۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
ٰआयतुल्लाह ख़ामेनई

हौज़ा / इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने इस साल हज संदेश में ज़ोर देकर कहा कि मुस्लिम क़ौमें हालिया डेढ़ सौ बरस में आम तौर पर पश्चिमी ताक़तों के लोभ, हस्तक्षेप और दुष्टता के निशाने पर रही हैं। इस्लामी जगत को चाहिए कि अतीत की भरपाई करे और इस ज़ोर ज़बरदस्ती का मुक़ाबला करे। इस्लामी समुदाय पश्चिमी ताक़तों के हस्तक्षेप और दुष्टता का मुक़ाबला करे।

हौज़ा न्यूज़ एजेसी की रिपोर्ट अनुसार,  इस्लामी समुदाय पश्चिमी ताक़तों के हस्तक्षेप और दुष्टता का मुक़ाबला करे।  इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने इस साल हज संदेश में ज़ोर देकर कहा कि मुस्लिम क़ौमें हालिया डेढ़ सौ बरस में आम तौर पर पश्चिमी ताक़तों के लोभ, हस्तक्षेप और दुष्टता के निशाने पर रही हैं। इस्लामी जगत को चाहिए कि अतीत की भरपाई करे और इस ज़ोर ज़बरदस्ती का मुक़ाबला करे। 
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए ही है जो ब्रह्मांड का पालने वाला है और अल्लाह का दुरूद व सलाम हो हज़रत मुहम्मद व उनके पवित्र परिजनों, उनके चुने हुए सहाबियों और अच्छाई से उनका अनुसरण करने वालों पर प्रलय के दिन तक
पूरी दुनिया के मुसलमान भाइयो और बहनो!
इस साल भी इस्लामी समुदाय हज की महान नेमत से वंचित रह गया और हज की आस रखने वाले दिल, दुख और आहों के साथ उस सम्मानीय घर की मेहमानी से दूर रह गए जिसे तत्वदर्शी और दयावान अल्लाह ने लोगों के लिए बनाया है।
यह दूसरा साल है कि हज की आध्यात्मिक ख़ुशी का समय, फ़ेराक़ और हसरत के मौसम में बदल रहा है और महामारी की बला और शायद हरमे शरीफ़ पर राज करने वाली राजनीति की बला, हज का शौक़ रखने वाले मोमिनों की आंखों को, इस्लामी उम्मत की एकता, महानता और अध्यात्म के प्रतीक के दर्शन से वंचित कर रही है और इस वैभवशाली और गौरवपूर्ण चोटी को बादलों और धूल से छिपा रही है।
यह इम्तेहान भी इस्लामी समुदाय के इतिहास के अन्य वक़्ती इम्तेहानों की तरह है जो एक रौशन भविष्य का कारण बन सकता है, अहम बात यह है कि हज अपने वास्तविक रूप में हर मुसलमान के दिलो जान में ज़िंदा रहे और अब जबकि उसे अंजाम देने का प्रारूप अस्थायी तौर से मौजूद नहीं है तो उसके महान संदेश का रंग फीका न पड़ने पाए।
हज बड़े राज़ों और रहस्यों वाली इबादत है। चलने व ठहरने का इसका सुंदर प्रारूप, एक मुसलमान की व्यक्तिगत पहिचान और समाज का निर्माण करने वाला और दुनिया के सामने उसकी सुंदरताओं को पेश करने वाला है। एक तरफ़ तो अल्लाह के ज़िक्र और उसके सामने रोने-गिड़गिड़ाने से यह ख़ुदा के बंदों के दिलों को आध्यात्मिक ऊंचाई प्रदान करता है और अल्लाह से क़रीब करता है और दूसरी तरफ़ एक ही तरह के पहनावे और एक ही तरह के समन्वित कामों से, दुनिया के कोने-कोने से आने वाले भाइयों को, एक दूसरे से जोड़ देता है जबकि एक और तरफ़ से यह इस्लामी उम्मत के सबसे बड़े प्रतीक को, उसके सभी अर्थपूर्ण व रहस्यमयी संस्कारों के साथ, दुनिया के सामने पेश करता है और उम्मत के संकल्प व महानता को, दुर्भावना रखने वालों के सामने प्रदर्शित करता है।
इस साल अल्लाह के घर के हज तक पहुंच नहीं है लेकिन घर के मालिक पर ध्यान, उसके ज़िक्र, उसके सामने रोने-गिड़गिड़ाने और तौबा तक पहुंच है, अरफ़ात में उपस्थिति मुमकिन नहीं है लेकिन अरफ़े के दिन दुआ और ईश्वर की पहचान बढ़ाने वाली मुनाजात संभव है। मिना में शैतान को कंकरी मारना मुमकिन नहीं है लेकिन वर्चस्ववादी शैतानों को भगाना हर जगह मुमकिन है। काबे के गिर्द शरीरों की एकजुट उपस्थिति संभव नहीं है लेकिन क़ुरआने मजीद की रौशन आयतों के गिर्द दिलों की एकजुट उपस्थिति और अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से थामना, हमेशा की ज़िम्मेदारी है।
