हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "कन्ज़ुल उम्माल " पुस्तक से लिया गया है। इस कथन का पाठ इस प्रकार है:
قال رسول الله صلى الله عليه و آله وسلم
مَوتُ العالِمِ مُصيبَةٌ لا تُجبَرُ و ثُلمَةٌ لا تُسَدُّ ، و هُوَ نَجمٌ طـمِسَ ، و مَوتُ قَبيلَةٍ أيسَرُ مِن مَوتِ عالِمٍـمِسَ ، و مَوتُ قَبيلَةٍ أيسَرُ مِن مَوتِ عالِمٍ
हज़रत रसूले ख़ुदा (स.अ.व.व.)ने फरमाया:
आलिम की मौत की भरपाई करना मुमकिन नहीं है, और ऐसा निर्वात है, जो कभी पूर नहीं होता और एक कबीले की मौत के ग़म को सहना एक आलिम की मौत से आसान होता है
कन्ज़ुल उम्माल ,हदीस नं.28858
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