हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,एक चीज़ जिसे मैं बार बार दोहरता हूं और उस पर ज़ोर देता हूं और जिसका ज़िक्र क़ुरआने मजीद में है, हज़रत युनुस अलैहिस्सलाम का क़िस्सा है। वह ख़ुदा के बड़े पैग़म्बर हैं।
“और युनुस को याद करो जब वह ग़ुस्से में चले गये” उन्हें ग़ुस्सा क्यों था? इसलिए कि उनकी क़ौम काफ़िर थी। वह जो भी कहते थे उनकी क़ौम सुनती ही नहीं थी। बरसों यही चलता रहा। इस पूरी मुद्दत में उन्होंने अपनी कौम़ को हक़ की दावत दी लेकिन असर नहीं हुआ तो उन्हें भी ग़ुस्सा आ गया, नराज़ हो गये और अपनी क़ौम को छोड़ कर चले गये। अब अगर हम अपनी ज़िम्मेदारियों से जो भागते हैं उसे देखें तो हज़रत युनुस का यह अमल कोई इतनी बड़ी ग़लती नहीं है। मगर ख़ुदा ने इसके लिए भी उन्हें कटघरे में खड़ा कर दियाः “तो युनुस को लगा कि हम उन पर सख़्ती नहीं करेंगे” बिल्कुल सख़्ती करेंगे।
सख़्ती यह थी कि वह वहां मछली के पेट में जाकर फंस गये। इसी तरह क़ुरआने मजीद में एक और जगह कहा जाता है कि “अगर वह अल्लाह की तस्बीह करने वालों में से न होते तो क़यामत तक उसी (मछली) के पेट में रहते।“ ज़रा देखिए तो सही! अपनी ज़िम्मेदारी से भागने के बाद अगर उनकी तरफ़ से तस्बीह और गिड़गिड़ाना न होता यानी अगर वह यह न कहते कि “अल्लाह तू पाक है और मैं तो ज़ुल्म करने वालों में हूं।“ तो क़यामत तक उन्हें क़ैद रहना होता। वैसे इस आयत के बाद एक ख़ुशखबरी भी हैः “तो उन्होंने अंधरे में आवाज़ लगायी कि तेरे अलावा कोई इबादत के लायक़ नहीं है और तू पाक है मैं तो ज़ालिमों में हो गया हूं, तो हमने क़ुबूल किया और उन्हें ग़म से निजात दे दी और हम तो इसी तरह मोमिनों को बचाते हैं।“
यह हमारे और आप के लिए अच्छी ख़बर है। यानी हम भी तस्बीह, हम्द, तौबा करके, अपने गुनाहों को मान कर और उस पर माफ़ी मांग कर निजात पा सकते हैं। तो इस तरह से यह पता चला कि तौबा, ग़लत काम करने पर भी है और ज़िम्मेदारी और ज़रूरी काम छोड़ने और ख़राब प्रबंधन पर भी है। यह दोनों चीज़ें अहम हैं।
इमाम ख़ामेनेई,