हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , जैसे हर साल होता है इस साल भी मंसूर नगर स्थित बारगाहे उम्मुल बनीन स.अ. में सुबह साढ़े सात बजे से अशरा-ए-मजलिस का आयोजन किया जा रहा है मजलिसों को मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी खिताब फरमा रहे हैं।
अशरे की तीसरी मजलिस में मौलाना आबिदी ने रसूल अल्लाह स.अ.व.की मशहूर हदीस "बेशक हुसैन (अ.स.) हिदायत का चिराग़ और नजात की कश्ती हैं को चर्चा का आधार बनाते हुए कहा कि जो व्यक्ति हिदायत और नजात चाहता है उसे इमाम हुसैन अ.स.से जुड़ना होगा, क्योंकि दुनिया और आख़िरत दोनों में निजात उन्हीं के माध्यम से मिल सकती है।
मौलाना ने हज़रत हुर (अ.स.) का उदाहरण देते हुए कहा कि वे पहले यज़ीदी लश्कर में शामिल थे, लेकिन जब उन्होंने विलायत की ओर रुख किया तो उनकी ज़िंदगी कुरआनी आयत अल्लाह ईमान वालों का सरपरस्त है, वह उन्हें अंधेरों से निकाल कर रौशनी में ले आता है" का जीता जागता उदाहरण बन गई।
उन्होंने कहा कि हज़रत हुर अ.स.एक फौजी कमांडर थे और उनके पास एक दुनियावी ओहदा भी था। लेकिन जब उन्होंने दुनिया को ठुकराया, तो उन्हें दुनिया और आख़िरत दोनों की कामयाबी हासिल हुई।
वह उन मुकद्दस हस्तियों में शामिल हो गए जिनके लिए इमाम मासूम अ.स. ने फरमाया,मेरे मां-बाप आप पर क़ुर्बान! आप पाक हैं और वह ज़मीन भी पाक हो गई जिसमें आप दफन हैं।
मजलिस के अंत में मौलाना ने कहा कि हज़रत हुर (अ.स.) ने क़यामत तक के लिए यह पैग़ाम छोड़ दिया कि,जो इमाम हुसैन (अ.स.) का हो गया, वह बेनियाज़ हो गया।
आपकी टिप्पणी