कै़सर अब्बास द्वारा लिखित
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी ! एक दोस्त कह रहा था कि जब वह अपने परिवार के साथ बाजार में खरीदारी करने गया था, तो बाजार में हर जगह दुकानदार हाथों में काले कपड़े लहरा रहे थे और चिल्ला रहे थे कि "मुहर्रम क्लैकशन आ गया है आएं खरीदे"। मेरे दोस्त के आंसू निकल पड़े जब उसने दुकानदारों को मुहर्रम क्लैकशन की इस तरह से मार्केटिंग करते देखकर मेरी आंखो से आंसू निकल आए मै सोच रहा था कि क्या कर्बला मे इतनी बड़ी कुर्बानी इसी लिए दी गई थी कि आज हम उनका सोग फैशन के साथ मनाऐेगे ?
इसके लिए किसी का दोष नहीं है। यह हम सभी शियो की गलती है जिन्होंने मुहर्रम को केवल कपड़े बदलने के लिए सीमित कर दिया है। चाहिए तो यह था कि सफेद से काले कपड़े बदलने के साथ साथ हम अपना किरदार (चरित्र) बदलते, अपनी नफ़सानी ख़वाहेशात को अल्लाह ताला की रज़ा की ख़ातिर क़ुर्बान कर देते, कर्बला के मक़सद को समझते लेकिन दुर्भाग्य से हमने मुहर्रम को एक पारंपरिक महीना बना दिया है, मुहर्रम आने से पहले महिलाए और पुरुष नए काले कपड़े सिलवाते हैं, युवा लड़के अपनी कलाई पर रंग-बिरंगे धागे बांधते हैं, युवा लड़कियां मजलिस और जलूस मे शामिल होने के लिए नया हिजाब और बनसवर कर जाती है, मैं यह नहीं कहता कि वे सभी एक जैसे हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनकी हरकतें पूरे शिया क़ौम पर उंगली उठाती हैं।
बकरा मंडी के बाद आजकल इमाम हुसैन का ज़िक्र सुनाने के लिए बोली लगाई जा रही है, जिसके पास जितना पैसा होगा, वो उतना ही महंगा उपदेशक (खतीब) बुक करेगा, और फिर दस दिन के लिए लाखों रुपये देकर, हम केवल गानो की धुन मे क़सीदे सुनेंगे। मिंबर पर आने वाले ना तो अच्छाई की ओर दावत देने और ना ही बुराई से मना करने वाली हुसैनी सुन्नत अदा करेंगे और ना ही सुनने वाले हुर बिन रियाही की कोशिश करेंगे।
मुझसे मेरे ही लोगों ने कहा है कि सोशल मीडिया पर ऐसी बातें न लिखें क्योंकि इससे अपने ही देश का अपमान होता है लेकिन सवाल यह है कि जब कोई गैरजिम्मेदार व्यक्ति मिंबर पर आता है और ऐसी बातें कहता है तो यह अपमान नहीं है कि पूरी दुनिया मैं मैं शिया क़ौम का मज़ाक उड़ा रहा हूँ क्या यह मज़ाक नहीं है जब एक अधेड़ उम्र का आदमी मिंबरे रसूल से नाजायज़ता के प्रमाण पत्र बांटता है?
जब वे एक किलो आलू लेते हैं तो दस बार उठाते हैं और उसकी जांच करते हैं, लेकिन मिंबरे रसूल पर आने वाले व्यक्ति की क्षमता देखते हैं तो वे अंधे क्यों हो जाते हैं? अगर ये गैरजिम्मेदारी दिखाएंगे तो तमाशा पूरे देश का होगा। सोशल मीडिया आज दुनिया को संदेश भेजने का सबसे अच्छा तरीका है।
यज़ीदी सेना के सामने अपने अंतिम उपदेश (खुत्बे) मे इमाम हुसैन ने कहा, "जब आपके पेट में निषिद्ध भोजन (लुक़्मा ए हराम) है तो तुम मुझे कैसे पहचान सकते हो?" कर्बला से एक गरीबुल वतन मज़लूम की हल मिन नासेरिन यनसुरना की आवाजें आज भी सुनाई देती हैं, लेकिन हमारी सुनवाई (समाअते) इतनी अशुद्ध हो गई है कि हम उन्हें सुन नहीं सकते।
मुहर्रम किसी के कपड़े बदलने के लिए नहीं आता है, बल्कि अपने अंदर मौजूद शिम्र मिज़ाज नफ़्स को हुसैन इब्न अली की तरह आत्म-संतुष्टि (नफ़्से मुतमाइन्ना) में बदलने के लिए आता है।
रब्बे करीम हमें कर्बला को सही मायने में समझने की तोफीक़ अता फ़रमाए। (आमीन)