हौज़ा न्यूज़ एजेंसी, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के प्रख्यात धार्मिक विद्वान हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना शेख तनवीरुल हसन, गाजीपुर शहर के इमामे जुमा ने जुमे के खुत्बे मे मोमेनीन से अपील की कि के अवसर पर अक़ीदत और एहतराम के साथ पूरे विश्व मे बड़े पैमाने पर पूरी दुनिया में हर साल ९0 वी ज़िल हिज्जा से 20 जिल-हिज्जा तक अशरा ए विलायत का आयोजन होना चाहिए।
हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन मौलाना शेख तनवीरुल-हसन इमाम जुमा शहर गाजीपुर ने "इस्लाम में क़ुर्बानी के फ़लसफे और लाभ" विषय पर अपने भाषण के प्रारंभिक चरण में कहा कि आज जिल हिज्जा की 12 तारीख है मिना के अलावा पूरी दुनिया मे कुर्बानी करने का अंतिम दिन है जो इब्राहीम और इस्माईल की याद में कुर्बानी की जाती है। इस मामले में भी, तीन मासूमो के आसपास का मुद्दा विलाय का मुद्दा है। और यह विलायत कुर्बानी की बुनयाद बन गया। और ईसमाईल को अपने मासूम पिता की विलायत पर इतना पक्का भरोसा तभी तो ख्बाब का हुक्म ताबीर करार दिया तभी तो कुर्बान होने के लिए तैयार हो गए। और आप सभी जानते हैं कि शैतान ने राहे विलायत से भटकाने के लिए हज़रत इस्माईल के साथ छल किया, लेकिन वह असफल रहा। रमी जमरात उसकी असपळता के मूंह बोलता सबूत हैं। शैतान ने हजरत हाजिरा को भी बहकाने की कोशिश की, लेकिन इस महिला के दिल में भी एक मासूम की विलायत थी, इसलिए शैतान वहां भी बेकार था। इब्राहीम हर परीक्षा में सफल रहे।
आप सभी जानते हैं कि विलायते अली (अ.स.) इतनी महत्वपूर्ण और महान चीज है कि इसके बिना कोई नबी नबी नहीं बना। कोई मोमिन मोमिन नहीं बनता है। चाहे वह कितनी ही इबादत करले सब ठुकरा दी जाएगी। और वह सख्स अल्लाह की जन्नत की खुशबू तक नही संघ सकता। अतः अशरा ए विलाय का आयोजन होना चाहिए। इस अवसर पर हुज्जुतल इस्लाम वल मुस्लेमीन इबने हसन अमलवी वाइज ने भी नमाजे जुमा में भाग लिया और इसका पुरजोर समर्थन किया।
हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन मौलाना शेख तनवीरुल हसन इमाम जुमा शहर गाजीपुर ने कहा कि इस्लाम में ईद का मतलब है अल्लाह की इबादत करना और साथ ही अल्लाह के बंदो के साथ दया का व्यवहार करना। कुर्बानी का फायदा यह है कि इस से महामारी दूरी भागती है। इसका फलसफा यह है कि अल्लाह के अधिकारों के साथ-साथ उपासकों के अधिकार भी पूरे होने चाहिए। कुर्बानी के गौश्त को तीन भागों में विभाजित किया जाता है, एक हिस्सा अपने परिवार द्वारा खाया जाना चाहिए। और एक हिस्सा गरीबों और भिखारियों को दिया जाना चाहिए। और तीसरा हिस्सा पड़ोसियों को वितरित किया जाना चाहिए। यदि कोई ऐसा नहीं करता है, तो कुछ भी कहा जा सकता है लेकिन क़ुर्बानी नहीं कहा जा सकता है।