۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
मौलाना

हौज़ा/21सफ़र को तिस्सा सादात में 72 शौहदा के चैहलूम की मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना ने कहां,हमे हुसैन की इस अज़ीम कुर्बानी से ये संदेश मिलता है कि जब भी इस्लाम पर बात आए तो गैरों को मैदान में मत भेज़ो बल्कि खुद हथियार लेकर मैदान ए जंग में कूद पड़ो और इस्लाम के लिए दिफा करो

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,मुजफ्फनगर। तिस्सा 21सफ़र को तिस्सा सादात में  72 शौहदा के चैहलूम की मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना ने कहां,कि आज हम उस हुसैन का चैहलूम मना रहें हैं जिस ने कुछ ही घंटो में इस्लाम को बचाया आप ने कहा जब मुसलमनों के पियारे नबी हज़रत मुहम्मद साहब ने दावत ए इस्लाम भेजी तो ईसाईयो ने जो नजरानी थे उन्होंने तहकीक करने के लिए वफद जेरे कयादत अब्दुल मसीह आकिब को मदीना भेजा।

तो वह मदीने आया रसूल से मुबाहेसा हुआ मगर व कायल ना हुए तो खुदा का हुक्म आया के ए पैगम्बर मुहम्मद इन से कह दो तुम अपने बेटो को लाओ अपनी औरतों को लाओं अपने नफसो को लाकर मुबहिला करो मौलाना ने मजीद कहा फैसला हो गया 24 जिलहिज्जा 10हीजरी को पंजतन पाक झुठो पर लानत करने के लिए निकले , जैसे ही नसारा के सरदार ने इनकी शकले देखीं कापने लगा और मुबिहला से बाज़ आया।
मौलाना ने आगे कहा हमेशा इन्होंने सच्चाई के साथ इस्लाम को बचाया, और यही हुसैन जिसको बचपने में रसूल ईसाईयों से मुबाहिला करने के लिए लेकर गए थे।सन 61 हिजरी 10मोहर्रम को अपनी ओर अपनी औलाद भाइयों दोस्तों की कुरबानी देकर इस्लाम बचा कर ले गया है आज यही वजह है कि हर एक धर्म का इंसान हुसैन को श्रद्धांजलि अर्पित करता हुआ नजर आ रहा है।


मौलाना ने कहा हमे हुसैन की इस अज़ीम कुर्बानी से ये संदेश मिलता है के जब भी इस्लाम पर बात आए तो गैरों को मैदान में मत भेज़ो बल्कि खुद हथियार लेकर मैदान ए जंग में कूद पड़ो और 1400 साल के बाद आज भी दुनिया ने देखा जब इराक़ में दाएश ने हमला कर दिया हुसैन इब्ने अली के बेटे सैयद अली हुसैनी सिस्तानी ने अपने जवान बेटे को हुक्म दिया जाओ बेटा तुम किसी का इंतजार मत करो खुद बन्दूक लेकर मैदान में उतर जाओ और दुश्मन का मुकाबला करो,

मौलाना ने कहा ऐसे बहुत मरहले हैं जब भी इस्लाम पर बात आई तो इस्लाम के पैरोकारों ने अपनी औलादों को मैदान में भेज कर बतला दिया हम हुसैन इब्ने अली आपकी कुर्बानी को कभी नहीं भूलेंगे और आप हर साल देखते हैं जब मोहर्रम का चांद निकलता है तो हमारी माए हमारे हाथों में जंज़ीरें देकर कहती हैं जाओ अपने मोलां का मातम करो मर भी जाओ तो हमें ग़म नहीं है।
इसी के साथ मौलाना ने मसायब ए कर्बला पढ़ते हुए मजलिस को तमाम किया।

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