हम इस्लाम के अनुयाइयों को, जो आज भारी जनसंख्या, व्यापक भूभाग, बेशुमार प्राकृतिक संसाधनों और जीवित व जागृत राष्ट्रों से संपन्न हैं, अपनी मौजूदा व संभावित पूंजियों की मदद से भविष्य की रचना करना चाहिए। पिछले 150 बरसों में मुस्लिम राष्ट्रों ने अपने देशों व सरकारों के भविष्य में कोई भूमिका नहीं निभाई है और कुछ अवसरों को छोड़ कर लगातार हमलावर पश्चिमी सरकारें इस्लामी राष्ट्रों का संचलान करती रही हैं और उन्हें अपनी लालच, हस्तक्षेप और दुष्टता का निशाना बनाती रही हैं। आज ज्ञान के क्षेत्र में बहुत से देशों का पिछड़ापन और राजनैतिक निर्भरता उसी अयोग्यता व निष्क्रियता का नतीजा है।
हमारे राष्ट्रों, हमारे नौजवानों, हमारे विद्वानों, हमारे धर्मगुरुओं व बुद्धिजीवियों, हमारे राजनितिज्ञों, दलों और आबादियों को आज हर गर्व से ख़ाली बल्कि शर्मनाक अतीत की भरपाई करनी चाहिए, उन्हें खड़े होना चाहिए और पश्चिमी ताक़तों की ज़ोर-ज़बरदस्ती, हस्तक्षेप और दुष्टता के मुक़ाबले में प्रतिरोध करना चाहिए।
इस्लामी गणतंत्र ईरान की कुल बात, जिसने साम्राज्यवादी दुनिया को चिंतित व क्रोधित कर दिया है, इसी प्रतिरोध की दावत है, अमरीका व अन्य हमलावर ताक़तों के हस्तक्षेप और शैतानी कामों के मुक़ाबले में प्रतिरोध और इस्लामी शिक्षाओं पर भरोसे के साथ इस्लामी दुनिया के भविष्य की बागडोर अपने हाथ में लेना।
स्वाभाविक रूप से अमरीका व उसका टोला "प्रतिरोध" के नाम से घबराते हैं और इस्लामी प्रतिरोध के मोर्चे के ख़िलाफ़ तरह तरह की दुश्मनी पर तुले हुए हैं। इलाक़े की कुछ सरकारों की तरफ़ से उनका साथ दिया जाना भी उनकी दुष्टता के जारी रहने की दिशा में एक कड़वी सच्चाई है।
हज की इबादतें, सई, तवाफ़, अरफ़ात, जमरात, संस्कार, वैभव व एकता हमें जो सीधा रास्ता दिखाती है वह अल्लाह पर भरोसा करना, उसकी असीम ताक़त पर ध्यान रखना, राष्ट्रीय आत्म विश्वास, कोशिश व संघर्ष पर आस्था, आगे बढ़ने का पक्का संकल्प और जीत की भरपूर उम्मीद का रास्ता है।
इस्लामी इलाक़े की ज़मीनी वास्तविकताएं इस उम्मीद को बढ़ाती और इस संकल्प को मज़बूत बनाती हैं। एक तरफ़ इस्लामी दुनिया की समस्याएं, ज्ञान-विज्ञान में पिछड़ापन, राजनैतिक निर्भरता और आर्थिक व सामाजिक परेशानियां हमें इस महान ज़िम्मेदारी और अथक संघर्ष के रूबरू कर देती हैं, अवैध क़ब्ज़े में जा चुका फ़िलिस्तीन हमें मदद के लिए पुकारता है, मज़लूम और ख़ून में डूबा हुआ यमन, दिल को तड़पा देता है, अफ़ग़ानिस्तान की समस्याएं सभी को चिंतित कर देती हैं, इराक़, सीरिया, लेबनान व कुछ अन्य मुस्लिम देशों की कटु घटनाएं, जिनमें अमरीका व उसके साथियों की दुष्टता व हस्तक्षेप साफ़ दिखाई देता है, जवानों की ग़ैरत और हिम्मत को पुकार रही हैं।
