۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
रहबर

हौज़ा/इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,इतिहास के किसी भी हिस्से में दुनिया की किसी भी क़ौम को ऐसी पीड़ा और ज़ुल्म का सामना नहीं करना पड़ा कि इलाक़े से बाहर रची जाने वाली एक साज़िश के तहत एक मुल्क पर पूरी तरह से क़ब्ज़ा हो जाए, पूरी क़ौम को उसके घर बार से बेदख़ल कर दिया जाए और उसकी जगह पर दुनिया के चारों ओर से इकट्ठा करके एक गिरोह को बसा दिया जाए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने कहां,
इतिहास के किसी भी हिस्से में दुनिया की किसी भी क़ौम को ऐसी पीड़ा और ज़ुल्म का सामना नहीं करना पड़ा कि इलाक़े से बाहर रची जाने वाली एक साज़िश के तहत एक मुल्क पर पूरी तरह से क़ब्ज़ा हो जाए, पूरी क़ौम को उसके घर बार से बेदख़ल कर दिया जाए और उसकी जगह पर दुनिया के चारों ओर से इकट्ठा करके एक गिरोह को बसा दिया जाए। एक अस्ली वजूद को पूरी तरह नकार दिया जाए और उसकी जगह एक जाली वजूद ले ले।
फ़िलिस्तीनी अवाम का बर्बरतापूर्ण दमन, बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारियां, हत्या व लूट, इस क़ौम की ज़मीनों पर नाजायज़ क़ब्ज़ा और वहाँ कॉलोनियों का निर्माण, पवित्र शहर क़ुद्स और मस्जिदुल अक़्सा, इसी तरह इस शहर में मौजूद दूसरे इस्लामी और ईसाई पवित्र स्थलों की पहचान व स्वरूप बदलने की कोशिश, नागरिकों के बुनियादी अधिकारों का हनन और दूसरे बहुत से ज़ुल्म जारी हैं और उन्हें अमरीका और पश्चिम की कुछ दूसरी सरकारों का भरपूर समर्थन हासिल है।


इन्तेफ़ाज़ा जन आंदोलन जो इस वक़्त अतिग्रहित इलाक़ों में तीसरी बार शुरू हुआ है, अतीत के इन्तेफ़ाज़ा आंदोलनों से ज़्यादा मज़लूम है, लेकिन उम्मीद और शान के साथ आगे बढ़ रहा है और अल्लाह ने चाहा तो आप देखेंगे कि यह इन्तेफ़ाज़ा आंदोलन, संघर्ष के इतिहास में बहुत अहम चरण तय करेगा और क़ाबिज़ हुकूमत के माथे पर एक और हार लिखेगा।
यह कैंसर शुरू से अब तक अनेक चरणों से गुज़रते हुए मौजूदा मुसीबत में बदल गया है और इसका इलाज भी चरणबद्ध तरीक़े से होगा और कुछ इंतेफ़ाज़ा आंदोलनों और लगातार प्रतिरोध से अहम चरणों के लक्ष्य हासिल हुए हैं और आंदोलन इसी तूफ़ानी रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है।
सन 1973 ईसवी की जंग में थोड़ी ही सही जो कामयाबियां मिलीं उनमें प्रतिरोध के रोल को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सन 1982 ईसवी से अमली तौर पर रेज़िस्टेंस की ज़िम्मेदारी फ़िलिस्तीन के भीतर मौजूद अवाम के कांधों पर आ पड़ी, इस बीच लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह का उदय हुआ जो फ़िलिस्तीनियों की जिद्दो जेहद में उनका मददगार बना। अगर प्रतिरोध के मोर्चे ने ज़ायोनी सरकार को धूल न चटाई होती तो आज हम इलाक़े के दूसरे भाग में मिस्र से लेकर जॉर्डन, इराक़, फ़ार्स की खाड़ी वग़ैरह के इलाक़ो तक उसका उत्पात देखते। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है, लेकिन प्रतिरोध मोर्चे की सिर्फ़ यही उपलब्धि नहीं है, बल्कि दक्षिणी लेबनान की आज़ादी और ग़ज़्ज़ा की आज़ादी, फ़िलिस्तीन को आज़ाद कराने की प्रक्रिया के दो महत्वपूर्ण चरण समझे जाते हैं, जिसके नतीजे में ज़ायोनी शासन का भौगोलिक विस्तारवाद फैलने के बजाए सिकुड़ने लगा।
फ़िलिस्तीन के अवाम और फ़िलिस्तीन के प्रतिरोध आंदोलन की ज़रूरतों को पूरा करना बहुत अहम फ़रीज़ा है जिस पर अमल होना चाहिए। इस प्रक्रिया में पश्चिमी तट के इलाक़े के प्रतिरोध के मोर्चे की बुनियादी ज़रूरतों की ओर से भी लापरवाही नहीं होनी चाहिए जो इस वक़्त इंतेफ़ाज़ा आंदोलन का अस्ली बोझ अपने कांधे पर उठाए हुए है।

इमाम ख़ामेनेई,

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .