۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
A.s.

हौज़ा/हज़रत ज़ैनब (स.अ.)5 जमादिउल अव्वल को मदीने में पैदा हुईं, आपके वालिद इमाम अली अलैहिस्सलाम और मां हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब आपकी मां शहीद हुई,आप के बहुत सारे लक़ब हैं जिनमें से मशहूर सिद्दीक़-ए-सुग़रा, आलेमा, मोहद्देसा, आरेफ़ा और सानि-ए-ज़हरा हैं,

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत ज़ैनब (स.अ) एक रिवायत के अनुसार एक शाबान सन 6 हिजरी और दूसरी रिवायत के मुताबिक़ 5 जमादिउल अव्वल को मदीने में पैदा हुईं, आपके वालिद इमाम अली अलैहिस्सलाम और मां हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) थीं, आप केवल पांच साल की थीं जब आपकी मां शहीद हुई, आपने अपनी ज़िदगी में बहुत सारी मुसीबतों का सामना किया, मां बाप की शहादत से लेकर भाइयों और बच्चों की शहादत तक आपने देखी और इस्लाम की राह में क़ैद की कठिन सख़्तियों को भी बर्दाश्त किया, आपके जीवन की यही सख़्तियां थीं जिन्होंने आपके सब्र, धैर्य और धीरज को पूरी दुनिया के लिए मिसाल बना दिया। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 46) 

  आप के बहुत सारे लक़ब हैं जिनमें से मशहूर सिद्दीक़-ए-सुग़रा, आलेमा, मोहद्देसा, आरेफ़ा और सानि-ए-ज़हरा हैं, आपके सिफ़ात और आप की विशेषताएं देखकर आप को अक़ील ए बनी हाशिम कहा जाता है, आपकी शादी हज़रत जाफ़रे तैय्यार के बेटे जनाबे अब्दुल्लाह से हुई थी और आप के दो बेटे औन और मोहम्मद करबला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ दीन को बचाने की ख़ातिर शहीद कर दिए गए थे। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 210) 

  आम तौर से बच्चों के नाम उनके मां बाप रखते हैं लेकिन हज़रत ज़ैनब (स.अ) का नाम आपके नाना पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने रखा. जब आपकी विलादत हुई तो पैग़म्बर (स) सफ़र पर गए हुए थे जब आप वापस आए और जैसे ही आप को हज़रत ज़ैनब (स.अ) की विलादत की ख़बर मिली आप तुरन्त इमाम अली अलैहिस्सलाम के घर आए और हज़रत ज़ैनब को गोद में लेकर प्यार किया और उसी समय आपने ज़ैनब यानी 'बाप की ज़ीनत' नाम रखा। (रियाहीनुश-शरीयह, जिल्द 3, पेज 39) 

  इंसान की अहमियत उसके इल्म और ज्ञान से पहचानी जाती है, जैसा कि क़ुरआन में सूरए बक़रह की आयत 31 और 32 में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के बारे में भी यही कहा गया है और सबसे अहम इल्म और ज्ञान वह है जो सीधे अल्लाह से हासिल किया जाए जिसे *इल्मे लदुन्नी* कहा जाता है, हज़रत ज़ैनब का इल्म भी कुछ इसी तरह का था जैसा कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने आप को आलिमा-ए-ग़ैरे मोअल्लेमा नाम दिया यानी ऐसी आलिमा जिसने दुनिया में किसी से कुछ सीखा न हो। (मुन्तहल आमाल, जिल्द 1, पेज 298)

  औरत के लिए सबसे बड़ा कमाल और सबसे बड़ी सआदत यह है कि उसकी पाकीज़गी और पवित्रता पर कोई सवाल न कर सके, हज़रत ज़ैनब ने पवित्रता का सबक़ अपने वालिद से सीखा जैसाकि यह्या माज़नदरानी से रिवायत है कि मैंने कई सालों तक मदीने में इमाम अली अलैहिस्सलाम की ख़िदमत की है और मेरा घर हज़रत ज़ैनब के घर से बिल्कुल क़रीब था लेकिन कभी न मैंने उनको देखा और ना ही उनकी आवाज़ सुनी। 

