۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
मौलाना क़ारी सैयद जाफ़र अली रिज़वी जारचवी

हौज़ा / पैशकश: दानिशनामा ए इस्लाम, इंटर नेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना क़ारी सैयद जाफ़र अली रिज़वी जारचवी साहब सन 1230 हिजरी में सरज़मीने जारचा ज़िला बुलंदशहर पर पैदा हुए ( हालांके हाले हाज़िर में जारचे का ज़िला “नोएडा” है ) । आप के वालिदे मोहतरम जनाब सैयद अफ़ज़ाल अली रिज़वी साहब थे ।

मौलाना को क़ारी जाफ़र के नाम से याद किया जाता है । आप ने इब्तेदाई तालीम दिल्ली में हासिल की उस के बाद आज़िमे लखनऊ हुए ।

मौसूफ़ ने क़ुरआने करीम की तालीम और फ़न्ने क़िराअत उस्ताद “क़ारी मौहम्मद इसफ़हानी तब्रेज़ी” साहब से हासिल की । आप ने क़ुरआन मजीद की क़िराअत में इतना मलका हासिल कर लिया था के अगर कोई तिलावत की आवाज़ सुनता तो उसे यक़ीन नहीं होता था के क़ारी हिंदुस्तानी है ।

मौलाना ने तफ़सीर, मनतिक़, फ़लसफ़ा, फ़िक़्ह और उसूल वगेरा की किताबें आयतुल्लाह दिलदार अली गुफ़रान मआब साहब और आयतुल्लाह सैयद हुसैन इल्लीयीन मकान साहब वगेरा से पढ़ीं ।

आप की आवाज़ इतनी अच्छी थी के रास्ता चलते हुए लोग सुन्ने के लिए रुक जाते थे, क़ारी जाफ़र अली सहब न सिर्फ़ यह के क़ारी थे बल्के हाफिज़े क़ुरआन भी थे नीज़ हुफ़्फ़ाज़े किराम को क़ुरआन का दर्स देते थे , उन की क़िराअत शीआ व सुन्नी ओलमा की पसंदीदा क़िराअत थी ।

जब सन 1857 ईस्वी में जंगे आज़ादी का आग़ाज़ हुआ तो मौलाना भी जारचे के लोगों के साथ क़ैद हुए , नमाज़ के वक़्त आप की हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ खुल जाती थीं और जब नमाज़ पढ़ लेते थे तो हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ पहन लेते थे ।

जिस वक़्त क़ारी जाफ़र साहब क़ैद से आज़ाद हुए तो आप की माली हालत अच्छी नहीं थी , जारचे के लोगों ने चाहा के सब मिल कर उनकी मदद करें तो मौलाना ने मदद से इंकार करते हुए कहा : में राज़ी नहीं हूँ के आप लोग मेरी वजह से मुश्किल में पड़ें , में जारचा तर्क कर के कहीं और चला जाऊंगा । आख़िर कार उन्होने जारचे के लोगों से कोई मदद क़ुबूल नहीं फ़रमाई ।

क़ारी जाफ़र अली साहब रौज़ा, नमाज़ और अह्कामे शरई के पाबंद थे और हुक्मे शरई को बयान करते वक़्त किसी से नहीं डरते थे ।

आप नवाब फ़ज़ले अली ख़ान बहादुर एतेमादुद’दौला दिल्ली के मदरसे में मुदर्रिसे आला रहे और इसी तरह मदरसा ए मंसबिया अरबिक कॉलेज मेरठ में भी मुदर्रिसे आला की हैसिय्यत से रहे मगर आपने कुछ वुजुहात की बिना पर मेरठ को तर्क कर दिया ।

अलीगढ़ मुस्लिम युनिवेर्सिटी के बानी “सर सैयद अहमद ख़ाँ साहब” ने युनिवेर्सिटी के शोबा ए दीनियात में मुदर्रिसे आला के लिए दर्ख़ास्त की मगर आप ने मुस्बत जवाब नहीं दिया ।

उसके बाद आप आज़िमे हैदराबाद हुए और वहाँ मौलाना के क़याम के दौरान जनाब सर सैयद अहमद ख़ाँ भी आज़िमे हैदराबाद हुए उन्होने क़ारी जाफ़र साहब से मुलाक़ात की और अपनी दर्ख़ास्त को फिर मौलाना की ख़िदमत में पैश किया , क़ारी साहब ने इस बार उनकी लाज रखते हुए अलीगढ़ मुस्लिम युनिवेर्सिटी में तदरीस का वादा कर लिया और हैदराबाद को तर्क करके अलीगढ़ तशरीफ़ ले आए ।

मौसूफ़ अपनी उम्र के आख़री हिस्से तक अलीगढ़ मुस्लिम युनिवेर्सिटी के शोबा ए दीनियात में ख़िदमात अंजाम देते रहे ।

मौलाना क़ारी जाफ़र अली साहब के बच्चों में शमसुलओलमा मौलाना क़ारी अब्बास हुसैन साहब (जो आलिम ए दीन होने के साथ साथ बहुत अच्छे क़ारी भी थे), जनाब सैयद शब्बीर हुसैन और जनाब सैयद हादी हुसैन साहब के नाम क़ाबिले ज़िक्र हैं ।

क़ारी जाफ़र साहब 84 साल की उम्र में सन 1314 हिजरी में इस दारे फ़ानी से दारे बक़ा की जानिब कूच कर गए और जारचे में मौजूद अपने आबाई कब्रुस्तान में दफ़्न हुए ।

(माख़ूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, जिल्द 2, सफ़्हा 45, तहक़ीक़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी – मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी – दानिशनामा ए इस्लाम, नूर माइक्रो फ़िल्म, दिल्ली) 

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