۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
आयतुल्लाह सय्यद अबुल क़ासिम रिज़वी

हौज़ा / पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, आयतुल्लाह सय्यद अबुल क़ासिम रिज़वी (सन बारह सो उननचास) हिजरी में शहरे फरोखाबाद सूबा यूपी हिंदुस्तान में पैदा हुए, आप के वालिद सय्यद हुसैन रिज़वी एक दीनदार ताजिर थे, अल्लामा अबुल क़ासिम को बचपन से ही इलमे दीन की तालीम का शोक़ था |

उन्होने इब्तेदाई तालीम के मराहिल फरोखाबाद ही मे तै किये उसके बाद उसूले फ़िक़, उसूले अक़ाइद, इल्मे तफ़सीर, इल्मे हदीस ओर दिगर उलूम के हुसूल के खातिर लखनऊ का सफर किया ओर फखरूल मुजतहेदीन आयतुल्लाह फ़िल आलमीन सुल्तानुल ओलमा सय्यद मोहम्मद के पास इल्मे दीन हासिल करके फ़ाज़िले अबुल क़ासिम के लक़ब से मशहूर हो गये, सुल्तानुल ओलमा ओर सय्यदुल ओलमा सय्यद तक़ी साहब ने आप को इमामत के इजाज़े भी अता फ़रमाए |

लखनऊ से तहसीले उलूम के बाद हज्जे बैतुल्लाह, ईरान ओर इराक़ की ज़ियारात के लिए आज़िमे सफ़र हुए ओर अपने हमराह अपने भाई सय्यद अहमद ओर सय्यद महमूद, अहले खाना , वालेदैन ओर दिगर क़रीबी  रिशतेदारों को लेकर निकल गये, जब लाहोर पोंहचे तो नवाब लाहोर (अली रज़ा क़ज़लिबाश) ने लाहोर के बाशिंदों की हिदायत के लिए सुकूनत की दरखास्त की ,आपने दरखास्त कुबूल करते हुए वहीं सुकूनत इख्तियार कर ली ओर शहरे लाहोर जो मुद्दत से जिहालत का गढ़ था वो अल्लामा साहब ओर नवाब साहब की कोशिशों से (दारुश शरिया वल इल्म) शुमार होने लगा |

इसी दोरान नजफ़े अशरफ़ गये ओर वहाँ शेख मुर्तज़ा अंसारी के दर्स मे शरीक हुए, मोसूफ़ की सलाहियते इल्मी को देख कर शेख़ मुर्तज़ा अंसारी ओर आयतुल्लाह अरदकानी ने इजाज़ात मरहमत फरमाए, इराक़ की ज़ियारत के बाद इमाम रज़ा अ: की ज़ियारत के लिए ईरान तशरीफ़ लाए, बुज़ुर्ग ओलमा से मुलाक़ातें कीं ओर ईरान के मशहूर माराजे इज़ाम ने आप के लिए ईजाज़ाते इजतेहाद मरहमत फ़रमाये उसके बाद आप नवाबीने लाहोर के हमराह वापस लाहोर तशरीफ़ ले आए |

अल्लामा अबुल क़ासिम ने लाहोर में एक मदरसा बनामे मदरसए इमामया क़ायम किया जिसके तुल्लाब, असातेज़ा, कुतुब ओर दिगर तमाम इखराजात की फराहमी नवाब साहब ने अपने ज़िम्मे ली |

मोसूफ़ ने नवाब साहब के ज़रिये लाहोर में एक जमा मस्जिद भी तामीर कराई जिसमें आप की इक़्तेदा में नमाज़े योमिया, नमाज़े जुमा ओर नमाज़े ईदैन मुनअक़िद होती ओर मोमनीन की एक बड़ी तादाद शिरकत करती थी |

