हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, जुल्म न्याय से डरता है, यह स्वाभाविक है, तो अन्याय का सामना करना यह अनिवार्य है । विडंबना यह है कि लोगों में जागृति नहीं है । झूठ सच का सामना नहीं कर सकता, इसी कारण झूठ सच का सहारा लेकर प्रस्तुत होता है, वह “अर्धसत्य” होता है । जब भी अर्धसत्य सच के सामने टकराता है, तो लोग दुविधा में रहते हैं कि ‘सच’ क्या है ? सच को न्याय नहीं मिलता और ‘अर्धसत्य’ से अन्याय नहीं होता, इसी अन्याय के तूफान में जुल्म फैलता है । न्यायपालिका तो खुली रहती है मगर इन्साफ के द्वार पर ‘भय’ (जालिम) का पहेरा हो तो ? समजलो, जालिम न्याय से डर रहा है । राज्यकर्ता को जागृत करने आंदोलन करना, अन्याय का विरोध प्रदर्शन करना ”द्रोह” तो हो सकता है, मगर उसे राजद्रोह/देशद्रोह कहा जाए तो ? यही “अर्धसत्य” है, जिसे झूठ भी कहते हैं । अर्धसत्य द्वारा सच को छुपाने की व्यवस्था राज्यकर्ता/शासक करता है । जब विज्ञान युग में हर जगह राजकीय/सामाजिक व्यवस्था की ये स्थिती है, तो 1341 वर्ष पूर्व (इ.स.680) अरब साम्राज्य की राजकीय/सामाजिक व्यवस्था कितनी भयावह होगी ? दुनिया के सबसे बड़े अरब साम्राज्य पर इतिहास का सबसे जालिम तानाशाह ‘यझीद’ का शासन था । ‘यझीद’ के शासन की राजकीय/सामाजिक व्यवस्था के विषय में केवल यही कहना पर्याप्त होगा कि, केवल मालदारों-ताकतवरों को जीने का हक था, जबकी कमजोर-आम लोगों की न्याय-इन्साफ के लिये चिंखे उ़ठती रहती थी, उसे हमेशा के लिए खामोश कर दिया जाता, जिने का हक छिन लिया जाता था । मानविय मुल्यों की धज्जीयां उड रही थी । ऐसे भयावह मौत के सन्नाटे में हुसैन ने जीवन की एक पुकार दी... जैसे अंधेरे में प्रकाश हो ! हुसैन के ‘सत्याग्रह’ की पुकार आज भी वायुमंडल में गूंज रही है । जालिम कोई भी हो, जालिम का सामना करना यही मानवता का ‘सच’ है । हुसैन ने अपने ही (मुस्लिम) संप्रदाय के जालिम ‘यझीद’ का सामना सत्याग्रह द्वारा किया । हुसैन के सत्याग्रह का उद्देश्य जालीम ‘यझीद’ के साम्राज्य को भौतिक रूप से बर्बाद करना नहीं था । हुसैन का हेतु जालिम को मारना नहीं बल्कि जुल्म की विचारधारा को मारना था, इसलिए हुसैन ने सेना लेकर नहीं बल्कि केवल 72 सच्चे साथियों को लेकर सत्याग्रह किया । जालिम यझीदी सेना का प्रतिकार (जिहाद) करते सर्व सत्याग्रही शहीद हो गये । हुसैन की शहादत के पश्चात दुनिया जागृत हो गयी । हुसैन ने लोगों को नया जीवन, नई सोच, नया मंत्र दिया - “सत्ता ‘सत्य’ नहीं होती, बल्कि ‘सत्य’ सत्ता होती है ।” दुनिया में न्याय-आजादी के लिए सत्याग्रह हुए और होते रहेंगे, उन सब के सत्याग्रही हुसैनी सत्याग्रह के सदस्य हैं और होते रहेंगे । लोकमान्य ’तिलक’ जी ने कहा... “हुसैन विश्व के पहले सत्याग्रही है ।”
हुसैन के 72 सत्याग्रही में 18 सदस्य हुसैन के परिवार के थे, हुसैन के सत्याग्रह में खाने की रसद पहुंचने के मार्ग पर और जलाशय से पानी लेने पर ‘यझीद’ ने प्रतिबंध लगाया । तीन दिन के भुखे-प्यासे 72 सत्याग्रही पर हमला करने 80,000 की सेना-लश्कर का जमावड़ा करना ये सूचित करता है कि जालिम ‘यज़ीद’ डर रहा है। भूखे-प्यासे 72 सत्याग्रही का 80000 की यझीदी सेना का 7-8 घंटे तक प्रतिकार (जिहाद) करते शहीद हो जाना यह सूचित करता है कि, हुसैन के सत्याग्रह की सच्चाई अद्भूत स्थान पर थी, सत्याग्रह व्यक्तिगत हित में नहीं बल्कि जन समुदाय के हित में था, इसी कारण हुसैन की याद को मानवता ने अपने ह्रदय में सुरक्षित कर लिया । स्वामी ‘शंकराचार्य’ जी (1978) ने कहा... “मैंने हुसैन से बढ़कर कोई शहीद नहीं देखा !”
‘मदीना’ में हुसैन खेती-बागात करते थे, आर्थिक दृष्टी से संपन्न थे, दुर्बलों की अर्थसहाय करते और अन्याय के विरोध में पिडीतों के साथ में खडे रहते थे । हुसैन का सत्याग्रह मानवीय मूल्यों को उजागर करने, लोगों में चेतना जगाने करबला की धरती पर, केवल उस वक्त तक के लिए सीमीत नहीं था, बल्कि ह्यूमन राइट्स की रक्षा के लिए जनसमुदाय की हर व्यक्ति को सक्षम-जिम्मेदार बनाने हुसैन का सोचा समझा अभियान था, स्वाध्याय था, प्रेरणा स्रोत था । आओ मेरे भाइयों-बहनों, हम सब मिलकर अन्याय की जड़ों को उखाड़ फेंकने की जिम्मेदारी पूरी करने प्रामाणिक कोशिश करें, यही होगी शहीद हुसैन को सच्ची श्रद्धांजलि ! जर्मनी के ’कैजर’ ने कहा...“हुसैन दुनिया की पूंजी (ईीशीं) हैं ।”
शहीदों के सरदार ‘इमाम हुसैन’ को नम आँखो से सलाम !
यादे हुसैन ! सत्यमेव जयते !
हुसैनी क्रांती को जीवन मे उतारे,
ज्ञानी एवं जिम्मेदार नागरिक बने।
संपादक : सत्य विचारधारा मंच,
‘गदीर’ खोजा कॉलनी, सांगली.
वितरण कर्ता : मुस्लिम शिया इस्नाअशरी, खोजा समाज,
खोजा कॉलनी (खुमैनी बाग), सांगली-416 416. महाराष्ट्र,
10 मोहर्रम हिजरी 1443, शुक्रवार, तारीख 20.8.2021
अंक : 37 वा