हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निर्वाचन आयुक्तों (ईसी) और मुख्य निर्वाचन आयुक्तों (सीईसी) के रूप में अपनी पसंद के सेवारत नौकरशाहों को नियुक्त करने की केंद्र की वर्तमान प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि किसी श्रेष्ठ ग़ैर-राजनीतिक सुदृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति, जो प्रभावित हुए बिना स्वतंत्र निर्णय ले सके, को नियुक्त करने के लिए एक ‘निष्पक्ष और पारदर्शी तंत्र’ अपनाया जाना चाहिए।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत के सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार शामिल हैं, उन याचिकाओं को सुन रही थी, जिनमें निर्वाचन समिति को राजनीतिक या कार्यकारी हस्तक्षेप से बचाने के लिए कोर्ट द्वारा निर्देश देने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं ने निर्वाचन आयुक्तों की वर्तमान नियुक्ति प्रक्रिया की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए तर्क दिया है कि नियुक्तियां कार्यपालिका की मर्ज़ी से की जा रही हैं। उन्होंने भविष्य में होने वाली ऐसी नियुक्तियों के लिए एक स्वतंत्र कॉलेजियम जैसी व्यवस्था या चयन समिति के गठन की मांग की है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सीबीआई निदेशक या लोकपाल की नियुक्तियों, जहां विपक्ष के नेता और न्यायपालिका के पास अपनी बात कहने का अवसर होता है, के विपरीत केंद्र एकतरफा तरीक़े से चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करता है।
इस बीच 17 नवंबर को पिछली सुनवाई में पीठ ने इन याचिकाओं के समूह पर सुनवाई शुरू की थी और इस बात पर विचार किया था कि चुनाव आयुक्तों को चुनने के लिए एक स्वतंत्र निकाय का गठन करने के लिए कोई ग़ैर-राजनीतिक व्यक्ति कैसे चुना जाए। उस सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने निर्वाचन आयुक्तों के चयन के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली दलीलों का ज़ोरदार विरोध करते हुए कहा था कि इस तरह का कोई भी प्रयास संविधान में संशोधन करने के समान होगा। मंगलवार की सुनवाई में अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 324 के विषय को उठाया जिसमें निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के बारे में कहा गया है। अदालत ने कहा कि इसमें इस तरह की नियुक्तियों के लिए प्रक्रिया नहीं दी गयी है। इसी तरह संविधान की चुप्पी का फ़ायदा उठाया जा रहा है। पीठ ने निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई कानून नहीं होने का फ़ायदा उठाए जाने की प्रवृत्ति को पीड़ादायक क़रार दिया। अदालत ने कहा कि उसने इस संबंध में संसद द्वारा एक क़ानून बनाने की परिकल्पना की थी, जो पिछले 72 वर्षों में नहीं किया गया है, जिसके कारण केंद्र द्वारा इसका फ़ायदा उठाया जाता रहा है। पीठ ने कहा, ‘राजनीतिक दल नियुक्ति को लेकर एक स्वतंत्र पैनल की स्थापना के लिए क़ानून पारित करने के लिए कभी भी सहमत नहीं होंगे क्योंकि यह सरकार की अपनी पसंद के व्यक्तियों को नियुक्त करने की शक्ति को छीन लेगा जो उनके बने रहने के लिए ज़रूरी हो सकता है।