۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
समाचार कोड: 385922
13 अप्रैल 2023 - 14:46
कुद्स

हौज़ा/ माहे मुबारक ए रमज़ान के आख़िरी जुमआ को अलविदा जुमआ यानी "क़ुद्स डे" के नाम से भी जाना जाता है ताकि इस दिन हम मुत्तहिद हो कर हर क़िस्म के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,माहे मुबारक ए रमज़ान के आख़िरी जुमआ को अलविदा जुमआ यानी "क़ुद्स डे" के नाम से भी जाना जाता है ताकि इस दिन हम मुत्तहिद हो कर हर क़िस्म के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करें,

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने अपनी वसीयत में अपने मानने वालों से फ़रमाया,हमेशा ज़ालिम के ख़िलाफ़ रहो और मज़लूम का साथ दो,

आज दुनिया में हर तरफ़ ज़ुल्म हो रहा है। हमारा पहला क़िब्ला, बैतूल मुक़द्दस,मस्जिद ए अक्सा भी इस्राईली ज़ालिमों के क़ब्ज़े में है और इस्राईली यहूदी बेगुनाह बच्चों, औरतों और बुढ़ो को बेजा क़त्ल कर रहे है।

क़ुद्स के दिन इसी तरह के हर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ मुत्तहिद हो कर आवाज़ बुलंद करना है,इमाम ख़ुमैनी (र) ने फ़रमाया: अगर सब मिलकर क़ुद्स के दिन आवाज़ बुलंद करेंगे तो इंशाअल्लाह बहुत जल्द हम इन ज़ालिमों से नजात हासिल कर लेंगे।

आईये हम सब लोग इमाम अली अलैहिस्सलाम की आवाज़ पर लब्बैक कहे और इन ज़ालिमों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करे।
ऐ उम्मते मुस्लिमा! जुमा की नमाज़ के बाद मज़लूम की हिमायत के ज़रिए अपने वजूद को साबित कर और ज़ालिम को ललकार,74 साल से ज़ियादा हो गए है कि फ़िलिस्तीनी क़ौम पर इस्राईल और उसके साथियों (अमेरिका, ब्रिटिश) का ज़ुल्म मुसलसल जारी है लेकिन फ़िलिस्तीनी अवाम की हिम्मत और शुजाअत में कोई कमी नहीं आई है। वह अपनी आज़ादी के नज़दीक बढ़ते जा रहे है।
भारत की अवाम को भी हमेशा फ़िलिस्तीनियों के साथ हमदर्दी रही है आख़िर फ़िलिस्तीनी उसी साम्राजी निज़ाम का मुक़ाबला कर रहे है, जिन अंग्रेज़ों को भारत वासियों ने 1947 में अपने मुल्क़ से बाहर निकाला था,

हर साल माहे रमज़ान के अलविदाई जुमआ (शुक्रवार) को दुनिया भर के इन्साफ़ पसंद इंसान यौम-ए-क़ुद्स  के तौर पर मनाते है। दुनिया में हज़ारों शहरों और बस्तियों में, मुसलमान रोज़े की हालत में जमा होकर इस्राईल और उसके साथियों के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ अपनी नाराज़गी और गुस्से का इज़हार करते है और करते रहेंगे.इन्शा अल्लाह
ऐ उम्मते मुस्लिमा के ग़ैरतमंद जवानों! क्या तुम भी ज़ालिम की मुख़ालेफ़त और मज़लूम की हिमायत से अपने दीनी, मज़हबी और इंसानी फ़रिज़े को अंजाम देना चाहोंगे?

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