दूसरी तरफ़ इस पूरे संवेदनशील इलाक़े में प्रतिरोध के तत्वों का सिर उठाना, राष्ट्रों की जागरूकता और जवान व उल्लासित पीढ़ी का उठ खड़ा होना, दिलों को उम्मीद से भर देता है, फ़िलिस्तीन, अपने सभी इलाक़ों में "बैतुल मुक़द्दस की तलावार" को न्याम से निकाल लेता है, बैतुल मुक़द्दस, ग़ज़ा, पश्चिमी तट, सन 48 के इलाक़े और शरणार्थी कैम्प सभी उठ खड़े होते हैं और बारह दिन में हमलावर की नाक रगड़ देते हैं, घिरा हुआ और अकेला यमन, क्रूर व जल्लाद दुश्मन की जंग और मज़लूमों की हत्या के मुक़ाबले में सात साल तक डटा रहता है और खाने की वस्तुओं, दवाओं और अन्य संभावनाओं के अभाव के बावजूद, ज़ोर ज़बरदस्ती करने वालों के सामने नहीं झुकता बल्कि अपनी ताक़त और अपनी पहल से उन्हें भयभीत व आतंकित कर देता है, इराक़ में "प्रतिरोध" करने वाले सीधी और साफ़ ज़बान में अवैध क़ब्ज़ा करने वाले अमरीका और उसके पिट्ठू दाइश को पीछे ढकेल देते हैं और बिना हिचकिचाए अमरीका व उसके साथियों के हर प्रकार के हस्तक्षेप और साज़िशों से मुक़ाबले के अपने संकल्प का ऐलान करते हैं।
इराक़, सीरिया, लेबनान व अन्य देशों में ग़ैरतमंद जवानों और प्रतिरोध के जियालों की इच्छा व संकल्प के बारे में अमरीकियों के झूठे प्रोपैगंडे और उन्हें ईरान या किसी भी अन्य केन्द्र से नत्थी करने की अमरीकियों की कोशिश, उन साहसी व जागरूक जवानों का अनादर और इस इलाक़े के राष्ट्रों के बारे में अमरीकियों के पास सही बोध न होने का परिणाम है।
यही ग़लत सोच इस बात का कारण बनी कि अफ़ग़ानिस्तान में अमरीका अपमानित हो और बीस साल पहले उस हंगामेदार प्रवेश और अफ़ग़ानिस्तान के निहत्थे व असैनिक लोगों के ख़िलाफ़ हथियार, बम और गोलियां इस्तेमाल करने के बाद अपने आपको दलदल में महसूस करे और अपने सैनिक और सैन्य उपकरणों को वहां से बाहर ले जाने पर मजबूर हो जाए। अलबत्ता जागरूक अफ़ग़ान राष्ट्र को अपने देश में अमरीका के गुप्तचर तंत्रों और सॉफ़्ट वॉर के हथियारों की तरफ़ से चौकन्ना रहना चाहिए और इन चीज़ों के मुक़ाबले में होशियारी से डट जाना चाहिए।
इलाक़े के राष्ट्रों ने दिखा दिया है कि वे जागरूक व होशियार हैं और उनका रास्ता उन सरकारों से अलग है जो अमरीका को ख़ुश करने के लिए फ़िलिस्तीन जैसे अहम मामले में भी उसकी इच्छा के सामने सिर झुका देती हैं, ये वे सरकारें हैं जो अवैध क़ब्ज़ा करने वाली ज़ायोनी सरकार के साथ खुल कर और छिप कर दोस्ती की पेंगें बढ़ाती हैं यानी फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के हक़ का उसके ऐतिहासिक देश में ही इन्कार कर देती हैं। यह फ़िलिस्तीनियों की पूंजी पर डाका है। उन्होंने अपने देशों की प्राकृतिक पूंजी की लूटमार पर ही बस नहीं किया है बल्कि अब फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की पूंजी लूट रही हैं।
भाइयो और बहनो!
हमारा इलाक़ा और उसमें तेज़ी से सामने आने वाली तरह तरह की घटनाएं, पाठ सीखने की एक प्रदर्शनी है। एक तरफ़ ज़ोर ज़बरदस्ती करने वाले हमलावर के मुक़ाबले में संघर्ष और प्रतिरोध से हासिल होने वाली ताक़त और दूसरी तरफ़ उसके सामने सिर झुकाने, कमज़ोरी दिखाने और उसके द्वारा थोपी गई बातों को मानने से हासिल होने वाली ज़िल्लत।
अल्लाह का सच्चा वादा, ख़ुदा की राह में संघर्ष करने वालों की मदद का है। "अगर तुम अल्लाह की मदद करोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दम मज़बूत जमा देगा।" (सूरए मुहम्मद, आयत 7) इंशा अल्लाह इस संघर्ष का पहला असर, अमरीका व अन्य अंतर्राष्ट्रीय ग़ुंडों को इस्लामी देशों में हस्तक्षेप और साज़िशों से रोकना होगा।
मैं अल्लाह से दुआ करता हूं कि वह मुस्लिम राष्ट्रों की मदद करे, इमामे ज़माना पर, जिन पर हमारी जानें क़ुर्बान हों, दुरूद व सलाम भेजता हूं, महान इमाम ख़ुमैनी और सम्मानीय शहीदों के दर्जे बुलंद होने की ख़ुदा से प्रार्थना करता हूं।
और सलाम हो अल्लाह के नेक बंदो पर
सैयद अली ख़ामेनेई
6 ज़िल्हिज्जा 1442
17/7/2021

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