौज़ा / इस्लामी कैलेंडरः 12 मुहर्रम 1447 - 8 जुलाई 2025
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11 मुहर्रम 1447 - 7 जुलाई 2025
हौज़ा / इस्लामी कैलेंडरः 11 मुहर्रम 1447 - 7 जुलाई 2025
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आशूरा का रोज़ा रखना सुन्नत या बिदअत?
हौज़ा / जैसे ही नवासा ए रसूल स. हज़रत इमाम हुसैन अ.स. के क़याम व शहादत का महीना मोहर्रम शुरु होता है वैसे ही एक ख़ास सोच के लोग इस याद और तज़करे को कमरंग करने की कोशिशें शुरु कर देते हैं। कभी रोने जो सुन्नते रसूल स. है की मुख़ालेफ़त की जाती है, तो कभी आशूर के रोज़े का इतना प्रचार किया जाता है इसी बात को साबित करने के लिए कुछ हादसे आपके सामने पेश करते हैं।
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इमाम सज्जाद (अ) के शब्दों में कर्बला की सबसे बड़ी मुसीबत
हौज़ा /इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) ने एक रिवायत में कर्बला की सबसे बड़ी और सबसे गंभीर मुसीबत का वर्णन किया है।
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10 मुहर्रम 1447 - 6 जुलाई 2025
हौज़ा / इस्लामी कैलेंडरः 10 मुहर्रम 1447 - 6 जुलाई 2025
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रोज़े आशूरा के आमाल
हौज़ा / रोज़े आशूर मोहम्मद और आले मोहम्मद के लिए मुसीबत का दिन है।
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हज़रत अली असगर अ.स.की मुख्तसर हयात में महान कुर्बानी
हौज़ा / मौला हज़रत अली असगर (अ) का 10 रजब, 60 हिजरी को जन्म हुआ। हज़रत उम्मे रबाब की शाखे तमन्ना पर जो कली मुस्कुराई, उसने हकीमे कर्बला के होठों पर मुस्कान बिखेरी; खानदाने इस्मत व तहारत मे शमे फ़रहत व मुसर्रत रोशन हो गई।
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हज़रत अब्बास (अ) के मक़ाम पर शहीदों का रश्क
हौज़ा / इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) ने एक रिवायत में हज़रत अबुल फ़ज़्लिल अब्बास (अ) के क़यामत के दिन अल्लाह के नज़दीक मक़ाम का वर्णन किया है।
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9 मुहर्रम 1447 - 5 जुलाई 2025
हौज़ा / इस्लामी कैलेंडरः 9 मुहर्रम 1447 - 5 जुलाई 2025
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आयतुल्लाह हाएरी यज़्दी पर इमाम हुसैन (अ) की विशेष कृपा / दो फ़रिश्ते रूह कब्ज़ करने…
हौज़ा/ आयतुल्लाह हाएरी यज़्दी (र) ने कहा है कि जब वे कर्बला में ठहरे हुए थे, तो एक रात किसी ने उन्हें सपने में बताया कि तीन दिन में उनका इंतकाल हो जाएगा।
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इमाम हुसैन के आंदोलन का उद्देश्य क्या था और यह किस तरह अम्र बिल मारुफ़ है?
हौज़ा/आशूरा के बारे में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इमाम हुसैन (अ) ने यह आंदोलन क्यों किया? और उनका आंदोलन अम्र बिल मारुफ कैसे था कि इसे इस तरह से अंजाम देना ज़रूरी था?
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इस्लाम में भाईचारे की अहमियत
हौज़ा / हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने मदीने में दाख़िल होने के बाद सब से पहले जो बेसिक क़दम उठाए उनमें एक अहम काम यह भी था कि मुसलमानों के बीच प्यार, मुहब्बत और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए अंसार व मुहाजेरीन में से हर एक को एक दूसरे का भाई बना दिया और उनके बीच भाईचारे का सीग़ा भी पढ़ा।
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हज़रत अबुल फ़ज़लिल अब्बास अ.स.की शहादत के मौके पर संक्षिप्त परिचय
हौज़ा / 4 शाबान (दूसरी रिवायत के मुताबिक़ 7 रजब) सन 26 हिजरी को हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम ने जिस घर में आंख खोली वह अध्यात्म के प्रकाश से भरा हुआ था। उस घर में हज़रत अब्बास ने न्याय के अर्थ को समझा और इसी घर से सत्य के मार्ग में दृढ़ता का पाठ सीखा।
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हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की कर्बला में बे मिसाल शहादत
हौज़ा / हज़रत अबूल फ़ज़'लिल अब्बास अ.स. की बेहतरीन वफ़ादारी के लिए यही काफ़ी है कि आप फ़ुरात तक गए और पानी नहीं पिया शहीद हो गए
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माहे मोहर्रम में ग़म मनाना सुन्नत या बिदअत!?
हौज़ा / माहे मोहर्रम में कुछ लोग पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स) के लाल इमाम हुसैन (अ) की शहादत का ग़म मनाते हैं। करबला के शहीदों की याद में मजलिस बरपा करते हैं, रोते हैं पीटते हैं खाना खिलाते हैं और इमाम हुसैन (अ) और करबला वालों की याद को ताज़ा करते हैं और कोई भी ऐसा काम करने से परहेज़ करते हैं जिससे किसी भी तरह की ख़ुशी ज़ाहिर हो और कुछ लोग कहते हैं कि हमें ग़म नही मनाना चाहिए, न रोना पीटना चाहिए, न इमाम हुसैन (अ) की मजलिस करना चाहिए क्योंकि यह काम बिदअत है और इस्लाम में बिदअत जायज़ नहीं है।अहले सुन्नत की बड़ी मोतबर हदीस की किताबों से देखते है कि क्या हक़ीक़त में ग़म मनाना सहीह व जायज़ है या बिदअत है?