हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद शमा मोहम्मद रिजवी ने कहा कि अय्यामे अज़ा ए फातिमा के शीर्षक के तहत मजलिस और मरसिया और नौहा के बाद, हर साल शामे गुरबत और विलायते फ़क़ीह के शीर्षक के तहत एक महान कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। जिसकी आवशयकता अब लोगो को समझ मे आने लगी है। जिसमे आदरणीय कारी, नाजिम, शिक्षक और विश्लेषक, और विलायत के 23 कवि आते हैं। सौभाग्य से, यह कार्यक्रम अगले साल तक के लिए स्थगित जो कर दिया जाता है। इसमे पुस्तक के विमोचन के साथ साथ हज़रत मासूमा ए क़ुम की कृपा है कि यह कार्यक्रम अद्वितीय है। इसके महत्व एवं उपयोगिता के पर अनेक व्यक्तित्वों ने अपनी ऊर्जा के अनुसार अनेक विश्लेषण किये तथा विभिन्न विषयों को प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि मुद्दा केवल यह नहीं था कि पैगंबर के बाद इस्लामी सरकार को कौन संभालेगा, मुद्दा इस्लाम के धर्म के अस्तित्व पर निर्भर था। वे बदला लेने के अवसर की तलाश में थे। उनके पूर्वजों और इस्लाम को दबाने के लिए विलायत और इस्लामी सरकार के बचाव में आवाज उठाने वाले पहली शख्सीयत सिद्दीका ए ताहिरा फातिमा ज़हरा की थी।
अंत में उन्होंने कहा कि चौदह सौ साल पहले अमीरुल मोमेनीन की रक्षा के संबंध में सिद्दीका ए ताहिरा हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ.) द्वारा उठाई गई आवाज की गूंज आज भी ब्रह्मांड में महसूस की जा सकती है। विलायत से परिचित होना आवश्यक है और केवल वली ए फकीह ही इससे परिचित करा सकता है।