हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,मशहदे मुक़द्दस में इमाम रज़ा अ.स. के हरम के मुतवल्ली हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अहमद मुरादी ने कहा कि ज़ियारत केवल एक धार्मिक कार्य नहीं है बल्कि यह एक राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दा है जिसे सरकार की नीतियों में गंभीरता से शामिल किया जाना चाहिए।
यह बात उन्होंने 8 शव्वाल को हरम इमाम रज़ा अ.स. में आयोजित क़ारगाहे मेली ज़ियारत की बैठक में कही इस बैठक में देश के पहले उपराष्ट्रपति, संस्कृति और इस्लामी प्रचार मंत्री, ज़ियारती प्रांतों के गवर्नर और अन्य सांस्कृतिक अधिकारी मौजूद थे।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अहमद मुरादी ने कहा कि ज़ियारत एक आध्यात्मिक यात्रा है जो इंसान को रूहानी ताज़गी देती है और समाजिक व मानसिक समस्याओं को कम करने में प्रभावी भूमिका निभाती है ज़ियारत से दिलों को सुकून मिलता है और समाज में अमन व चैन फैलता है।
उन्होंने बताया कि हर साल लगभग 30 मिलियन ज़ायरीन मशहद मुक़द्दस आते हैं और पूरे देश में 50 से 60 मिलियन लोग ज़ियारत के लिए अलग-अलग जगहों पर जाते हैं ऐसे में सरकार का इस बड़े और महत्वपूर्ण मसले से बेखबर रहना ठीक नहीं है। अगर ज़ियारत को "राष्ट्रीय मुद्दा" मान लिया जाए तो इसके ज़रिए कई अन्य समाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
हरम इमाम रज़ा अ.स. के मुतवल्ली ने आगे कहा कि ज़ियारत न केवल अहलेबैत अ.स. की शिक्षाओं के प्रचार का माध्यम है बल्कि जनता की धार्मिक शिक्षा और इस्लामी जीवनशैली के प्रसार में भी अहम भूमिका निभाती है इसलिए ज़ियारती शहरों खासकर मशहद में बुनियादी सुविधाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाना ज़रूरी है।
उन्होंने यह भी कहा कि सातवें विकास योजना के तहत विदेशी ज़ायरीन की संख्या को 15 मिलियन तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया गया है, जिसके लिए उचित सुविधाएं, रहने की जगह, यातायात और पार्किंग का प्रबंध बेहद आवश्यक है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अहमद मुरादी ने ज़ोर देकर कहा कि हरम के आस-पास पार्किंग, सहन और अन्य सुविधाएं मुहैया कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है, ना कि नगरपालिका या केवल आस्ताने कुद्स की आस्ताना का काम सिर्फ़ ज़ायरीन के लिए ज़ियारत को आसान बनाना है, न कि ट्रांसपोर्ट, हवाई जहाज़ या रेलवे जैसी सेवाएं देना।उन्होंने सरकार से मांग की कि ज़ियारत को बढ़ावा देने और ज़ायरीन की सहूलियत के लिए प्रभावी और व्यावहारिक क़दम उठाए जाएं।
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