हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, भारत के प्रसिद्ध नगर लखनऊ इरान के शहर मशहद में स्थित इमाम रज़ा अ॰स॰ के रौज़े की नक़ल, जिसको अज़ीमुल्लाह खाँ जो मोहम्मद अली शाह बादशाह के खत तराश थे उन्होंन निर्माण कराया था। अजीमुल्लाह खान की दौलतमन्दी और फैय्याज़ी का यह आलम था कि सवारी के समय सैकड़ों रूपया जरूरत मन्दों को बांट देते थे। आपको बादशाह की बारगाह में बहुत तकर्रुब हासिल था।
इस रौज़े की इमारत गगन चुम्बी है और दूसरीे पवित्र इमारतों से कम नहीं है। हरम के चारों ओर गुलाम गरदिश (गुलामो के चलने फिरने की जगह) सहन में लम्बी हौज़ नहर की तरह है।जो उनके जर्राह होने की तरफ इशारा करती है। जर्राह के पास मरहम की डिबियां एैसी ही होती हैं जिसमें बराबर के खाने किसी में लाल मरहम तो किसी में ज़़नग़ारी कहीं सुफेद या ज़र्द।
रौज़े के पश्चिमी ओर मस्जिद है जो मस्जिदे गौहर शाद की नक़ल है, इसमे पत्थर का खुशनुमा हौज़ भी है। इसके अलावा एक दूसरी मस्जिद भी है जो बाहरी हिस्से में स्थित है। अज़ीमुल्लाह खान ने 2 जमादिउल आखिर 1265 हिजरी (17 अप्रैल 1849 ई॰) में इन्तेक़ाल किया और इसी हरमे इमामे हश्तुम मे दफन किये गये।
अजीमुल्लाह खान के देहान्त के बाद एक समय वह आया कि इस रौज़े की इमारत गिरने वाली थी जिस तरह इस रौज़े के निकट हज़रत अली अ॰स॰ के रौज़े की शबीह ज़मीन बोस हो गयी जिसके निशानात अभी तक बाक़ी हैं और इस ज़माने के लोग उसके बारे में कुछ नहीं जानते। आशूर या चेहल्लुमे इमामे हुसैन अ॰ स॰ के अवसर पर आते और अक़ीअत के फूल चढ़ाते और चले जाते थे।
लापरवाही इस हद तक बढ़ी कि कीड़े मकोड़े और पालतू जानवर रौज़े में घूमते रहते और किसी को कोई परवाह न रही रौज़े की छत गिर रही थी किनारे किनारे की सहेनचियां भी ज़मीन बोस होना चाहती थीं मगर अल्लाह को इस मुकदद इमारत की हिफाज़त करना थी इसलिए सैय्यद शाह साहब को चुना । उन्होने 1996 ई॰ इमाम अली रज़ा अ॰स॰ फाउन्डेशन की बुनियाद रखी और इसके सभी खर्चे अपने ज़िम्मे किये। फिर आप ने इस फाउन्डेशन के द्वारा रौज़े के निर्माण का कार्य आरम्भ कर दिया जो आज तक चल रहा है। ऐसी सूरत मे अल्लाह की मदद से रौज़े की इमारत दोबारा अपनी असली हालत की तरफ लौट आयी । अल्हम्दुलिल्लाह रौज़े मे बारह महीना निर्माण और बहबूद का काम चलता रहता है।
हरमे इमामे रज़ा अ॰स॰ की जानिब से लखनऊ में होने वाले तमाम प्रोग्राम के अलावा और बहुत सी खिदमात अनजाम दी जाती हैं। जिनमे ंतिब्बी, तालीमी, इमदादी खिदमात वगैरह काबिले ज़िक्र हैं।
तिब्बी खिदमात में बिला तफरीके मज़हब व मिल्लत मरीज़ो का मुफ्त इलाज किया जाता है। रौज़े के सहन में अस्पताल की तरह दारूश शिफा के नाम से किलीनिक है। जिससे हर दिन सैकड़ों मरीज़ मुफ्त दवा ले जाते हैं। साल में पचास साठ से ज़ियादा आप्रेशन वगैरह जिनका खर्च लाखों मे होता है वह हरम की जानिब से कराये जाते हैं।
