हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,लखनऊ 2 जनवरी: शहीद क़ासिम सुलेमानी और शहीद अबू मेंहदी अल-मोहनदिस की दूसरी बरसी के मौक़े पर इमामबड़ा ग़ुॅफरांमाब में "यादे शोहदा" के उनवान से मजलिसे अज़ा का आयोजन किया गया। मजलिस को मजलिस उलेमा-ए-हिंद के महासचिव इमामे जुमा मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने संबोधित किया। मजलिस की शुरुआत क़ारी मौलवी मुज़म्मिल अब्बास ने क़ुरान की तलावत से की। उसके बाद मौलवी अम्मार हैदर, क़ारी मासूम मेहदी और मौलाना साबिर अली इमरानी ने शोहदा-ए-राहे हक़ की खिदमत में मन्ज़ूम नज़राने अक़ीदत पेश किया। मजलिस से पहले शहीद सुलेमानी की जिंदगी और कारनामों पर मुश्तामिल "शहीद क़ासिम सुलेमानी के बाद आलमी सुरते हाल" नामक एक पुस्तक का विमोचन मौलाना कल्बे जवाद नक़वी और अन्य उलेमाओं द्वारा किया गया। इस किताब को आदिल फ़राज़ ने तरतीब दिया हैं जिसमें हिन्द और पाक के प्रसिद्ध लेखकों के लेख शामिल हैं।
मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने मजलिस को संबोधित करते हुए कहा कि मानवता का इतिहास शहीद क़ासिम सुलेमानी की सेवाओं और क़ुरबानी को कभी नहीं भूल सकता। जिस तरह से उन्होंने इस्लाम और मानवता की सेवा की वह मामूली इंसान के बस की बात नहीं है। उन्होंने ISIS जैसे आतंकवादी संगठन को जड़ों से उखाड़ फेंका और पवित्र स्थलों की रक्षा के लिए हमेशा डटे रहे।
मौलाना ने कहा कि शहीद सुलेमानी और शहीद अबू मेहदी ने कभी मौत की परवाह नहीं की। वो मज़लूमो की हिमायत और ज़ालिमों के ख़िलाफ सीसा पिलाई हुई दीवार की तरह थे। दुश्मन उसके नाम से कांपता था। उन्हें जिस तरह अमेरिकी सेना ने कायरतापूर्ण हमले में शहीद किया था उससे साबित होता है कि दुश्मन आमने-सामने की लड़ाई में उनका मुक़ाबला नहीं कर सकता था। मौलाना ने कहा कि क़ासिम सुलेमानी अइम्मा ए मासूमीन (अ.स) के सच्चे पैरोकार थे। शहीद का खून बेकार नहीं जाता बल्कि उसके असरात ज़ाहिर होते हैं। मजलिस के अंत में मौलाना ने हज़रत अब्बास (अ.स) के मसायब बयान किये।
मजलिस में मौलाना निसार अहमद ज़ैनपुरी, मौलाना इस्ताफ़ा रज़ा, मौलाना तसनीम मेहदी ज़ैदपुरी, मौलाना मकातिब अली ख़ान, मौलाना नक़ी अस्करी, मौलाना डॉ. अरशद अली जाफ़री, मौलाना आसीफ जायसी, मौलाना हाशिम अली आबिदी, मौलाना शाहनवाज़ हुसैन, मौलाना मुज़म्मिल अली, हौज़े इल्मिया हज़रत दिलदार अली ग़ुॅफरांमाब के छात्र और शिक्षक,हुसैनिया ग़ुॅफरांमाब में स्थित मदरसा अज़-ज़हरा के छात्राएं और दीगर मोमनीन शामिल थे।
मजलिसे-ए-उलेमा-ए-हिंद
लखनऊ, हिंदुस्तान