अल्लामा साहब के हुक्म पर नवाब साहब ने शहरे लाहोर में बहुत से इमामबारगाह में इमाम बारगाह भी तामीर कराये जिनमे तमाम मासूमीन अ: की विलादत ओर शहादत की मुनासेबत से मजालिस ओर महाफ़िल मुनअक़िद होतीं ओर आयतुल्लाह अबुल क़ासिम हमेशा तीन चार घंटे तक हलाल व हराम के अहकाम ओर फ़ज़ाइले मासूमीन अ: बयान फ़रमाते थे ,उनकी तक़ारीर को सुनने के लिए लोग बिला तफ़रीक़ मज़हबो मिल्लत शरीक होते थे क्योंकि उनका बयान कुरानी हक़ाइक़ ओर फ़रीकैन की अहादीस पर मुश्तमिल होता था |

मोसूफ़ ने तमाम मसरूफ़यात के बावजूद तालीफ़ ओर तसनीफ़ से हाथ नहीं उठाया बल्कि मुखतलिफ़ मोज़ुआत पर अरबी, फारसी ओर उर्दू ज़ुबान में बहुत ज़्यादा आसार छोडे हैं जिनमें : बुरहाने किताबुल बुशरा, शरहे मवद्दतुल क़ुर्बा हमदानी (दो जिल्द) हक़ाइक़े लादुन्नी (शरहे खसाइसे इमाम निसाई) इसबाते ताज़यादारी,शक़क़ुल क़मर (अरबी) बुरहानुल बयान (उर्दू) ज़ुब्दतुल अक़ाइद (फारसी) सियानतुल इंसान, रिसलाए खुमसे सादात, खुलासातुल उसूल (अरबी) तालीक़ा बर शरहे तजरीद अल्लामा (अरबी )अलइसाब ओर अलइक़ान वग़ैरा के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं |

आप को अल्लाह ने दो फ़रज़ंद अता किये जिन्हें आपने ज़ेवरे इल्म से आरास्ता किया ओर उनके असमाए गिरामी कुछ इस तरह हैं (1) आयतुल्लाह सय्यद अली हाएरी (2) मोलाना सय्यद अबुल फज़्ल |

वफ़ात से एक महीना पहले आप ने तसनीफ़ो तालीफ़ का काम छोड़ दिया ओर अक्सर फ़रमाते के मोत के आसार नमूदार हो गये हैं आखरत के सफ़र का इंतेज़ाम करना चाहिये, चुनांचे “सन तेरह सो बाइस हिजरी” के माहे ज़िलहिज के आखिरी अय्याम में अपने फ़रज़ंद सय्यद अली हाएरी को ज़ोहदो तक़वा इख्तियार करने की वसीयत करते हुए अपने लिए कर्बला के कफ़न ओर रिदाए यमानी की वसीयत फरमाई जो रोज़ों से मस करके लाये थे |

सन तेरह सो बाइस की सात मोहर्रम में आपकी ज़ाहिरी सेहत बिलकुल ठीक थी लेकिन उसके बावजूद मोमीनीन की एक जमात की मोजूदगी में अपने छोटे फ़रज़ंद से कहा : आज कल मेरी तबीयत से बाखबर रहना पूछा गया इसकी क्या वजह है ? आपने फ़रमाया : मुझे नहीं लगता कि मैं एक हफ्ते से ज़्यादा ज़िंदा रहुंगा, चुनांचे ऐसा ही हुआ चोदह मोहर्रम तक तबीयत बिलकुल सही थी लेकिन इसी शब में यक बयक तबीयत बिगड़ने लगी ओर चोदह मोहर्रम की रात आपने मालिके हक़ीक़ी से जा मिले |

आयतुल्लाह अबुल क़ासिम के सोग मे स्याह परचम लगाए गये, लोगों ने स्याह लिबास पहने , नमाज़े ज़ोहर के बाद आपके जनाज़े को उठाया गया कसीर तादाद में मोमीनीन, तुल्लाब, ओलमा वा फ़ोज़ला ने आपके जनाज़े मे शिरकत की ओर आपकी वसीयत के मुताबिक़ नमाज़े जनाज़ा के बाद लाहोर में बिरून भाटी दरवाज़ा इमाम बारगाह गामे शाह के शर्क़ी हिस्से मे सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया |

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-१ पेज-४४ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।

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