मुख्तलिफ मुनासिबतों और मौकों पर लखनऊ शहर में तिब्बी कैम्प भी लगाये जाते हैं जिनमें लोग आकर ( प्ण्।ण्त्) इमाम अली रज़ा फाउन्डेशन के डाक्टरों से अपनी जांच और इलाज कराते हैं।
फक़ीर व नादार लोगों के बच्चों के स्कूल की फीस किताबें डेस, बैग टयुशन तथा खाने के सामान की भी बन्दोबस्त किया जाता है। इमदाद में खानपान कपड़े, दवा और घर के राशन वगैरह से मदद की जाती है।
हरम में एज़ाज़़ी खादमीन ( जो हर नौचन्दी जुमेरात को होने वाले दुआ और मजलिस के प्रोग्रामो में ज़ायरीन की खिदमत का काम अंजाम देते हैं ) को मशहद मुकददस की ज़ियारत के लिए भेजना और आस्ताना कुदस से वहा भी खिदमत का अवसर देना। अल्हमदुलिल्लाह 2022 म ंजिन खादिमीन के नाम र्कुआ में आये उनको मशहद मुकददस में इमाम के रौज़े की ज़ियारत और वहां खिदमत अनजाम देने का मौका मिला। माह ज़िलहिज़्जा में यह कारवाने नूर कर्बला अज़ीमुल्लाह खान तालकटोरा लखनऊ से मशहद मुकददस (ईरान) के आस्ताने की जानिब रवाना हुआ।यह नूरानी कार्वां दिल्ली में इमामिया हाल पहुँचा और वहां के इमाम जुमा मौलाना मुम्ताज़ अली साहब ने इस मुकददस कारवां को चन्द घन्टे के बाद रूखसत किया और अगले दिन इमाम रिज़ा अ॰स॰ की बहन के शहर मुकददस, कुम में वारिद हा गया। हज़रत फातिमा मासूमा कुम के हरम में हाज़िरी के बाद मशहद के लिए रवाना हुआ और अगले दिन इमाम रिज़ा अ॰स॰ की मेहमान सरा में रूका। यह कयामगाह हरम से दूर थी।ज़ायरीन खादमीन हर वक्त हरम में रहना चाहते थे। लेहाज़ा मेहमान सरा को छोड़ कर हरम के बाबुल जवाद पर होटल मेे ंमुन्तक़िल हो गये और हरम में ज़ियारत, खिदमत और दस्तरख्वान इमाम से बहरामन्द होते रहे। मशहद मुकददस के कयाम के दौरान नेशापुर और अतराफे मशहद मुकददस की भी ज़ियारत की जिनमें कदम गाह इमाम रिज़ा नेशापुर ख्वाजा इबासलत, ख्वाजा मुराद वगैरह की ज़ियारत से भी मुशर्रफ हुए। खादिमीन का कारवां मशहद से कुम अल-मुकददसा की जानिब रवाना हुआ और दिन कुम में कयाम के बाद तेहरान से दिल्ली के लिए रवाना हुआ फिर चन्द घन्टे कयाम के बाद नई दिल्ली से लखनऊ के लिए रवाना हुए, लखनऊ चारबाग़ में शबीहे हरमे इमामे अली रज़ा अ॰स॰ के दीगर खादिमीन स्वागत के लिए आये और कारवां का सफर इस तरह समाप्त हुआ।
आइ-ए-आर चेरिटेबल फाउन्डेशन इस रौज़े के सभी खर्च के लिए किसी से किसी तरह का कोई चन्दा नही लेता है क्योंकि फाउन्डेशन के सभी खर्च ए-एम-ए हरबल कम्पनी ने अपने जिम्मे किये है। अल्लाह से दुआ है कि खुदा इस कम्पनी को तरक्की दे।
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