  आप जब भी पैग़म्बरे अकरम (स) की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहतीं तो रात के सन्नाटे में जातीं और आप के साथ आगे आगे इमाम अली अलैहिस्सलाम चलते और आप के दाहिने इमाम हसन और बाएं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम चलते और जब पैग़म्बरे अकरम (स) की क़ब्र के क़रीब पहुंचते तो पहले इमाम अली अलैहिस्सलाम जाकर चिराग़ की रौशनी को धीमा कर देते थे, एक बार इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने वालिद से इसका कारण पूछा तो आप ने जवाब दिया कि मुझे डर है कि कहीं कोई हज़रत ज़ैनब को देख न ले। 

  आप ने कठिन परिस्थितियों में भी अपनी पाकीज़गी और पवित्रता को ध्यान में रखा, कूफ़ा और शाम जैसे घुटन के माहौल में जहां आप के सर पर चादर नहीं थी लेकिन फिर भी आप अपने हाथों से अपने चेहरे को छिपाए हुए थीं। (अल-ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या, पेज 345) 

  हज़रत ज़ैनब की एक और सबसे अहम विशेषता जिसको सैय्यद नूरुद्दीन जज़ाएरी ने किताब "ख़साएसुज़ ज़ैनबिय्या" में ज़िक्र किया है वह यह कि आप क़ुरआन की मुफ़स्सिरा थीं और वह एक रिवायत को इस तरह बयान करते हैं कि जिन दिनों इमाम अली अलैहिस्सलाम कूफ़ा में रहते थे उन्हीं दिनों हज़रत जैनब कूफ़े की औरतों के लिए क़ुरआन की तफ़सीर बयान करती थीं, एक दिन इमाम अली अलैहिस्सलाम घर में दाख़िल हुए तो देखा हज़रत ज़ैनब सूरए मरियम के शुरू में आने वाले हुरूफ़े मोक़त्तए की तफ़सीर बयान कर रही थीं, आप ने हज़रत ज़ैनब से कहा: बेटी इसकी तफ़सीर मैं बयान करता हूं और फिर आपने फ़रमाया इन हुरूफ़ में अल्लाह ने एक बहुत बड़ी मुसीबत को राज़ बनाकर रखा है और फिर आप ने करबला की दास्तान को बयान किया जिसको सुनकर हज़रत ज़ैनब बहुत रोईं।

  जनाबे शैख़ सदूक़ बयान करते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे इमाम सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की बीमारी के समय हज़रत ज़ैनब को यह अनुमति दी थी कि जो लोग शरई मसले पूछें आप उनका जवाब दीजिएगा। 

  शैख़ तबरिसी ने नक़्ल किया है कि हज़रत ज़ैनब ने बहुत सारी हदीसें अपनी मां हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) से बयान की है, इसी तरह किताब 'एमादुल मोहद्देसीन' से नक़्ल हुआ है कि आप ने अपनी मां, वालिद, भाईयों, जनाबे उम्मे सलमा, जनाबे उम्मे हानी और भी दूसरे लोगों से बहुत सी हदीसें बयान की हैं और जिन लोगों ने आप से हदीसें नक़्ल की हैं उनके नाम इस तरह हैं: अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास, इमाम सज्जाद (अ), अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र...

  इसी तरह फ़ाज़िल दरबंदी और भी दूसरे बहुत से उलमा ने हज़रत ज़ैनब के बारे में यह बात भी लिखी है कि हज़रत ज़ैनब को *"इल्मे मनाया वल बलाया"* था यानी ऐसा इल्म जिस में आने वाले समय में कौन सी घटना पेश आने वाली है इन सबके बारे में आप को मालूमात थी।

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