हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,अंबेडकरनगर, हर धर्म की भांति इस्लाम मजहब भी शांति, सद्भाव और परोपकार का आदेश देता हैं हज़रत पैगंबर मुहम्मद साहब ने समाज सुधार में पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। लिहाज़ा हम सब को भी उनके दिखाए मार्ग पर चलना चाहिए।
उक्त विचार इमामबाड़ा मीरानपुर में इम्तियाज हुसैन की ओर से आयोजित मजलिस के विशेष कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मंगलौर उत्तराखंड से आए मौलाना इब्ने अली हैदरी ने व्यक्त किया हैं।
उन्होंने हुज़ू नबी-ए-करीम के हवाले से कहा अल्लाह रब्बुल इज्जत की कसम दिलों में उस वक्त तक ईमान दाखिल नहीं होगा जब तक मेरे अहलेबैत से मोहब्बत न की जाए। इसके अतिरिक्त रसूले अकरम ने फरमाया था ऐ लोगों मैं तुम्हारे बीच दो गरा-कद्र चीजें छोड़कर जा रहा हूं।
इनमें एक कुरआन अल्लाह ताला की किताब जो कि आसमान व जमीन के दरमियान फैली हुई रस्सी की तरह है। और दूसरे मेरी इतरत यानी मेरे अहलेबैत हैं यह दोनों हरगिज जुदा नहीं होंगे जब तक मेरे पास हौजे कौसर पर नहीं पहुंच जाते। मौलाना इब्ने अली हैदरी ने नमाज को दीने इस्लाम का स्तम्भ है बताते हुए कहा कि बगैर नमाज के कोई भी पुण्य कार्य स्वीकार न होगा।
कहा कि नियमित नमाजों के अलावा नमाज-ए-शब का बड़ा महत्व है। इसके पढ़ने से चेहरा नूरानी हो जाता है और कारोबार में दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी होती है। यह परवरदिगार को प्रसन्न करने का सरल उपाय है।