۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
ईमाम

हौज़ा/हज़रत इमाम हुसैन अ.स. की इबादत-ओ-वस्सुल हरमे पैग़म्बर स.ल.व. में आपकी मानवी रियाज़त और सैरओ-सुलूक यह सब आपकी हयाते मुबारक का एक रुख़ है आपकी ज़िंदगी का दूसरा रुख़ ‘इल्मओ तालिमात-ए-इस्लामी के फ़रोग़ में आपकी ख़िदमात और तहरीफ़ात से मुक़ाबला है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत इमाम हुसैन अ.स. की इबादत-ओ-वस्सुल हरमे पैग़म्बर स.ल.व. में आपकी मानवी रियाज़त और सैरओ-सुलूक यह सब आपकी हयाते मुबारक का एक रुख़ है आपकी ज़िंदगी का दूसरा रुख़ ‘इल्मओ तालिमात-ए-इस्लामी के फ़रोग़ में आपकी ख़िदमात और तहरीफ़ात से मुक़ाबला है।

उस ज़माने में होने वाली तहरीफ़ात-ए-दीन दर-हक़ीक़त इस्लाम के लिए एक बहुत बड़ी आफ़त-ओ-बला थी, जिसने बुराइयों के सैलाब की मानिंद पूरे इस्लामी मुआशरे को अपनी चपेट में ले लिया था। ये वो ज़माना था कि जब इस्लामी सल्तनत के शहरों, मुमालिक और मुसलमान क़ौमों के बीच इस बात की ताईद की जाती थी कि इस्लाम की सबसे अज़ीमतरीन शख़्सियत पर लानत, गाली-गलौच करे।

अगर किसी पर इल्ज़ाम होता है कि इमाम अली अ.स. की विलायत-ओ-इमामत का तरफ़दार और हिमायती है तो उसके ख़िलाफ़ क़ानूनी करवाई की जाती; सिर्फ़ इस गुमान-ओ-ख़्याल कि बिना पर इमाम अली (अ) का हिमायती है, क़त्ल कर दिया जाता था और सिर्फ़ इस इल्ज़ाम की वजह से उसका माल-ओ-दौलत लूट लिया जाता और बैतूल-माल से उसका वज़ीफ़ा बंद कर दिया जाता था।

इन मुश्किल हालात में इमाम हुसैन (अ) एक मज़बूत चट्टान खड़े दिखाई दिए और आपने एक तेज़ और चमकती हुई तलवार की तरह दीन पर पढ़े हुए तहरीफ़ात के तमाम पर्दो को चाक कर दिया। मैदान-ए-मिना के ख़ुत्बे और उल्मा से आपके मज़ीद इरशादात इस बात की अक्कासी करतें हैं कि आप कितनी बड़ी तहरीक के रूह-ए-रवाँ थे।

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