हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,मदरसों में हिंदू या अन्य गैर मुस्लिम स्टूडेंट अब आगे की पढ़ाई नहीं कर पाएंगे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने यह गाइडलाइन जारी की है आयोग ने निर्देश के मुताबिक, देशभर में अनुदान पाने वाले और मान्यता वाले मदरसों में पढ़ने वाले हिंदू या गैर मुस्लिम स्टूडेंट की पहचान कर रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा,
फिर इन स्टूडेंट्स का मदरसों के बजाय RTE के तहत सामान्य शिक्षण संस्थानों में एडमिशन कराया जाएगा।
बता दें कि यूपी में इस समय 16 हजार के लगभग मदरसे हैं इनमें 8 हजार 500 गैर मान्यता प्राप्त और करीब 600 अनुदानित हैं. इसके अलावा बाकी वित्त विहीन मान्यता प्राप्त मदरसे हैं।
एनसीपीसीआर की अध्यक्ष प्रियंका कानूनगो की तरफ से सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को इस संबंध में पत्र भेजा गया है गौरतलब है कि हाल ही में यूपी में सभी मदरसों का सर्वेक्षण हुआ था सर्वे में 14 सवाल पूछे गए थे इनमें मुख्य सवाल थे कि क्या राज्य के शिक्षा बोर्ड या दारुल उलूम जैसी संस्था से मदरसा मान्यता प्राप्त है या नहीं. क्या सरकारी अनुदान मदरसे को मिलता है।
अगर नहीं तो उसका संचालन किसके माध्यम से होता है. छात्रवृत्ति या मदरसा फंड कहां से मिल रहा है मदरसे में कितने टीचर और छात्र हैं?
मदरसा में गैर मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई को लेकर राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की तरफ से लिखे गए पत्र पर यूपी में विधान परिषद सदस्य और पूर्व मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि सबसे पहले मदरसों को अपना स्टैंड क्लियर कर लेना चाहिए एक तरफ जब योगी सरकार मदरसों में एनसीईआरटी की पढ़ाई लागू करती है।
तो इन मौलानाओं को दर्द होता है. कहते हैं कि हमारे धर्म में हस्तक्षेप कर रहे हैं और अब जब आयोग की तरफ से यह लेटर जारी होता है तो कह रहे हैं कि हमारे यहां इंग्लिश मैथ साइंस भी पढ़ाई जाती है. अगर मदरसों में धार्मिक पढ़ाई कराई जाती है तो दूसरे धर्म के बच्चे आखिर वहां क्यों पढ़ें और मदरसों को उनका एडमिशन लेना ही नहीं चाहिए।
मदरसा वाले मामले पर शिया मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना सैफ अब्बास ने कहा कि इससे यही संदेश जाता है कि जिसको शिक्षा के लिए काम करना चाहिए वही एक तबके के बच्चों को शिक्षा से अलग करना चाहता है. अगर बच्चे मदरसे जा रहे हैं तो इसलिए क्योंकि उनका वहां शिक्षा का दूसरा इंतजाम नहीं है अगर बच्चे प्राइमरी स्कूल में जा रहे हैं तो उनको मैथ, इंग्लिश, साइंस मिलेगी अगर वह उर्दू नहीं चाहते तो ना पढ़ें तो उसमें दिक्कत क्या है?