۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
رہبر انقلاب اسلامی

हौज़ा/ हजरत अमीरूल मोमिनीन ने मोहम्मद इब्ने अबी बक्र को मिश्र भेजा, इसके बाद खत लिखा कि मैं महसूस कर रहा हूं कि आज के संदर्भ में, मेरे प्रिय, आप मिस्र के लिए उपयुक्त नहीं हैं। मैं तुझे मिस्र का शासक बनाऊँगा, किसी हुकूमत और किसी हाकिम के लिए जो वरअ होना चाहिए यह इसकी आला तारीन मिसाल है, अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम का यह तरीका है, २१ जनवरी १९९७ को इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता इमाम खामेनेई के एक दूर अंदेश खिताब की हकीकत,

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,मोहम्मद इब्ने अबी बक्र आपके बेटे की तरह है। आप उसे अपने बेटे की तरह चाहते थे। उसने हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) को भी अपने पिता की आँखों से देखाते थे, वे मोहम्मद इब्ने अबी बक्र के छोटे बेटे और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शागिर्द थे, उन्होंने आपकी आगोश तरबीयत में परवरिश पाई थी, अमीरुल मोमिनीन ने  मोहम्मद इब्ने अबी बक्र को मिश्र भेजा,
फिर उन्होंने एक पत्र लिखकर कहा कि उन्हें लगा कि आज के संदर्भ में, मेरे प्रिय, आप मिस्र के लिए उपयुक्त नहीं हैं। तुम्हें हटाकर मैं मिस्र का हाकिम मालीके अशतर को बनाता हूं मोहम्मद इब्ने अबी बक्र यह बात बुरी लग गई और वह नाराज़ हो गए
बहरहाल इंसान है अगर इनका मर्तबा बहुत बड़ा है,
लेकिन उन्होंने इस पर रद्दे अमल ज़ाहिर किया लेकिन अमीरुल मोमिनीन ने कोई अहमियत नहीं दी,
इस बात को गौर फिक्र करने को नहीं समझा मोहम्मद इब्ने अबी बक्र इतने महान आदमी थे बैंय्यत के वक्त और जंग ए जमाल में अमीरुल मोमिनीन के कितने काम आए,
वह अबी बक्र के बेटे और उम्मूल मोमिनीन हज़रत आयशा के भाई थे, अमीरुल मोमिनीन के लिए कितनी अहमियत रखते थे!??
लेकिन इस मसले में अमीरुल मोमिनीन ने इनकी नाराज़गी को कोई अहमियत नही दी,ये वरअ हैं, किसी हुकूमत और किसी हाकिम के लिए जो वरअ होना चाहिए, यह उसकी आलातरीन मिसाल है अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम का वरअ यह है,
नज्जशी नाम का एक कवि था जिसने अमीरूल मुमिनिन की प्रशंसा करते हुए और अपने दुश्मनों की निंदा करते हुए कविताएँ लिखीं। रमजान के महीने में एक दिन सड़क पार रहा था,
एक दुष्ट व्यक्ति ने उससे कहा, "आओ और मेरे साथ दिन बिताओ।" उसने कहा कि वह मस्जिद जा रहा वहां जाकर नमाज़ पढ़ लूंगा और कुरान पढ़ लूंगा,
उसने कहा माहे रमज़ान से क्या फर्क पड़ता है आओ हमारे साथ और जबरदस्ती उस कवि को अपने साथ ले गया, वह भी कवि ही तो था, उसके घर गया रोज़ा तोड़ा और शराब पी, नहीं चाहता था लेकिन गुनाह में पढ़ा गया, उसके बाद सबको मालूम हो गया कि इन दोनों ने शराब पी है, अमीरुल मोमिनीन ने कहा कि इन पर हद जारी होगी, 80 कोड़े शराब पीने के और 10 या 20 कोड़े उसके लिए कि रमजान के महीने में ये काम किया, नज़्जाशी जाती ने कहा मैं शायर हूं, आपकी हुकूमत की तारीफ करता हूं शेर में आपके दुश्मनों से अपनी शायरी के जरिए जंग की, आप मुझे फोड़े मारेंगे? आज की ज़बान में यह कहा जा सकता है कि अमीरुल मोमिनीन ने फरमाया कि यह सब सही है, तुम मुझे बहुत अजीज़ हो, बहुत अच्छे हो हमारे लिए अहमियत भी रखते हो, लेकिन मैं अल्लाह की तरफ से जो हद है उसको मैं बातिल नहीं करूंगा, इसकी कौम और कबीले के लोग घरवाले और रिश्तेदार आए, बहुत इसरार किया और कहां किया अगर आपने इसको कोड़े मारे तो हमारी इज्जत आबरू खाक में मिल जाएगी, और फिर हम सर नहीं उठा सकेंगे, आपने फरमाया कि मुमकिन नहीं है, खुदा ने जो हद मोअइन की है मैं उसको ज़रूर ज़ारी करूंगा, उसको लाए और कोड़े मारे वह भी रात में फरार हो गया चला गया, कहा कि आप की हुकूमत को यह नहीं मालूम है कि मुझ जैसे शायर
फनकार और रोशन फिक्र के साथ किस तरह का सुलूक करना चाहिए, तो अब मैं वहां जाता हूं जहां मुझे पहचाना जाए और मेरी इज्ज़त की जाए, वह माविया के पास चला गया, कहां कि मेरी कद्र जानता है, ऐसे इंसान के लिए यही कहना चाहिए कि जहन्नुम में जाओ, इतना अंधा है कि अपने ज़ाति ऐहसासात साथ और जज़्बात में अली की नूरा नियत को ना देख सके, इसका अंजाम यही है कि,माविया के पास चला जाए उसकी ओकुबत यही है, माविया का हो जाए, जाओ !!अमीरुल मोमिनीन जानते थे कि वह हाथ से निकल जाएगा, बहुत अहम शायेर था. इस ज़माने में शायरों की अहमियत आपसे ज़्यादा थी, लेकिन आज भी फन कारों की अहमियत है लेकिन उस ज़माने में ज़्यादा थी, उस ज़माने में आज की तरह रेडियो और टीवी चैनल नहीं थे. कोई ऐसी चीज़ नहीं थी जो लोगों तक अपनी आवाज़ को पहुंचाया जा सके उस ज़माने में एक ही तरीका था वह शोरा के ज़रिए अपनी बात पहुंचाई जाती थी,जो शायरी करते थे, शेर सुनते थे और इनके आश्आर हर जगह मशहूर थे,


  इमाम खामेनेई
21 जनवरी 1997 

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