۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
मौलाना रज़ी

हौज़ा / इमाम हुसैन (अ.स.) आज़ादी, सच्चाई, हक, न्याय और मानवता के नेता हैं। तभी तो वाका ए कर्बला के बाद से आज तक हर देश, शहर और हर कौम व क़बीले मे उनका ग़म और ज़िक्र पाया जाता है और कयामत तक पाया जाता रहेगा।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना रज़ी हैदर फंदेड़वी दिल्ली ने आशुरा एंड मेमोराइज़ेशन ऑफ़ ह्यूमैनिटी शीर्षक वाले अपने लेख में कहा है कि ब्रह्मांड के निर्माण के बाद से मानवता के इतिहास में जो महान त्रासदी 10 मुहर्रम 61 हिजरी रोज़े आशुरा पर हुई है। कर्बला जिसके बाद न केवल मानवता बल्कि ब्रह्मांड का हर कण पीड़ित है और अभी भी शोक में है।

कर्बला के शहीदों के खून ने जब आत्माओं को मृत समाजों में वापस लाया, तो इमाम हुसैन (अ) की शहादत पर मानवता रो पड़ी और अब भी रो रही है। वैसे तो इंसानियत के इतिहास में कई घटनाएं हुई हैं लेकिन किसी भी दुर्घटना या शहादत का असर ज्यादा दिनों तक नहीं रह सका क्योंकि वो गवाहियां सिर्फ अपने देश, शहर या खास मकसद के लिए थीं लेकिन इस त्रासदी का निर्माण किस पर आधारित है? मानव आधार राष्ट्रीय, नागरिक, धार्मिक, जातीय, रंग, रूप या भाषाई संकीर्णता की कोई अवधारणा नहीं है, बल्कि मानवता के दिल की आवाज है, क्योंकि जब इमाम हुसैन (अ) एक मृत समाज की चपेट में थे कर्बला के मैदान में, आपने अपनी जान की परवाह नहीं की बल्कि एक बेजान समाज को पुनर्जीवित करने के बारे में सोचा।

मरी हुई मानवता को पुनर्जीवित करने के लिए इमाम ने एक ऐसा महान कार्य किया जिससे एक हृदयहीन व्यक्ति की आंखें नम हो जाती हैं। तीन दिन की भूख-प्यास के बावजूद मानव इतिहास ने आज तक इतनी ईमानदारी से बलिदान नहीं देखा, न ही किसी पिता को छह महीने के बच्चे की कुरबानी देते हुए देखा है, न ही किसी चाचा को अपने भतीजे के शव को उठाते देखा है। ना ही किसी ने मामा को अपने भांजो के शवों को उठाते देखा और ना ही किसी ने बूढ़े पिता को अपने जवानों के शवों को उठाते देखा। आपका कार्य पूरी तरह से मानव जाति की भलाई और गुलामी से मुक्ति के लिए था। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद बेदी (1-4) ने कहा कि इमाम हुसैन का बलिदान किसी एक राज्य या राष्ट्र तक सीमित नहीं था बल्कि मानव जाति की एक महान विरासत थी।

इमाम हुसैन (अ) और उनके वफादार साथियों की शहादत से पथभ्रष्ट लोगों को मार्गदर्शन मिला, गुलामों को आजादी मिली और नेक लोगों को उनका हक मिला। पंडित जवाहरलाल नेहरू कहते हैं, "इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत में एक सार्वभौमिक संदेश है।"निश्चित रूप से जिन राष्ट्रो और कौमो ने इस संदेश को लिया वो गुलामी और अन्याय की जंजीरो से आज़ाद हो गए और जिन समाज और देशो ने नही समझा वह उसी दलदल मे फंसे रह गए। हीरोज वरशप के लेखक कार्लिस्ले ने कहा कि "हुसैन की शहादत पर जितना अधिक ध्यान दिया जाएगा, उतनी ही उनकी बुलंद मांगें सामने आएंगी।"

प्रसिद्ध बंगाली लेखक रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा: "सच्चाई और न्याय को जीवित रखने के लिए सैनिकों और हथियारों की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन बलिदान करके जीत हासिल की जा सकती है, जैसे कर्बला में इमाम हुसैन की जीत के बाद ही अशूरा की गूंज गूंजती थी। दुनिया के प्रमुख क्रांतिकारी आंदोलनों में जब भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, महात्मा गांधी ने कहा था: हुसैनी सिद्धांत का पालन करके मनुष्य को बचाया जा सकता है।

बेशक इमाम हुसैन (अ) आज़ादी, सच्चाई, सच्चाई, न्याय और इंसानियत के नेता हैं अल्लाह क़यामत के दिन कर्बला में सभी मातम करने वालों को इकट्ठा करे।आमीन 

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टिप्पणियाँ

  • Syed Hasan IN 08:53 - 2021/08/19
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    Salamunalaikum Bohut hi achi tehrer he jis ki zarorat he in halat me . Hoza news ki koshish uor mehnat uor zehmat he allah qabil farmay
  • Naqvi IN 20:57 - 2021/08/20
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    Hoza news ke kar guzarun ki khidmat salam arz he Bohut achi uor mofed baten hen Allah maolana ko salamat rakhe